उत्तराखंड में पलायन समस्या पर पूर्व CM हरीश रावत की चिंता के मायने

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उत्तराखंड में पलायन समस्या पर पूर्व CM हरीश रावत की चिंता के मायने

देहरादून [उत्तराखंड पोस्ट ब्यूरो] पलायन पर चिंता जताते हुए उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने गांव के साथ ही शहर को भी बचाने की वकालत की है। हरीश रावत इस संबंध में अपने फेसबुक पेज पर लिखते हैं कि गांवों से निरंतर बढ़ता हुआ पलायन अव्यवस्थित शहरीकरण का बड़ा कारण है। सामान्यतः गांव से


देहरादून [उत्तराखंड पोस्ट ब्यूरो] पलायन पर चिंता जताते हुए उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने गांव के साथ ही शहर को भी बचाने की वकालत की है।

हरीश रावत इस संबंध में अपने फेसबुक पेज पर लिखते हैं कि  गांवों से निरंतर बढ़ता हुआ पलायन अव्यवस्थित शहरीकरण का बड़ा कारण है। सामान्यतः गांव से शहरों की तरफ हो रहे पलायन को रोकने के लिये स्मार्ट सिटी के साथ-2 स्मार्ट गांव के लक्ष्य पर भी काम करने की चर्चा होती है। परन्तु उत्तराखण्ड के सन्दर्भ में इस तथ्य को ध्यान में रखने की आवश्यकता है कि हम स्मार्ट गांव के नारे की बजाय उत्पादक गांव अर्थात गांव को उत्पादन केन्द्र बनाने पर ध्यान केन्द्रीत करें। उत्तराखण्ड में सन् 2020 तक गांव से पलायन की वर्तमान स्थिति बनी रही तो राज्य के नगरीय क्षेत्रों में 30 प्रतिशत हिस्सा झोपड़ पट्टियों व 45 प्रतिशत हिस्सा अनियोजित सीमेंट कंक्रीट की बसासतों का होगा।

उन्होंने आगे लिखा कि मैंने चुनाव के समय विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों के वोटों की समीक्षा के दौरान पाया कि राज्य की लगभग 40 प्रतिशत विधानसभा क्षेत्रों के वोटरों की संख्या में वर्ष 2012 की तुलना में 2017 में 20 प्रतिशत से लेकर 42 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है। बद्रीनाथ व पिथौरागढ़ विधानसभा क्षेत्र को छोड़कर उनमें से प्राय सभी विधानसभा क्षेत्र शहरी हैं या मैदान में हैं। इन क्षेत्रों में आबादी की इस वृद्धि दर से राज्य के योजनाकारों को चिन्तित होना चाहिये। इन क्षेत्रों में प्राकतिक जल निकासी क्षेत्र जिन्हें हम नाले, खाले या नदी क्षेत्र कहते हैं। वहां अवैध बस्तियों या कब्जे बढ़े हैं। कोटद्वार में आया जलसैलाब इसी का परिणाम है। देहरादून सहित हमारे अधिकांश तलहटी में बसे हुए नगरीय क्षेत्र जल सैलाब के आसन्न संकट के सांधे में है। यह खतरा बरसात दर बरसात टल मात्र रहा है। ये क्षेत्र पानी निकासी तंत्र के बंद होने के कारण प्रतिवर्ष जल जन्य रोगों जैसे डेंगू, चिलिया, चिकन गुनिया की चपेट में आते हैं।

इस चुनौती का उत्तर नियोजित शहरीकरण है। इस समय राज्य में लगभग 40 प्रतिशत आबादी शहरों या अद्र्वशहरों के दायरे में हैं। लोग रोजगार, अच्छी स्वास्थ्य व शिक्षा सुविधा के लिए शहरों की तरफ आयेंगे और यदि राज्य की वर्तमान विकास दर बनी रहेगी तो वर्ष 2020-21 तक हमारे राज्य में प्रतिव्यक्ति औसत आय 3 लाख रूपये से ऊपर होगी। इस बढ़ी हुई आमदनी के साथ और अधिक लोग अच्छी शिक्षा व स्वास्थ्य व रोजगार के लिये शहरों की तरफ आयेंगे।

इस चुनौती का सामना करने के लिये दो दिशाओं में काम करने की आवश्यकता है-

  • पहला गांवों को योजनाबद्ध तौर पर विपणन आधारित उत्पादन केन्द्रमें बदला जाये ताकि बेबसी का पलायन रूके।
  • दूसरा सरकार नियोजित शहरीकरण को बढ़ावा देने के साथ-2 राज्य की 50 प्रतिशत आबादी को गांवों के 3 कि0मी0 के दायरे में शहरों जैसी सुविधायें प्रदान करे। अर्थात नये शहरी व अद्र्वशहरी क्षेत्र विकसित करें ।

हरीश रावत आगे लिखते हैं कि वर्तमान सरकार भी राज्य की इन आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील प्रतीत होती है। मैंने अभी अभी राज्य के मुख्यमंत्री का एक बयान देखा है, उन्होंने 500 नये शहरी क्षेत्र गठित करने का निश्चय व्यक्त किया है। उनका यह निश्चय स्वागत योग्य है। वर्ष 2015 में ऐसे 36 क्षेत्र शहरी विकास विभाग को इंगित किये गये थे जहां हम नये नगरीय बसासतें बना सकते हैं। इनमें से भराणीसैंण, चिन्यिालीसौंड़, गरूड़ाबाज (जागेश्वर) व मुक्तेश्वर में कुछ काम भी प्रारम्भ हुआ है। इस उदेश्य को पूरा करने के लिये उत्तराखण्ड यू-हुड्डा (उत्तराखण्ड हाउसिंग एण्ड अर्बन डेवलपमेंट अथोरिटी) का गठन कर नई बसासतें बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी। यू-हुड्डा को यह दायित्व भी सौंपा गया कि काशीपुर, गदरपुर और रूद्रपुर में सरकार के पास उपलब्ध कुछ भूमि पर टाउनशिप बनाकर उससे अर्जित धन का उपयोग यू-हुड्डा राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में नई बसासतें बनाने में करें। यू-हुड्डा के लिये धन की उपलब्धत्ता बढ़ाने के उदेश्य से ही देहरादून के टी गार्डन एरिया में एक नई स्मार्ट सिटी बनाने का निश्चय किया गया था। मेरा मानना है कि राज्य अपने संसाधनों से शायद ही नई बसासतें बनाने में सफल हो पायेगा। राज्य को इस हेतु कोई ऐसा उपाय ढूढ़ना पड़ेगा जहां से ग्रामीण क्षेत्रों की बसासतों को बसाने और नई नगर पचायतों व नगर पालिकाओं को विकसित करने के लिए धन उपलब्ध कराया जा सके। दुर्भाग्य से देहरादून स्मार्ट सिटी का प्रपोजल बहुत आगे बढ़ने के बाउजूद राजनैतिक कुप्रचार का शिकार हो गया, शायद चुनाव की निकटता के कारण ऐसा हुआ।

पूर्व सीएम कहते हैं कि राज्य की 92 शहरी ईकाइयों में से 20 नगर पंचायतों का गठन वर्ष 2015-16 में हुआ है और 7 नगर पंचायतों को उच्चिकृत किया गया। यह एक सुनियोजित प्रयास था शहरीकरण को बढ़ावा देने का। पिछली सरकार ने इस नियोजित शहरीकरण की आवश्यकता को देखते हुए निम्न दस सूत्रों पर कार्य प्रारम्भ किया था।

  • नई नगर पंचायतों का गठन और गठित नगर पंचायतों को नगर पालिका के रूप में उच्चीकृत करना।
  • ग्रामीण आंचलों में जिला मुख्यालयों के निकट सैटेलाईट टाउनशिप विकसित करना।
  • नगरीय क्षेत्रों में परम्परागत रूप से जल श्रोतों के रूप में जो छोटी नदियां हैं उनमें रिवरफ्रन्ट डेवलप किया जाय और रिस्पना में साबरमति (गुजरात) की तर्ज पर रिवरफ्रन्ट डैवलैपमेन्ट का कार्य प्रारम्भ किया गया और राज्य में रिवरफ्रन्ट अथोरिटी का गठन किया गया।
  • अद्र्वशहरी केन्द्रों विशेषतः उद्योगिक केन्द्रों के निकटवर्ती गांवों को पैरि अर्बन एरियाज मान कर वहाॅ सड़कों, नालियों और शौंचालयों का निर्माण, तालाबों की सुरक्षा व स्ट्रीट लाईट की व्यवस्था को सुदृढ़ कराया जाय और इस हेतु ग्रामीण ड्रेनेज विभाग भी गठित किया गया।
  • नियोजित शहरीकरण के लिए आबादी की आवश्यकता अनुसार छोटे-बड़े घर उपलब्ध कराने आवश्यक हैं। एम0डी0डी0ए0 को प्रारम्भ में यह दायित्व सौंपा गया, उन्होंने विभिन्न कैटेगिरी के आवासों का निमार्ण भी किया। राज्य की आवश्यकता को देखते हुए तत्कालीक सरकार ने उत्तराखण्ड जन आवास योजना प्रारम्भ की। रूद्रपुर से इस योजना को प्रारम्भ किया गया।
  • राज्य की सभी मलिन बस्तियों का नियमितिकरण करने का कार्य प्रारम्भ किया गया, उदेश्य वर्तमान कब्जे धारकों को अच्छी आवसीय सुविधा व मालिकाना हक देना तथा भविष्य के सम्भावित कब्जों को कानूनी अपराध घोषित कर रोकना।
  • अन्तर शहरीय परिवहन सुविधा विस्तार हेतु दो नये ट्रान्सपोर्ट काॅरपोरेशन-1 देहरादून व हल्द्वानी में गठन किया जाय। राज्य के शहरी ट्रान्सपोर्ट को आधुनिक रूप देने के लिये राज्य मैंट्रो काॅरपोरेशन का विधिवत गठन किया गया।
  • शहरीय क्षेत्रों में फ्लाई ओवर, ओवरब्रीज, अण्डर पास, टनल, रोपवे आदि के निर्माण हेतु राज्य अवस्थापना निर्माण निगम गठित किया गया।
  • देहरादून जैसे शहर से लगभग 50 कार्यालयों को आसपास सैटेलाईट बसासतों में स्थानातरित किया जाय।
  • कूड़ा प्रबन्धन को व्यवसायिक दृष्टिकोण से संचालित करने का फैसला लिया गया।

हरीश रावत कहते हैं कि एक स्पष्ट विजन और कार्ययोजन के बिना यह भगीरथ कार्य पूरा नहीं हो सकता है। पिछली सरकार ने एक खाका खींचा था। मुझे उम्मीद है कि पिछली सरकार के बनाये गये ढंाचे व खाके पर वर्तमान सरकार शहरीकरण के उत्तराखण्ड मॉडल पर कार्य प्रारम्भ करेगी। इस कार्य को आगे बढ़ाने के लिये साधन, समय, दृढ इच्छा शक्ति व स्पस्ट दृष्टिकोण आवश्यक है। राज्य को शहरीकरण के क्षेत्र में केन्द्र सरकार की योजनाओं का लाभ भी मिल सकता है। वस्तुतः हमें अपने स्वयं के संसाधन विकसित करने होंगे। चरणवद्ध तरीके से राज्य अगले पांच वर्षों में न केवल ग्रामीण अंचलों में कुछ नये टाउनशिप बना सकता है, बल्कि ये नये ग्रोथ सैन्टर राज्य की विकास दर को नई ऊंचाई देने, रोजगार पैदा करने व पलायन को जिलों तक रोकने में सफल होंगे।

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