ब्लॉग | भारत माता की जय’ पर चिंता क्यों ?  

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ब्लॉग | भारत माता की जय’ पर चिंता क्यों ?  

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र यानी भारत में इन दिनों, ना जाने कौनसी बयार बह रही है। कभी कोई फासीवादी कहा जाने लगता है, कभी राष्ट्रवाद के नाम पर हंगामा हो जाता है, तो कभी ‘भारत माता की जय’ के नाम पर। पता नहीं क्यों, लग रहा है कि इन सब मुद्दों को उठाकर, हम


ब्लॉग | भारत माता की जय’ पर चिंता क्यों ?  

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र यानी भारत में इन दिनों, ना जाने कौनसी बयार बह रही है। कभी कोई फासीवादी कहा जाने लगता है, कभी राष्ट्रवाद के नाम पर हंगामा हो जाता है, तो कभी ‘भारत माता की जय’ के नाम पर। पता नहीं क्यों, लग रहा है कि इन सब मुद्दों को उठाकर, हम सभी असल मुद्दों से दूर भागना चाहता है. हाल ही में, पहले आरएसएस के मोहन भागवत और फिर आईआईएमएम नेता असद्दुदीन औवेसी के ‘भारत माता की जय बोलने’ पर जो बयान आए, और उसे जो तूल, मीडिया के मार्फत मिला, देखकर कुछेक चिंताएं होना स्वाभाविक सी हैं.

चिंता इस बात की नहीं है कि कोई भारत माता की जय बोलता है, या नहीं। क्योंकि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई जय बोलता है या नहीं। दरअसल कई बार व्यवस्थाओं को बनाए रखने के लिए हम भौतिक चीजों का मानवीयकरण करते हैं, ताकि उनके प्रति आस्था रहे (या डर कहें तो ज्यादा बेहतर), जैसे सूरज का चाचू, चंदा को मामा कह दिया। इस तरह के नाम या उपमाएं हम देते हैं। ये सिर्फ भारत में ही नहीं, हर देश में होता आया है। ठीक इसी तरह- उस जमीन के टुकड़े को, जिस पर कमोबेश एक जैसी संस्कृति, एक जैसी भाषा या हो सकता है एक जैसा ना भी हो, लेकिन फिर भी कुछ ना कुछ उभयनिष्ठ जरुर हो, ऐसे लोग रहते हों, हमने उसका सीमांकन देश के रूप में किया। अब इस देश से कोई गद्दारी ना करे, उसकी व्यवस्था के प्रति वफादर रहे, इसके लिए हमने उसका मानवीयकरण कर दिया। अब चूंकि भावनात्मक रूप से मां के हम अधिक करीब होते हैं, इसलिए देश को या उस भूमि को जहां हम जन्म लेते हैं, मातृभूमि कहा गया।

ध्यान रहे भावनात्मक करीबी का फायदा उठाकर ही हमें नारी के विभिन्न रूपों पर गालियां बनाकर उकसाया जाता रहा है, सरल शब्दों में कहें तो मां की गाली ज्यादा बुरी लगती है, बजाय इसके कि यदि कोई गाली पिता पर बनी होती तो। ये अलग बात है कि पिता पर शायद कोई गाली बनी नहीं है। तो हमने, हमारी मातृभूमि का मानवीयकरण करते हुए उसे भारत माता का रूप दे दिया. बिल्कुल सही किया. लेकिन उस भारत माता को देवी का रूप मान लेना, वैज्ञानिक तथ्य या वैज्ञानिक सत्य़ नहीं है।

आस्था और श्रद्धा एक अलग बात है। चूंकि भारत माता का कोई अस्तित्व, वैज्ञानिक तौर पर नहीं है, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई भारत माता की जय बोले या ना बोले। फर्क इस बात से पड़ता है कि देश के संचालन के लिए जो व्यवस्था बनीं है, उसका पालन करता है या नहीं। असली देशभक्ति तो वो है, जो देश की व्यवस्था को बनाए रखने में सहायक हो, और उसे सकारात्मक प्रगति प्रदान करे। अगर कोई सिर्फ भारत माता की जय बोलता रहे और भ्रष्टाचार करता रहे, तो क्या उसे देशभक्त कह सकते हैं? सो किसी के ‘भारत माता’ के प्रति निजी विचारों को हम देशभक्ति का पैमाना नहीं बना सकते, ना ही ये कोई मुद्दा होना चाहिए था।

चिंता करने वाली एक बात जो है, जिस पर मीडिया को चिंता वाकई करनी चाहिए थी, वो ये है कि औवेसी का भाषण सुनकर जो हूटिंग हो रही थी, उनके समर्थकों के सुर में छिपी नासमझी भरी आक्रामकता ठीक वैसी ही थी, जैसी, उस विचारधारा के कार्यकर्ताओं में होती हैं, जो देश के पिछड़ेपन के लिए एक समुदाय विशेष का जिम्मेदार ठहराते हुए, उसे देश से बाहर करने की बाते करते रहते हैं.

औवेसी का ये बयान कि, संविधान में कहीं नहीं लिखा कि भारत माता की जय बोली जाए, प्रेक्टिकली गलत नहीं है। लेकिन उनके इस बयान पर, उनके समर्थकों ने जिस तरह की प्रतिक्रिया हूटिंग के द्वारा की, उससे यही लगा कि ये हुजूम, औवेसी के बयान का अर्थ इस रुप में डीकोड कर रहा है, कि हमें भारत माता की जय नहीं बोलनी है। जबकि औवेसी के कहने का अर्थ ये मालूम होता है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई जय बोले या ना बोले, क्योंकि ये कोई राष्ट्रवाद का पैमाना नहीं है. लेकिन भीड़ का जो रवैया था, और फिर उसके बाद जो बहस देश भर में भारत माता की जय बोलने पर छिड़ी, सोशल मीडिया पर जो गद्दारी और वफादारी की पोस्ट्स शेयर की गईं, वो चिंताजनक है. चिंता इस बात की है, कि आखिर क्यों हम इन नकारात्मक बातों में अपनी ऊर्जा नष्ट कर रहे हैं?

आखिर क्यों हम चिंतन में अक्षम और व्यर्थ बहस में सक्षम होते जा रहे हैं? आखिर क्यों मीडिया इन बातों को दिखाकर, समकालीन समस्याओं पर से जनता का ध्यान हटाता जा रहा है? बेहतर होता यदि मीडिया इस पर प्राईम टाईम डिबेट करवाने की बजाय आम जनजीवन की समस्याओं से जुड़े दूसरे मुद्दे दिखाता, तो शायद देश की प्रगति में कुछ सहायक बनता. सो लब्बोलुआब यही है कि ऐसे मुद्दों पर ऊर्जा ज़ाया करने की बजाय यदि वैज्ञानिक सोच रखकर कुछ सकारात्मक करेंगे, तो ज्यादा बेहतर होगा. वही सच्ची देशभक्ति होगी.

लेखक हिमांशु सैनी स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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