इस वजह से मुझे पीछे हटना पड़ा वरना आज उत्तराखंड में 22 जिले होते: हरीश रावत

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इस वजह से मुझे पीछे हटना पड़ा वरना आज उत्तराखंड में 22 जिले होते: हरीश रावत

देहरादून (उत्तराखंड पोस्ट) उत्तराखंड के पूर्व सीएम हरीश रावत को सत्ता जाने के दो साल बाद भी इस बात का मलाल है कि वे राज्य में नए जिलों के गठन का फैसला नहीं ले पाए। हरीश रावत ने इस पर विस्तार से बताते हुए कहा कि अगर राज्य में राष्ट्रपति शासन नहीं लगा होता तो उत्तराखंड में


इस वजह से मुझे पीछे हटना पड़ा वरना आज उत्तराखंड में 22 जिले होते: हरीश रावत

देहरादून (उत्तराखंड पोस्ट) उत्तराखंड के पूर्व सीएम हरीश रावत को सत्ता जाने के दो साल बाद भी इस बात का मलाल है कि वे राज्य में नए जिलों के गठन का फैसला नहीं ले पाए। हरीश रावत ने इस पर विस्तार से बताते हुए कहा कि अगर राज्य में राष्ट्रपति शासन नहीं लगा होता तो उत्तराखंड में आज 22 जिले होते।

हरीश रावत ने कहा कि नए जिलों के गठन के लिए मेरी सरकार ने सौ करोड़ का प्राविधान रखा था, लेकिन राज्य में बदली राजनीतिक परिस्थ्तियों में हमें नये बजट प्रस्ताव में इसे छोड़ना पड़ा। यह मद थी, नये जिलों व कमिश्नरियों के सृजन की। दो नई कमिश्नरियां व नौ नये जिलों के निर्माण के लिये प्रथम वर्ष में यह राशि पर्याप्त थी।

बदली हुई राजनैतिक परिस्थितियों में इस निर्णय को छोड़ने पर मुझे गहरा दुःख हुआ। नये जिलों व कमिश्नरियों का प्रस्ताव विभाग द्वारा बड़े परिश्रम के साथ तैयार किया गया था। दो बार बिना एजेंडा आईटम के रूप में हमने मंत्रिमण्डल में भी इस पर चर्चा की, कुछ विरोध था।

कुछ विधायकों का तर्क था कि, उनके वर्तमान जिले के बंटवारे से उन्हें नुकसान हो सकता है। कुछ मंत्रिगणों का कहना था कि, इससे नये क्षेत्रों में भी जिला बनाये जाने की मांग उठेगी और उन्हें परेशानी होगी। मैंने रास्ता निकालने का बड़ा प्रयास किया। राजनैतिक इच्छा शक्ति के बावजूद अन्ततः धन के अभाव में इस कार्य को चुनाव के बाद के लिये छोड़ दिया। छोटे जिले विकास की दृष्टिकोण से बहुत अच्छे हैं, चम्पावत, रूद्रप्रयाग इसके उदाहरण हैं।

यदि हमारा बजट नहीं गड़बड़ाया होता, राज्य में राष्ट्रपति शासन नहीं लगा होता तो राज्य में आज 22 जिले होते। मैंने सर्वाधिक नई तहसीलें व उपतहसीलें खोली। तहसीलें नागरिक सुविधा देती हैं मगर विकास में अधिक मद्दगार नहीं हैं। फिर भी मैंने जहां भी सम्भव था तहसीलें व नगर-निकाय खोले। नई तहसीलों की तो शायद एकाध स्थान को छोड़कर भविष्य में मांग नहीं आयेगी। शहरीकरण एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। आगे भी बहुत सारे शहरी पालिकायें अस्तित्व में आयेंगी और उनका गठन होना चाहिये।

सरकार को प्रोएक्टिव तौर पर शहरीकरण को बढ़ावा देना चाहिये। राज्य में शहरीकरण की गति को बढ़ाना आवश्यक है। मैंने इस सोच को बढ़ाने के लिये 22 नये शहरी क्षेत्र गठित करने हेतु यू-हुड्डा नाम से संस्था गठित की और भराड़ीसैंण, चिन्यालीसौंण तथा गरूड़ाबाज व मुक्तेश्वर को पायलट प्रोजक्ट हेतु चयनित किया गया।

सरकार कभी-2 अंधी होती है। नये विकासखण्ड व विकासखण्डों का पुनर्गठन एक बड़ा काम है। राज्य को इसकी बड़ी आवश्यकता है। मैंने अपना राजनैतिक जीवन एक ब्लॉक प्रमुख के तौर पर प्रारम्भ किया।

सार्वजनिक जीवन के प्रारम्भिक वर्षों में ही मैं नये विकासखण्डों के गठन व पुनर्गठन की आवश्यकता को समझ गया था। भिकियासैंण विकासखण्ड का मैं प्रमुख रहा। ब्लॉक मुख्यालय में घुसने के लिये एक पड़ोसी ब्लाॅक ताड़ीखेत से होकर आना होता था। प्रमुख कक्ष की खिड़की से मैं अपने विकासखण्ड के बजाय, पड़ोसी विकासखण्ड के दर्शन करता था।

मुख्यमंत्री बनते ही मैं भारत सरकार के योजना मंत्रालय में नये विकासखण्डों के प्रस्ताव लेकर गया। प्रारम्भिक ना के बाद, हमारे प्रस्तावों पर इतनी जानकारियां व सर्वेक्षण मांग लिये कि, किसी भी मुख्यमंत्री के लिये एक कार्यकाल में इसे अमल में लाना असम्भव था। मैं इस सन्दर्भ में नीति आयोग से भी मिला, उनका रवैय्या अपने पूर्ववर्तीय की तर्ज पर ही था।

केन्द्र सरकार स्वीकृति देने को तैयार नहीं थी। सत्ता से हटने के दो वर्ष बाद भी इस टीस से मैं उभर नहीं पाया हूं। यदि मेरी सरकार नये जिले व ब्लाॅक खोलने तथा ब्लाॅक पुनर्गठन में सफल हो गई होती, तो राज्य को बड़ा फायदा होता। इन दो निर्णयों की शक्ति पर राज्य की विकास दर में एक से डेढ़ प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की जा सकती थी। मैंने अपनी असमर्थता से एक सबक सीखा। जब आप शक्तिशाली होते हैं या राजनैतिक परिस्थितियां आपके अनुकूल होती हैं, सबसे कठिन निर्णय उसी वक्त लेने चाहिये।

मुझे ये दोनों निर्णय वर्ष 2014 के उत्तरार्ध या 2015 के प्रारम्भ में ले लेने चाहिये थे। मैं ऐसा नहीं कर पाया, मैं अपने बेचैन मन को समझता हॅू। सोचता हॅू कहां था उस समय वक्त चारों तरफ भंयकरतम आपदा से निपटने की हिमालय सरीखी चुनौती थी। यही उस समय राज्य की सर्वोच्च प्राथमिकता थी। फिर भी मुझे स्वीकार करना चाहिये कि, मैं ऐसा नहीं कर पाने से दुःखी हॅू। धन मेरे लिये चुनौती नहीं रहा। एक इनोवेटिव मुख्यमंत्री सौ, दो सौ करोड़ के वित्त की कभी भी व्यवस्था कर सकता है।

मुख्यमंत्री के सामने स्पष्ट रोड मैप की आवश्यकता होती है। मेरे सामने स्पष्ट रोड मैप था। मगर केन्द्र सरकार का असहयोग व राज्य की विस्फोटक राजनैतिक स्थिति के कारण, मैं चाहते हुये भी निर्णय नहीं ले पाया।

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