पंचकेदार में सर्वोपरी है मदमहेश्वर धाम, शिव की नाभि की होती है पूजा

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पंचकेदार में सर्वोपरी है मदमहेश्वर धाम, शिव की नाभि की होती है पूजा

देहरादून (उत्तराखंड पोस्ट ब्यूरो) यूं तो शिव के हज़ारों मंदिर भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व में आपको मिल जाएंगे लेकिन मदमहेश्वर के दर्शन निस्संदेह अलौकिक और सर्वोपरि है। गढ़वाल के सुरम्य पर्वतांचल में स्थित मदमहेश्वर पंचकेदार में सर्वोपरी है। पंचकेदार में केदारनाथ,मदमहेश्वर, रुद्रनाथ, तुंगनाथ और कल्पेश्वर शामिल हैं। इन पांच केदारों में शिव के


देहरादून (उत्तराखंड पोस्ट ब्यूरो) यूं तो शिव के हज़ारों मंदिर भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व में आपको मिल जाएंगे लेकिन मदमहेश्वर के दर्शन निस्संदेह अलौकिक और सर्वोपरि है।

गढ़वाल के सुरम्य पर्वतांचल में स्थित मदमहेश्वर पंचकेदार में सर्वोपरी है। पंचकेदार में केदारनाथ,मदमहेश्वर, रुद्रनाथ, तुंगनाथ और कल्पेश्वर शामिल हैं। इन पांच केदारों में शिव के अलग-अलग अंगों की पूजा की जाती है। केदारनाथ में शिव के पृष्ठ भाग की, तुंगनाथ में उनकी भुजाओं की, रुद्रनाथ में उनके मुख की, कल्पेश्वर में जटाओं की और मदमहेश्वर में उनकी नाभि की पूजा होती है। पंचकेदारों की अनोखी और प्राकृतिक दृश्यावलियां बरबस ही पर्यटकों के मन मोह लेती हैं।

भगवान मदमहेश्वर की कथा | किंवदंतियों के अनुसार, जब भगवान शिव खुद को पांडवों से छिपाना चाहते थे, तब बचने के लिए उन्होंने स्वयं को केदारनाथ में दफन कर लिया, बाद में उनका शरीर मदमहेश्वर में दिखाई पड़ा। एक मान्यता के मुताबिक मदमहेश्वर में शिव ने अपनी मधुचंद्ररात्रि मनाई थी। कहा जाता है कि जो व्यक्ति भक्ति से या बिना भक्ति के ही मदमहेश्वर के माहात्म्य को पढ़ता या सुनता है उसे शिवलोक की प्राप्ति होती है।

यहां भगवान शिव के दर्शन के लिए आपको गर्मियों में जाना होगा क्योंकि मदमहेश्वर मंदिर सर्दी के मौसम में बंद रहता है। शीतकाल में मंदिर के अंदर रखी रजत की मूर्तियों को उखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर में स्थानांतरित कर दिया जाता है। वहीं ग्रीष्मकाल में पौराणिक विधि विधान के साथ मदमहेश्वर मंदिर खोला जाता है जहां देश-विदेश के शिव भक्त भगवान मदमहेश्वर के दर्शन कर विशेष पुण्य लाभ लेने हर वर्ष पहुंचते हैं।

मदमहेश्वर में पिंडदान से मिलेगा विशेष लाभ

कहते हैं कि जो व्यक्ति इस क्षेत्र में पिंडदान करता है वह पिता की सौ पीढ़ी पहले के और सौ पीढ़ी बाद के तथा सौ पीढ़ी माता के तथा सौ पीढ़ी श्वसुर के वंशजों को तरा देता है।

“शतवंश्या: परा: शतवंश्या महेश्वरि:। मातृवंश्या: शतंचैव तथा श्वसुरवंशका:।।

तरिता: पितरस्तेन घोरात्संसारसागरात्। यैरत्र पिंडदानाद्या: क्रिया देवि कृता: प्रिये।।” (केदारखंड, ४८,५०-५१)।

कैसे पहुंचे मदमहेश्वर धाम | मदमहेश्वर जाने के लिए सबसे पहले दिल्ली से हरिद्वार, ऋषिकेश होते हुए रुद्रप्रयाग जाना पड़ेगा। रुद्रप्रयाग से केदारनाथ जाने वाली सड़क पर गुप्तकाशी से कुछ पहले कुण्ड नामक जगह आती है जहां से ऊखीमठ के लिए सड़क अलग होती है। ऊखीमठ में मुख्य बाजार से सीधा रास्ता उनियाना जाता है जो मदमहेश्वर यात्रा का आधार स्थल है। उनियाना से मदमहेश्वर की दूरी 23 किलोमीटर है जो पैदल नापी जाती है। 

यहां केवल सीजन में ही जाया जा सकता है। मदमहेश्वर के कपाट जब भी खुलते हैं, आप जा सकते हैं। आमतौर पर मदमहेश्वर के कपाट केदारनाथ के लगभग साथ ही खुलते हैं और केदारनाथ के कपाट बन्द होने के बाद बन्द होते हैं। अगर चार धाम यात्रा सीजन के अलावा आप वहां जाना चाहते हैं तो रुद्रप्रयाग जिला मुख्यालय से अनुमति लेनी पड़ेगी।

प्राकृतिक सौन्दर्य मन मोह लेगा  | यहां जितना सुकून आपको भगवान के दर्शन से मिलेगा उतना ही मनमोहक यहां का वातावरण भी है। दूर दूर तक फैली पहाड़ी चोटियां और प्राकृतिक नज़ारा देख आप एक बारगी अपने दुख और तकलीफों को भूल जाएंगे।

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