श्रद्धालुओं के लिए खुले यमुनोत्री के कपाट, पढ़ें- यमुनोत्री धाम का महत्व

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श्रद्धालुओं के लिए खुले यमुनोत्री के कपाट, पढ़ें- यमुनोत्री धाम का महत्व

उत्तराखंड में आज से चारधाम यात्रा की शुरुआत हो गई है। सुबह सात बजे केदारनाथ धाम के कपाट खुलने के बाद दोपहर साढ़े बारह बजे गंगोत्री धाम के कपाट खोले गए। इसके बाद दोपहर डेढ़ बजे यमुनोत्री धाम के कपाट भी पूरे विधि विधान से पूजा-अर्चना के बाद श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए। यमुनोत्री


उत्तराखंड में आज से चारधाम यात्रा की शुरुआत हो गई है। सुबह सात बजे केदारनाथ धाम के कपाट खुलने के बाद दोपहर साढ़े बारह बजे गंगोत्री धाम के कपाट खोले गए। इसके बाद दोपहर डेढ़ बजे यमुनोत्री धाम के कपाट भी पूरे विधि विधान से पूजा-अर्चना के बाद श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए।

यमुनोत्री की महिमा | यहीं से शुरु होती है चार धाम यात्रा

पुराणों में यमुनोत्री का विशेष महत्व है। असित मुनि की निवास स्थली यमुनोत्री धाम 3235 मी० की ऊंचाई पर स्थित है। चार धाम की यात्रा में सर्वप्रथम यमुनोत्री के ही दर्शन किये जाते हैं। यमुनोत्री में एक ओर यमुना जी की धारा और दूसरी ओर गर्म जल के अनेक सोते है। ये सोते अनेक कुंडों में गिरते हैं इन कुंडों में सबसे सुप्रसिद्ध कुंड सूर्यकुंड है। यह कुंड अपने उच्चतम तापमान के लिए विख्यात है। भक्तगण देवी को प्रसाद के रूप में चढ़ाने के लिए कपडे की पोटली में चावल और आलू बांधकर इसी कुंड के गर्म जल में पकाते है। देवी को प्रसाद चढ़ाने के पश्चात इन्ही पकाये हुए चावलों को प्रसाद के रूप में भक्त जन अपने अपने घर ले जाते हैं। सूर्यकुंड के निकट ही एक शिला है जिसे दिव्य शिला कहते हैं। इस शिला को दिव्य ज्योति शिला भी कहते हैं। भक्तगण भगवती यमुना की पूजा करने से पहले इस शिला की पूजा करते हैं। पानी के मुख्य स्रोतों में से एक सूर्यकुण्ड है जो गरम पानी का स्रोत है।

यहां का मुख्‍य मंदिर यमुना देवी को समर्पित है। वर्तमान मंदिर जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में बनवाया था। एक बार विनाशकारी भूकम्प से विध्वंस होने के बाद इसका पुनर्निर्माण हुआ है। सन् 1919 में टिहरी नरेश महाराजा प्रताप शाह ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था।

यमुनोत्री मंदिर में यमुना जी की भव्य प्रतिमा के साथ गंगा, यमराज व कृष्ण की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। यमुनोत्री दर्शन के लिए सड़क मार्ग के लिए अंतिम पड़ाव हनुमान चट्टी से 13 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। पतित पावनी, कल्याणकारी, अमृत स्वरूपा यमुनोत्री मंदिर के दर्शन से यात्रा की सारी थकान मिट जाती है और मन प्रसन्न हो उठता है। धर्मशास्त्रों के अनुसार सूर्य की संध्या और छाया नामक दो पत्नियाँ थी। छाया से ‘यम’ और ‘यमुना’ की उत्पत्ति हुई थी। माता के श्राप के कारण यम को धरती पर पालियों का शासन संभालना पड़ा और वे यमराज कहलाये। जबकि सूर्य ने धरती, पाताल और आकाश तीनों लोकों में लोगों के कल्याण के लिए यमुना को पितरों को दे दिया। तभी से वह सदियों पूर्व से इस भूमण्डल में भी जगत कल्याण के लिए प्रवाहमान है।

यमुना जी यमराज की बहन, सूर्य भगवान की पुत्री, भगवान श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों में कालिन्दी के नाम से प्रसिद्ध है। यमुना का उद्गम स्थान यमुनोत्री के बन्दरपुच्छ नामक स्थान से माना जाता है। यहां से एक किलोमीटर दूर कालिन्द पर्वत से पवित्र यमुना नदी अवतरित होती है। यमुना का उद्गम स्थल यमुनोत्री से मात्र एक किमी की दूरी पर है।

यमुना नदी के पवित्र जल की विशेषता है कि… अपने उद्गम स्थल से लेकर गंगा नदी में विलीन होने तक इसका जल श्याम या कृष्ण रंगी होता है। इसलिए इसका नाम कालिंदी भी प्रसिद्ध है। कालिंदी पर्वत पर सप्तऋषि कुंड और सप्त सरोवर भी है।

कालिंदी पर्वत से नीचे यमुनोत्री के समीप यमुना जैसे शिशु रुप में होती है। यहां उसका जल साफ-पवित्र और चांदी की आभा वाला ठंडा होता है। यहां से आगे बढऩे पर यमुना अन्य छोटे प्राकृतिक जल स्त्रोतों से मिलकर एक विशाल नदी में बदल जाती है। यमुनोत्री के पास यमुना का प्रवाह उत्तर-पूर्व की ओर हो जाता है। इसलिए इसे यमुनोत्री कहते हैं। एक ओर मान्यता के अनुसार इस स्थान पर यमुना नदी के उतरने के कारण भी इसे यमुनोत्री कहा जाता है।

यमुनोत्री के कपाट हर वर्ष 6 माह के लिए अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर खुलते हैं और दीपावली के पर्व पर बंद हो जाते हैं। हर साल देश विदेश से लाखों श्रद्धालु यमुनोत्री पहुंचते हैं और मां यमुना के दर्शन करते हैं।

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