खुलासा | CM रहते हुए इन मजबूरियों के चलते हरीश रावत ने नहीं लिए अहम फैसले !
देहरादून [उत्तराखंड पोस्ट ब्यूरो] पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहते हुए कुछ अहम फैसले न ले पाने का खुलासा किया है। इतना ही नहीं हरीश रावत का कहना है कि इन फैसलों का न ले पाने का दुख उन्हें आज भी सताता है। आखिर ऐसे कौन से फैसले थे औऱ उन्हें लेने
देहरादून [उत्तराखंड पोस्ट ब्यूरो] पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहते हुए कुछ अहम फैसले न ले पाने का खुलासा किया है। इतना ही नहीं हरीश रावत का कहना है कि इन फैसलों का न ले पाने का दुख उन्हें आज भी सताता है। आखिर ऐसे कौन से फैसले थे औऱ उन्हें लेने में एक राज्य के मुखिया के सामने क्या मजबूरियां थी जानिए हरीश रावत की नीचे दी गई फेसबुक पोस्ट में-
हरीश रावत ने अपने फेसबुक पेज पर ‘कुछ निर्णय जो ले न सका’ शीर्षक के साथ लिखा है कि व्यक्तिगत जीवन में आप कई निर्णय नहीं ले पाते हैं, कुछ परिस्थितियोंवश, कुछ सोच या संकल्प के अभाव में, सार्वजनिक जीवन में भी यही बात लागू होती है। जब आप पद विशेष से हटते हैं तो, आप को कुछ निर्णय न ले पाने और कुछ को लागू न कर पाने का दुःख होता है। एक पूर्व मुख्यमंत्री के तौर पर जब मैं, पीछे की तरफ देखता हॅूं तो जहाॅ मुझे कई कठिन निर्णयों को लेने व उन्हें लागू करने का संतोष होता है, तो कुछ ऐसे भी मागें थी, जिन पर मैं निर्णय लेना चाहता था, ले नहीं पाया, इसका दुःख भी है।
यदि मेरे मंत्रिमण्डल द्वारा लिये गये निर्णयों व मेरी घोषणाओं की सूची बहुत लम्बी है, तो बहुत सारे ऐसे भी निर्णय हैं, जिन्हें मैं नहीं ले पाया। कुछ मामलों में निर्णय लिये, परन्तु समयाभाव वे लागू नहीं हो पाये। यूं मैं अपनी 94 प्रतिशत घोषणाओं व निर्णयों को क्रियान्वित कर पाया हॅू, इसका मुझे संतोष है। मगर कुछ निर्णय न ले पाने का मुझे दुख है, ऐसा ही एक निर्णय नये जिलों व मण्डलों का सृजन भी है। मैं इनका सृजन राजनैतिक कारणों से नहीं बल्कि प्रशासनिक/विकास के दृष्टीकोण से करना चाहता था। मैंने राज्य के छोटे जनपद चम्पावत, रूद्रप्रयाग, उत्तरकाशी व बागेश्वर की विकास यात्रा का गहराई से अध्यन किया। मैंने देखा की इन जनपदों ने पिछले दस वर्षों में अपने बड़े भाईयों की तुलना में तेजी से तरक्की की है। इन जनपदों मंे शिक्षा, सड़क सम्पर्क, विद्युतिकरण, पेयजल आपूर्ति, समाज कल्याण पैन्शनों का अच्छादन, बाल-विकास, महिला कल्याण कार्यक्रमों का क्रियान्वयन अपने बड़े भाई जनपदों से काफी अच्छा है। निर्मल भारत (अब स्वच्छ भारत) अभियान में इन जनपदों ने बहुत अच्छा किया है। इन जनपदों में जिला योजना सहित मनरेगा आदि केन्द्र वित्त पोषित योजनाओं का क्रियान्वयन भी तुलनात्मक तौर पर अच्छा है। इन जनपदों में प्रशासनिक अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों में सामन्जस्य भी अच्छा रहा है। मैंने अपने आंकलन के सूक्ष्म विश्लेषण में पाया कि ये जिले छोटे होने के कारण बेहतर प्रशासित हैं। यदि मैं वर्ष 2016 में मानव जनित आपदा में नहीं फंस गया होता तो, मैं नये जिले व मण्डल बनाने का निर्णय 2016 में अवश्य ले चुका होता। वर्ष 2016 में, मैं विधानसभा में बहुमत बनाये रखने के संघर्ष में फंस गया । अलग-2 समय में किये गये अध्यनों के आधार पर राज्य में गढ़-कुमाऊ (गैरसैंण), कोटद्वार, वीरोखाल, पुरौला। तीर्थ जनपद, रूड़की, काशीपुर (मालधन के निकट) रानीखेत व सीमान्त जनपद के नाम से नये जिले गठित करना औचित्य सम्मत बन रहा था। इन नये जनपदों के गठन के साथ दो नये मण्डलों का गठन करने का विचार भी मेरे मन में था। इस उद्वेश्य की पूर्ति के लिये मैंने वर्ष 2016-17 के अपने मूल बजट में सौ करोड़ रूपये का प्राविधान नये प्रशासनिक ईकाईयों के गठन की मद में रखवाया । उद्वेश्य था, बजट में हैड होगा तो शेष धन को समायोजित करने में कठिनाई नहीं आयेगी, शेष धन की पूर्ति के लिये मैंने बजट में दो विशेष प्रस्ताव प्रस्तावित किये थे।
वर्ष 2016 के मार्च के महिने में पहले राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया, फिर विधानसभा द्वारा पारित मूल बजट को ना मालूम किन कारणों से संवैधानिक शक्त्तियों ने अनुमोदित करने से इंकार कर दिया। वर्ष 2016 का अगस्त तक का समय गहरे राजनैतिक अनिश्चिय से लड़ते बीत गया। राज्य के हालात ऐसे बन गये कि मुख्यमंत्री को विधानसभा में अपने बहुमत भी शाम व सुबह दोनों बार आंकलन करना पड़ता था। जब आप कमजोर पड़ते हैं, तो अपवाहें भी कम नहीं डराती हैं। यदा कदा समाचार आता था कि दो महत्वपूर्ण व्यक्ति अपने पुत्रों के टिकट के लिये भा0ज0पा0 से सम्पर्क में हैं। मैंने सारी तैयारी के साथ दो बार मंत्रिमण्डल में नये जिलों के गठन पर चर्चा की। मैं अपने एक-दो मंत्री मण्डलीय साथियों को सहमत नहीं करवा पाया। उन्हें नये जिलों के गठन से अपने विधानसभा क्षेत्रों में उठने वाले सवालों का डर था। 3 विधायक भी कुछ नये जिलों के प्रस्ताव का विरोध कर रहे थे।
अन्ततः मैं नये जिलों के गठन का निर्णय नहीं ले पाया। आज भी कभी-कभी रात के एकांत में मुझे यह दुख सताता रहता है। गंवांया गया अवसर फिर शायद ही आता है। (उत्तराखंड पोस्ट के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं, आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं)
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