गुरु नानक जयंती | ऐसे थे महान गुरु नानक देव जी

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गुरु नानक जयंती | ऐसे थे महान गुरु नानक देव जी

देहरादून [उत्तराखंड पोस्ट ब्यूरो] सिख धर्म के पहले गुरु और संस्थापक गुरु नानक देव का जन्म कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इसी दिन गुरु नानक देव का जन्म हुआ था। सिख धर्म को मानने वाले लोग इस दिन को बड़े ही धूमधाम से प्रकाश उत्सव और गुरु पर्व के रूप में मनाते हैं। गुरुनानक देव


देहरादून [उत्तराखंड पोस्ट ब्यूरो] सिख धर्म के पहले गुरु और संस्थापक गुरु नानक देव का जन्म कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इसी दिन गुरु नानक देव का जन्म हुआ था। सिख धर्म को मानने वाले लोग इस दिन को बड़े ही धूमधाम से प्रकाश उत्सव और गुरु पर्व के रूप में मनाते हैं। गुरुनानक देव ने समाज को एकता में बांधने और जाति-पाति को मिटाने के लिए कई उपदेश दिए थे। गुरु पर्व के अवसर पर आइए जानते हैं गुरु नानक देव जी के बारे में।

नानक देव जी का जन्म 14 अप्रैल, 1469 को उत्तरी पंजाब के तलवंडी गांव (हाल में पाकिस्तान में ननकाना) के एक हिन्दू परिवार में हुआ। नानक का नाम बड़ी बहन नानकी के नाम पर रखा गया। नानक जी के पिता तलवंडी गांव में पटवारी थे। परिवार में गुरु नानक जी के दादा जी शिवराम, दादी बनारस और चाचा लालू थे। गुरुनानक को पारसी और अरबी भाषा का भी अच्छा ज्ञान था।

नानक को बचपन से ही चरवाहे का काम दिया गया था। पशुओं को चराते समय वह घंटों तक ध्यान में रहते थे। एक दिन उनके पशुओं ने पड़ोसियों की फसल को बर्बाद कर दिया। इस पर उनके पिता ने नानक देव जी को खूब डांटा। इसके बाद जब गांव का मुखिया राय बुल्लर फसल देखने गया तो फसल सही थी। यहीं से गुरु नानक देव जी के चमत्कार शुरू हो गए।

राय बुल्लर ने नानक देव जी की दिव्यता को समझकर उन्हें पाठशाला में रखा। इस दौरान उन्होंने हिन्दू धर्म के पवित्र जनेऊ संस्कार से गुजरने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि उनका जनेऊ दया, संतोष और संयम से बंधा होगा। उन्होंने जाति प्रथा का विरोध किया और मूर्ति पूजा में भाग लेने से मना कर दिया।

गुरु नानक का बचपन से ही रुझान अध्यात्म की तरफ ज्यादा था। उनकी इस प्रवृत्ति को देखते हुए पिता कालू ने उनका ध्यान कृषि और व्यापार में लगाना चाहा लेकिन उनके सभी प्रयास व्यर्थ सिद्ध हुए। घोड़ों के व्यापार के लिए पिता की तरफ से दिए गए 20 रुपये को नानक देव जी ने भूखों के भोजन में लगा दिया।

गुरु नानक की बहन नानकी और जीजा जय राम ने उनका विवाह 24 सितंबर, 1487 में मूल चंद की बेटी सुलक्षणा देवी से कर दिया। गुरु नानक द्वारा रीति-रिवाजों का विरोध करने के कारण उनके ससुराल वालों ने पहले शादी करने से मना कर दिया और बारात वापस भेजने की धमकी दे दी।

लड़की पक्ष ने गुरु नानक को मारने की साजिश रची और उन्हें मिट्टी की कच्ची दीवार के पास बैठा दिया।इस साजिश की खबर लगने पर गुरु नानक ने उस दीवार को सदियों तक नहीं गिरने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि यह दीवार सदियों तक उनके विचार की निशानी बनकर रहेगी।

यह दीवार आज भी गुरुद्वारा कंध साहिब, गुरदासपुर पंजाब में एक कांच में बंद है। नानक अपनी बहन और जीजा के साथ सुल्तानपुर में रहने लगे। उनके दो पुत्र श्रीचंद और लक्ष्मीचंद हुए।

1499 में उनकी सुल्तानपुर में मुस्लिम कवि मर्दाना के साथ मित्रता हो गई। नानक और मर्दाना दोनों ही एकेश्वर की खोज के लिए निकल पड़े। अपनी यात्राओं के दौरान नानक जी ने हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही धार्मिक स्थलों की पूजा की।

उनका कहना था प्रतिदिन ईश्वर की आराधना करो। ईमानदार गृहस्थ की तरह रोजगार में लगे रहो। साथ ही वह कहते थे कि अपनी आय का कुछ हिस्सा गरीब लोगों में बांटना चाहिए।

जीवनभर देश-विदेश की यात्रा करने के बाद गुरु नानक जीवन के अंतिम चरण में परिवार के साथ करतारपुर बस गए। उन्होंने 25 सितंबर, 1539 को अपना शरीर त्याग दिया। ऐसा कहा जाता है कि नानक की मृत्यु के बाद उनकी अस्थियों की जगह फूल मिले थे। इन फूलों का हिन्दू और मुस्लि अनुयायियों ने अपनी धार्मिक परंपराओं के अनुसार अंतिम संस्कार किया।

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