जरा याद करो कुर्बानी | उत्तरखंड के 75 जांबाजों ने दिया था बलिदान

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जरा याद करो कुर्बानी | उत्तरखंड के 75 जांबाजों ने दिया था बलिदान

देश पर कुर्बान होने वालों में उत्तराखंडी वीरों का कोई सानी नहीं है। देश के प्रति वफादारी और बलिदान उत्तराखण्ड की माटी में कुछ इस कदर घुला है कि चाहे जंग का कोई भी मोर्चा क्यों न हो, वीरभूमि के रणबांकुरों ने हर मोर्चे पर अपना लोहा मनवाया है। चाहे द्वितीय विश्व युद्द हो, 1962


देश पर कुर्बान होने वालों में उत्तराखंडी वीरों का कोई सानी नहीं है। देश के प्रति वफादारी और बलिदान उत्तराखण्ड की माटी में कुछ इस कदर घुला है कि चाहे जंग का कोई भी मोर्चा क्यों न हो, वीरभूमि के रणबांकुरों ने हर मोर्चे पर अपना लोहा मनवाया है। चाहे द्वितीय विश्व युद्द हो, 1962 , 1971 की जंग हो या फिर कारगिल की लड़ाई हो, हर मोर्चे पर उत्तराखण्ड के जांबाज सैनिकों ने मातृभूमि का सर कभी झुकने नहीं दिया। भले अपना सिर ही क्यों न कटवाना पड़े।

शहीद मेजर विवेक गुप्ता, शहीद मेजर राजेश सिंह अधिकारी, शहीद सक्वाड्रन लीड़र राजीव पुंडीर के साथ ही वीरभूमि उत्तराखण्ड के 75 सपूतों ने कारगिल युद्द में वीरता के साथ लड़ते हुए वीरगति हासिल की। जंग के मोर्चे पर इन बहादुरों ने अपनी जांन की परवाह किए बिना भारत माता की हिफाजत के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी।

आजादी के बाद से अब तक हुए कुल 11 युद्धों में उत्तराखंड के डेढ़ हजार से अधिक जांबाजों ने शहादत देकर अपनी देशभक्ति का सबूत पेश किया है। युद्धों में वीरता प्रदर्शित करने पर मिलने वाले मेडलों की लंबी फेरहिस्त बताती है कि यहां के सैनिकों ने न सिर्फ युद्ध लड़े, बल्कि युद्ध कौशल में भी अपना लोहा मनवाया।

कारगिल युद्ध में भी देवभूमि के 75 रणबांकुरों ने देश रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहूति दी। इस युद्ध में पहाड़ के बेटों ने सेना के 37 महत्वपूर्ण बहादुरी पुरस्कार हासिल किए। उत्तराखंड के रणबांकुरों की वीरता के उदाहरण 1947 में कश्मीर में घुसे कबाइलों के आक्रमण, भारत-पाक व भारत-चीन युद्ध और आपरेशन ब्लू स्टार से लेकर कारगिल फतह के इतिहास में दर्ज हैं। इन्होंने कभी आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों में मोर्चा संभाला तो कभी श्रीलंका में हालात काबू करने में मदद की।

राज्य की जनसंख्या के करीब 15 फीसद पूर्व सैनिक हैं। जबकि, 60 हजार से अधिक जवान आज भी देश की सीमाओं की निगेहबानी कर रहे हैं। रक्षा विशेषज्ञ बताते हैं कि युद्ध लड़ने में ही नहीं, बल्कि युद्ध की रणनीति तय करने और फतह दिलाने में भी इनका योगदान रहा है।

अदम्य साहस के लिए इन्हें मिला सम्मान 

महावीर चक्र | मेजर विवेक गुप्ता, मेजर राजेश अधिकारी।

वीर चक्र | कश्मीर सिंह, बृजमोहन सिंह, अनुसूया प्रसाद, कुलदीप सिंह, एके सिन्हा, खुशीमन गुरुंग, शशिभूषण घिल्डियाल, रूपेश प्रधान व राजेश शाह।

सेना मेडल | तम बहादुर क्षेत्री, हरि बहादुर, मोहन सिंह, नरपाल सिंह, देवेंद्र प्रसाद, जगत सिंह, सुरमान सिंह, डबल सिंह, चंदन सिंह, मोहन सिंह, किशन सिंह, शिव सिंह, सुरेंद्र सिंह व संजय बरशिलिया।
मेंशन इन डिस्पैच | राम सिंह, हरि सिंह थापा, देवेंद्र सिंह, विक्रम सिंह, मान सिंह, मंगत सिंह, बलवंत सिंह, अमित डबराल, प्रवीण कश्यप, अर्जुन सेन, अनिल कुमार।

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