फिल्में सिर्फ दो तरह की होती हैं, अच्छी या फिर बुरी: नसीरुद्दीन शाह

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फिल्में सिर्फ दो तरह की होती हैं, अच्छी या फिर बुरी: नसीरुद्दीन शाह

फिल्में सिर्फ दो तरह की होती हैं, अच्छी या फिर बुरी। इनके अलावा फिल्मों की कोई श्रेणी नहीं होती। जागरण फिल्म फेस्टिवल के अंतिम दिन दर्शकों के बीच पहुंचे प्रख्यात सिने अभिनेता नसीरुद्दीन शाह और उनकी पत्नी सिने अभिनेत्री रत्ना पाठक शाह ने दिल खोलकर बातें कीं। उन्होंने सिनेमा, निजी जिंदगी और देहरादून व मसूरी


फिल्में सिर्फ दो तरह की होती हैं, अच्छी या फिर बुरी। इनके अलावा फिल्मों की कोई श्रेणी नहीं होती। जागरण फिल्म फेस्टिवल के अंतिम दिन दर्शकों के बीच पहुंचे प्रख्यात सिने अभिनेता नसीरुद्दीन शाह और उनकी पत्नी सिने अभिनेत्री रत्ना पाठक शाह ने दिल खोलकर बातें कीं। उन्होंने सिनेमा, निजी जिंदगी और देहरादून व मसूरी से अपने लगाव को लेकर बातें कीं। इस दौरान दर्शकों के सवालों के भी उन्होंने बेबाक जवाब दिए।

दैनिक जागरण के सातवें जागरण फिल्म फेस्टिवल का कारवां अब दून से रवाना हो गया। इससे पहले दर्शकों के बीच नसीरुद्दीन शाह और रत्ना पाठक शाह पहुंचे। मिड डे के वरिष्ठ संवाददाता मयंक शेखर ने दोनों कलाकारों के साथ संवाद किया।

देहरादून और मसूरी के साथ जुड़ाव पर नसीरुद्दीन शाह ने कहा कि दून और मसूरी उनके दूसरे घर जैसा है। सेवानिवृत्ति के बाद उनके पिता परिवार के साथ लाइब्रेरी रोड के पास बस गए थे। तब से उनका यहां आना-जाना लगा रहा। इसके बाद उनके दोनों बेटे द दून स्कूल में पढऩे के लिए आए तो रिश्ता और गहरा हो गया।

द दून स्कूल में उन्होंने ‘वसुंधरा’ नामक फिल्म की शूटिंग भी की, लेकिन यह फिल्म रिलीज नहीं हो पाई। उन्होंने कहा कि यहां का प्राकृतिक सौंदर्य दिल को सुकून देता है।
अपनी अदाकारी के लिए पहचाने जाने वाले नसीरुद्दीन शाह ने बड़ी बेबाकी से कहा कि एनएसडी से निकलने के बाद मैंने सोचा था कि ईमानदार पुलिसवाला, भाई जैसी भूमिकाएं ही करने को मिल पाएंगी। कभी ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि जो भूमिकाएं मिलीं, वो मिलेंगी।
उन्होंने कहा कि त्रिदेव के हिट होने के बाद लगा कि अब 10 साल और इंडस्ट्री में टिके रहेंगे और इसके बाद तमाम तरह की फिल्में मिलीं और कॅरियर आगे बढ़ता रहा।

उन्होंने कहा कि किसी भी कलाकार के लिए केवल टैलेंट ही काफी नहीं होता। कलाकार की सफलता में अन्य तमाम कारक मसलन कहानी, निर्देशक, साथी कलाकार आदि भी अहम भूमिका निभाते हैं। इस दौरान उन्होंने कहा कि शक्ति कपूर और वे एक ही क्लास रूम में पढ़े और सफल हुए। लेकिन, उनके साथ के बाकी 20 लोग कहां गए किसी को नहीं पता। हंसते हुए कहा कि एक ही तरह के शिक्षकों और कक्षा में पढऩे के बावजूद शक्ति ने कुछ और सीखा, उन्होंने कुछ और।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि मौजूदा सिनेमा तकनीकी रूप से ज्यादा समृद्ध है। उनके दौर में अच्छी कहानियां तो होती थीं, लेकिन तकनीकी तौर पर कई फिल्में इस स्तर की नहीं थीं।

उन्होंने मौजूदा फिल्मकारों की सिनेमाई समझ और फिल्मांकन की तारीफ की। छोटे शहरों और गांवों की कहानियों व लोगों के फिल्मों की तरफ बढ़ते कदमों को भी उन्होंने एक अच्छा संकेत माना। उन्होंने कहा कि अब रियलिस्टिक सिनेमा का दौर है। फिल्मकार वे फिल्में बना रहे हैं, जो उन्होंने देखा और महसूस किया है।
एक दौर था कि सुने-सुनाए किस्सों से कहानियां बुनी जाती थीं। अन्य सवालों के जवाब में नसीरुद्दीन ने कहा कि उन्हें बस उनके काम के लिए याद किया जाए। उनकी पत्नी ही उनके जीवन में ऐसा सच हैं, जिन्हें वे हमेशा ऐसे ही देखना चाहते हैं। मौजूदा कलाकारों में वे अपना अक्स किसमें देखते हैं इस सवाल पर उन्होंने कहा की जो जैसा है, उसे उसी रूप में जाना जाए।

अंत में उन्होंने कहा कि उनके दौर से लेकर आज तक एक चीज नहीं बदली, वह है कि कलाकार बनने के लिए किससे सलाह ली जाए। डॉक्टर, इंजीनियर, आइएएस समेत तमाम पेशों में जाने के लिए तमाम साधन मौजूद हैं, लेकिन कला के लिए नहीं।

आज भी दूसरों को देखकर ही अदाकारी सीखी जा रही है। उन्होंने कहा कि जन्मजात टैलेंट में वे विश्वास नहीं करते। टैलेंट उतना ही होता है, जितनी उसके लिए मेहनत की जाती है। उन्होंने भावी कलाकारों से कहा कि वे किसी चरित्र में डूबे नहीं, उसे समझें। किसी बीमार व्यक्ति की अदाकारी के लिए बीमार होना जरूरी नहीं, केवल उसे समझने की जरूरत है।

(साभार: दैनिक जागरण)

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