कर्ज के बोझ तले दबा है उत्तराखंड, 407 अरब रुपये का हुए कर्जदार

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कर्ज के बोझ तले दबा है उत्तराखंड, 407 अरब रुपये का हुए कर्जदार

इसे वित्तीय अऩुशासन का ना होना ही कहेंगे कि उत्तराखंड राज्य 407 अरब रुपये का कर्जदार हो गया है। हालत ये है कि उत्तराखंड सरकार ने रिजर्व बैंक से इसी माह एक हजार करोड़ रुपये का कर्ज और लिया है। जिसके बाद आरबीआई से कर्ज लेने की अधिकतम सीमा भी बहुत कम बची हुई है।


इसे वित्तीय अऩुशासन का ना होना ही कहेंगे कि उत्तराखंड राज्य 407 अरब रुपये का कर्जदार हो गया है। हालत ये है कि उत्तराखंड सरकार ने रिजर्व बैंक से इसी माह एक हजार करोड़ रुपये का कर्ज और लिया है। जिसके बाद आरबीआई से कर्ज लेने की अधिकतम सीमा भी बहुत कम बची हुई है।

कर्ज की बात की जाए तो राज्य गठन के वक्त यानी वित्तीय वर्ष 2001-02 में जहां मात्र 44 अरब रुपये का कर्ज था, वह अब बढ़कर 407 अरब रुपये का हो चुका है। मतलब कर्ज की राशि उत्तराखंड के गठन के बाद से बढ़कर दस गुना हो गई है।

उत्तराखंड को कर्ज के इस दलदल में इस तरह धकेलने का काम उत्तराखंड की सत्ता में काबिज सभी सरकारों का रहा है। लेकिन वर्तमान कांग्रेस सरकार ने पिछले दो महीने के भीतर ही इस कर्ज में डेढ़ हजार करोड़ का इजाफा कर दिया।

वित्त विभाग के रिकॉर्ड के मुताबिक अक्टूबर महीने में पांच सौ करोड़ और नवंबर महीने में एक हजार करोड़ रुपए का ताजा कर्ज लिया गया है। राजस्व के मामले में अपेक्षित वृद्धि न होने और वेतन-भत्ते के खर्च बढ़ने से यह स्थिति और भयावह होती जा रही है।

उत्तराखंड के राजस्व लेखे पर नजर डालें तो वित्तीय वर्ष 14-15 में वेतन के मद में 7660 करोड़ रुपये का खर्च हुआ था, जो इस साल लगभग 3500 करोड़ बढ़कर 11029 करोड़ पहुंच चुका है। तीन साल बाद यानी 19-20 में फिर इतनी ही वृद्धि होने का अनुमान है। जो कर्ज सरकार के ऊपर है, उसके ब्याज के रूप में वर्ष 14-15 में 2405 करोड़ रुपये अदा किए गए, जबकि चालू वित्तीय वर्ष में यह बढ़कर 3881 करोड़ रुपये हो चुका है।

प्रदेश के वित्त सचिव अमित सिंह नेगी इस पर कहते हैं कि बीते दो महीने में रिजर्व बैंक से डेढ़ हजार करोड़ रुपए का कर्ज लिया जा चुका है, फिर भी हम रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित अधिकतम कर्ज सीमा के भीतर हैं। निश्चित रूप से नान प्लान खर्चें (वेतन भत्ते और ब्याज आदि) कम करने की जरूरत है। डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के लिए खर्चे बढ़ाने की जरूरत है। विमुद्रीकरण (नोटबंदी) का असर राजस्व प्राप्ति के लक्ष्यों पर अवश्य पड़ेगा। इससे निपटने के रास्ते तलाशने होंगे।

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