LIC को 5,000 करोड़ की रकम उपहार में दे देते भारतीय, हैरान कर देगी खबर

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LIC को 5,000 करोड़ की रकम उपहार में दे देते भारतीय, हैरान कर देगी खबर

नई दिल्ली (उत्तराखंड पोस्ट ब्यूरो) हर कोई आजकल भविष्य की जरूरत मानकर इंश्येंस कराता है। मगर आपको यह खबर जानकर होग कि साल 2016-2017 लोगों ने इंश्योरेंस LIC के पास अपने 5,000 करोड़ रूपये यू ही छोड़ दिए। जी हां, बता ऐसा इसलिए क्योंकि यह हकीकत है कि देश की ज्यादातर इंश्योरेंस कंपनियों के कम-से-कम


नई दिल्ली (उत्तराखंड पोस्ट ब्यूरो) हर कोई आजकल भविष्य की जरूरत मानकर इंश्येंस कराता है। मगर आपको यह खबर जानकर होग कि साल 2016-2017 लोगों ने इंश्योरेंस LIC के पास अपने 5,000 करोड़ रूपये यू ही छोड़ दिए।

जी हां, बता ऐसा इसलिए क्योंकि यह हकीकत है कि देश की ज्यादातर इंश्योरेंस कंपनियों के कम-से-कम 25 फीसदी पॉलिसीधारक सालभर बाद ही प्रीमियम देना बंद कर देते हैं। एक साल के अंदर पॉलिसी लैप्स होने पर बीमाधारक अपनी लगभग पूरी रकम खो देता है। यानी, उसे पैसे बिल्कुल भी वापस नहीं होते क्योंकि इंश्योरेंस कंपनियां कमीशन समेत अन्य लागत जोड़कर प्रीमियम की रकम से काट लेती हैं।

इस खबर के सामने आने के बाद यह कहना गलत नही होगा कि भारतीय लोग इंश्योरेंस आपात स्थिति में मदद के मद्देनजर नहीं लेते, बल्कि हम इसे टैक्स बचाने का एक जरिया मानकर निवेश करते हैं। हालांकि, आंकड़े बताते हैं कि नियमित प्रीमियम भरने में लगी एक चौथाई रकम बेकार चली जाती है। इसलिए, देश में इंश्योरेंस खरीदनेवालों का पर्सिस्टेंसी रेशियो नीचे है। पर्सिस्टेंसी रेशियो ऐसे पॉलिसीधारकों का अनुपात होता है जो इंश्योरेंस खरीदने के एक साल बाद भी प्रीमियम देते रहते हैं।

आपको यकीन करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन वित्त वर्ष 2016-17 में सरकारी पॉलिसी प्रदाता कंपनी एलआईसी ने 22,178.15 करोड़ रुपये मूल्य की रेग्युलर प्रीमियम पॉलिसीज बेची। यह आंकड़ा देश की पूरी इंश्योरेंस इंडस्ट्री का 44% है। अगर इनमें 25% लैप्स रेशियो निकालें तो इसका मतलब है कि लोगों ने एक वित्त वर्ष में अकेले एलआईसी के पास 5,000 करोड़ रुपये यूं ही छोड़ दिए।

पॉलिसीधारकों द्वारा बीच में ही पॉलिसी से निकल जाने का एक कारण यह भी है कि उन्हें बाद में उन्हें लगता है कि वह गलत पॉलिसी लेकर फंस गए हैं। यानी, कंपनियां/एजेंट कई बार गलत दावे करके पॉलिसी बेच लेते हैं, लेकिन बाद में जब पॉलिसीधारक पूछताछ और जांच-पड़ताल करता है तो उसे लगता है कि उसने गलत जगह पैसे लगा दिए, इसलिए वह प्रीमियम भरना बंद कर देता है।

एक और बात ये कि कि जो लोग अपना सारा प्रीमियम भरते हैं, वे भी ली हुई पॉलिसी के बारे में परिजनों को नहीं बताते। इसका परिणाम यह है कि निवेशकों के करीब 15,000 करोड़ रुपये इंश्योरेंस कंपनियों के पास यूं पड़े हैं इस रकम पर कोई दावेदारी पेश नहीं कर रहा है।

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