पढ़िए फौजी की कविता, आया कैसा संकट ये पुण्य भूमि पर…
देहरादून [उत्तराखंड पोस्ट ब्यूरो] उत्तराखंड़ के जवान कमल कार्की ना सिर्फ भारत मां की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने के लिए हरदम तैयार रहते हैं बल्कि अपनी कविताओं से समाज को संदेश देने की भी कोशिश करते हैं। (उत्तराखंड पोस्ट के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं, आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी
देहरादून [उत्तराखंड पोस्ट ब्यूरो] उत्तराखंड़ के जवान कमल कार्की ना सिर्फ भारत मां की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने के लिए हरदम तैयार रहते हैं बल्कि अपनी कविताओं से समाज को संदेश देने की भी कोशिश करते हैं।
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कलम के धनी आईटीबीपी में तैनात जवान कमल कार्की ने तपती धरती पर एक कविता लिखी है, कमल की इस कविता को लोग काफी सराह रहे हैं।
कमल ने अपनी ये कविता उत्तराखंड पोस्ट को भेजी है, जिसे हम आपके सामने पेश कर रहे हैं। आप भी पढ़िए इस कविता को जिसका शीर्षक है- “भू-गर्भ की तपन”
“भू-गर्भ की तपन”
आज भू-गर्भ है तपन की आग,
धरा पर आई वो विशाल दरारे,
खग’थल’नभ सब तप रहा,
नीर’नयन’प्राणी!सब सूखे पड़े!
त्राहि त्राहि मै सब जीव-जगत है,
मुरझा उठी तरू की वो कलीयाँ,
ना छाव मिले ना सित पवन,
तप रहा प्राची-प्रांगण अपना,
झुरमुट-झुरमुट होती वो खेती,
सूखा पड़ा वो कंठ कराल,
अब विनाश सहे ना मेरे ये नयन,
प्यासा पंछी तप कर गिर रहा,
वायु सजोटे धूल कणो को,
त्राहि त्राहि अकाल महामारी,
आया कैसा संकट ये पुण्य भूमि पर,
व्याकुल है मेरे विविध विचार!
कल तक थी जो हरि भरी,
हिम सागर भी पिघल गया अब,
दोषी है इसका अब कौन?
रे मुसकिल मै अब पुण्य भूमि ये,
सोच-सोच के कवि का मष्तिक,
कैसे होगा इसका निदान,
व्याकुल है मेरे विविध विचार!
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