उत्तराखंड के मोहन नाथ गोस्वामी को मरणोपरांत ‘अशोक चक्र’ से किया गया सम्मानित

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उत्तराखंड के मोहन नाथ गोस्वामी को मरणोपरांत ‘अशोक चक्र’ से किया गया सम्मानित

उत्तराखंड के लांस नायक मोहन नाथ गोस्वामी 9 पेरा (विशेष बल) को मरणोपरांत अशोक चक्र प्रदान किया गया, नई दिल्ली में राजपथ पर आयोजित गणतंत्र दिवस समारोह में लांस नायक मोहन नाथ गोस्वामी की पत्नी को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अशोक चक्र प्रदान किया। उत्तराखंड के नैनीताल जिले के बिंदुखत्ता के रहने वाले लांस नायक


उत्तराखंड के मोहन नाथ गोस्वामी को मरणोपरांत ‘अशोक चक्र’ से किया गया सम्मानित

उत्तराखंड के मोहन नाथ गोस्वामी को मरणोपरांत ‘अशोक चक्र’ से किया गया सम्मानितउत्तराखंड के लांस नायक मोहन नाथ गोस्वामी 9 पेरा (विशेष बल) को मरणोपरांत अशोक चक्र प्रदान किया गया, नई दिल्ली में राजपथ पर आयोजित गणतंत्र दिवस समारोह में लांस नायक मोहन नाथ गोस्वामी की पत्नी को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अशोक चक्र प्रदान किया। उत्तराखंड के नैनीताल जिले के बिंदुखत्ता के रहने वाले लांस नायक मोहन नाथ गोस्वामी 02 और 03 सितम्बर 2015 की दरमियानी रात को हफरूदा जंगल में घात लगाने वाले दस्ते में शामिल थे। आतंकवादियों के साथ उनकी भीषण मुठभेड़ हुई। जिसमें उनके 2 साथी घायल होकर गिर पड़े। लांस नायक मोहन अपने दोस्त के साथ अपने सहयोगियों को बचाने के लिए आगे बढ़े। जबकि उन्हें अच्छी तरह मालूम था कि आगे बढ़ने में उनकी जान को खतरा है। लांस नायक मोहन ने पहले एक आतंकवादी को मार गिराया, उसके बाद अपने तीन घायल साथियों की जिंदगी पर खतरे को भांपते हुए लांस नायक मोहन अपनी जान की परवाह न करते हुए हाकी बचे आतंकवादियों पर टूट पड़े। आतंकवादी लगातार भयंकर फायरिंग कर रहे थे। आतंकवादियों की एक गोली उनकी जांघ में लगी लेकिन उसकी परवाह न करते हुए उन्होंने एक और आतंकवादी को मार गिराया और दूसरे को घायल कर दिया। अचानक उनके पेट में एक गोली लगी। उसके बाद भी अपने घावों से बेपरवाह मोहन नाथ ने बचे अंतिम आतंकवादी को दबोच लिया और अपने गंभीर घावों के कारण मौत के आगोश में जाने से पहले उस आतंकवादी को भी मार गिराया। लांस नायक मोहन नाथ ने ना केवल दो आतंकवादियों को मार गिराया, बल्कि अन्य दो को निष्क्रिय करने में भी सहायता प्रदान की और अपने तीन घायल साथियों की जान बचाई।

इस प्रकार, लांस नायक मोहन नाथ गोस्वामी ने व्यक्तिगत रूप से दो आतंकवादियों को मार गिराने और अपने घायल साथियों का बचाव करने में सहायता प्रदान करने के लिए भारतीय सेना की सर्वोच्च परंपराओं के अनुरूप अपना सर्वोच्च बलिदान देने में सबसे विशिष्ट वीरता का प्रदर्शन किया।

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