फौजी की कविता | ना छोड़ो अब देवभूमि को, इसका आंचल बड़ा सुहाना है

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फौजी की कविता | ना छोड़ो अब देवभूमि को, इसका आंचल बड़ा सुहाना है

उत्तराखंड़ के जवान कमल कार्की ना सिर्फ भारत मां की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने के लिए हरदम तैयार रहते हैं बल्कि अपनी कविताओं से समाज को संदेश देने की भी कोशिश करते हैं। कलम के धनी जवान कमल कार्की की उत्तराखंड की सबसे बड़ी समस्या में से एक ‘पलायन’ पर लिखी


उत्तराखंड़ के जवान कमल कार्की ना सिर्फ भारत मां की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने के लिए हरदम तैयार रहते हैं बल्कि अपनी कविताओं से समाज को संदेश देने की भी कोशिश करते हैं।

कलम के धनी जवान कमल कार्की की उत्तराखंड की सबसे बड़ी समस्या में से एक ‘पलायन’ पर लिखी कविता को लोग काफी सराह रहे हैं।

कमल कार्की अपनी इस कविता में उत्तराखंड वासियों से पलायन ना करने की अपील कर रहे हैं।

कमल ने अपनी ये कविता उत्तराखंड पोस्ट को भेजी है, जिसे हम आपके सामने पेश कर रहे हैं। आप भी पढ़िए इस कविता को जिसका शीर्षक है देवभूमि

ना छोड़ो अब देवभूमि को इसका आँचल बड़ा सुहाना है,

इसकी नदियां, इसके पहाड़, शुद्ध हवा पानी की बौछार,

गंगा के पावन आंचल में बहती है वो नदियां की धार,

सरल सुशीले कोयल की अब तो कहती है यही पुकार,

ना छोड़ो अब देवभूमि को इसका आंचल बड़ा सुहाना है!

इसी में सपने, इसी में अपने, इसी में सारी यादें संजोए थे,

इसी में हंसे, इसी में नाचे, इसी में बारो रोये थे,

इसी में बद्री, इसी में केदार, इसी में मां गंगा भी समाए हैं,

ना छोड़ो अब देवभूमि को इसका आंचल बड़ं सुहाना है,

इसका कंकड़, इसका पंथर ये अंन बड़ा उपजाऊ देती है,

इसका मौसम इसके पहडं “झरने” भी बड़े सुहाने हैं,

मां का “पयार” दादी की लोरी याद बड़े वो आते हैं,

ना छोड़ो अब “देवभूमि” को इसका आंचल बड़ा सुहाना है,

उन खेतों, वो खलियानों की खुशबु बड़ी निराली है,

हरियाली के दामन की सुंदर यही कहानी है,

गांव के अपने यारों की यादें वही पुरानी है,

ना छोड़ो अब देवभूमि को इसका आंचल बड़ा सुहाना है.

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