उत्तराखंड के मेले, जिनके बारे में आपको पता होना चाहिए

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उत्तराखंड के मेले, जिनके बारे में आपको पता होना चाहिए

उत्तराखंड में साल भर अलग-अलग उत्सव और मेले का आयोजन होता रहता है। इन मेलों में उत्तराखंड की संस्कृति के विभिन्न रंग देखने के मिलते हैं। बड़ी संख्या में लोग पहुंचकर यहां हर्षोल्लास से लोक गीत गाते हैं तथा एक-दूसरे को बधाइयां देते हैं। खास बात ये है कि इन उत्सवों में देशी-विदेशी सैलानी भी


उत्तराखंड में साल भर अलग-अलग उत्सव और मेले का आयोजन होता रहता है। इन मेलों में उत्तराखंड की संस्कृति के विभिन्न रंग देखने के मिलते हैं। बड़ी संख्या में लोग पहुंचकर यहां हर्षोल्लास से लोक गीत गाते हैं तथा एक-दूसरे को बधाइयां देते हैं। खास बात ये है कि इन उत्सवों में देशी-विदेशी सैलानी भी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। तो आइए जानते हैं उत्तराखंड के कुछ ऐसे ही मेलों और धार्मिक आयोजनों के बारे में।

हरिद्वार कुंभ – उत्तराखंड के चारों धामों, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री एवं यमुनोत्री के लिये प्रवेश द्वार के रूप में प्रसिद्ध हरिद्वार में ज्योतिष गणना के आधार पर ग्रह नक्षत्रों के विशेष स्थितियों में हर बारहवें वर्ष कुम्भ के मेले का आयोजन किया जाता है। मेष राशि में सूर्य और कुम्भ राशि में बृहस्पति होने से हरिद्वार में कुम्भ का योग बनता है।

दशहरा मेला- यह मेला अल्मोड़ा में भव्य रूप से आयोजित होता है। इसमें रावण दरबार के राक्षसों के पुतलों को बाजारों में घुमाकर फूंका जाता है। यह अनूठी परंपरा देश में और कहीं नहीं होती। हल्द्वानी, देहरादून, काशीपुर में भी ऐसा ही दशहरा मेला लगता है।

हरेला मेला-हरेला पूरे कुमाऊं क्षेत्र में मनाया जाता है। यह साल में तीन बार चैत्र नवरात्र और श्रावण नवरात्र के अलावा अश्विन माह में मनाया जाता है। श्रावण हरेला श्रावण महीने के पहले दिन (जुलाई के अंतिम दिनों में) मनाया जाता है। यह हरियाली आने का संकेत है। इस मौके पर पूरे कुमाऊं क्षेत्र में संक्रांति मनाई जाती है और जगह-जगह मेलों का आयोजन होता है। हरेला मेले का आयोजन भीमताल शहर में हर साल हरेला त्योहार के मौके पर 16 व 17 जुलाई को होता है।

उत्तरायनी मेला-वागेश्वर में एतिहासिक, धार्मिक व पारंपरिक दृष्टि से आयोजित इस मेले का आयोजन जनवरी मास में मकर सक्रांति के दिन आयोजित होता है।


नंदाअष्टमी मेला-
नंदाअष्टमी मेले का आयोजन वैसे तो पूरे कुमाऊं क्षेत्र में होता है, लेकिन नैनीताल में नंदादेवी मंदिर और भुवाली का मेला खास है। सितंबर-अक्टूबर में शुक्ल पक्ष अष्टमी के मौके पर नंदाअष्टमी मनाई जाती है। पर्यटक खासतौर पर नंदाअष्टमी मेला देखने के लिए नैनीताल आते हैं।

जिया रानी का मेला – उत्तरायणी में प्रतिवर्ष रानीबाग में वीरांगना जिया रानी के नाम पर जिया रानी का मेला लगता है। रानीबाग, काठगोदाम से 5 किमी दूर अल्मोड़ा मार्ग पर बसा है। रानीबाग में कव्यूरी राजा धामदेव और ब्रह्मदेव की माता जियारानी का बाग था। कहते हैं यहां जिया रानी ने एक गुफा में तपस्या की थी। रात्रि में जिया रानी का जागर लगता है। उत्तरायणी के अवसर पर यहां एक ओर स्नान चलता है तो दूसरी ओर जागर। इसके अलावा बैर आदि को सुनने वालों की भी भीड़ रहती है ।

शरदोत्सव या हेमंतोत्सव | वैसे तो शरदोत्सव या हेमंतोत्सव का आयोजन उत्तराखंड में कई जगह आपको मिल जाएगा लेकिन नैनीताल में इसकी छटा निराली रहती है। यहां मुंबई से कलाकारों, गायकों आदि को बुलाया जाता है। इसके अलावा कुमाऊं के सांस्कृतिक आयोजन भी इस उत्सव के दौरान कौतूहल पैदा करते हैं। इस दौरान नैनीताल का माहौल जबरदस्त होता है और पर्यटक खास तौर पर इस उत्सव में शामिल होने के लिए आते हैं। शरदोत्सव या हेमंतोत्सव का आयोजन नैनीताल शहर में हर साल नवंबर महीने के पहले पखवाड़े में 4 दिन तक होता है।

गर्जिया मेला- रामनगर से करीब 12 किमी दूर कॉर्बेट जंगल में कोसी नदी के बीच उभरे एक पहाड़ की चोटी पर माता गर्जिया (गिरिजा) का मंदिर है। गर्जिया मंदिर में वैसे तो सालभर भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर यहां मेला लगता है तो खूब धूम मचती है।

कालसन का मेला – कालसन का मेला नैनीताल जनपद के टनकपुर के पास सूखीढ़ांग व श्यामलाताल की पावन भूमि में हर साल आयोजित किया जाता है। यह स्थान टनकपुर से २६ किमी की दूरी पर है। यहां त्रिशूलों में लोग दीप जलाते हैं तथा काले रंग का वस्त्र भी बांधते हैं। उत्तराखंड के अन्य मन्दिरों की तरह यहां भी घंटियां, ध्वजा आदि चढ़ाने की परम्परा है । भूत, प्रेत आदि बाधाओं से पीड़ित व्यक्ति यहां ईलाज के लिए भी लाए जाते हैं। पूर्णिमा को यहां मेला लगता है । इस मेले में लोग कालसन देवता से मनौतियां मनाने, अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करने आते हैं तथा देवता को नारियल आदि अर्पित करते हैं।

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