पढ़ें- हरीश रावत का ब्लॉग, ‘नोटबंदी धड़ाम होता हुआ सपना’

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पढ़ें- हरीश रावत का ब्लॉग, ‘नोटबंदी धड़ाम होता हुआ सपना’

देहरादून [उत्तराखंड पोस्ट ब्यूरो] पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले की आलोचना करते हुए इसे एक धड़ाम होता हुआ सपना करार दिया है। पूर्व सीएम ने अपनी फेसबुक पोस्ट के जरिए एक बार फिर मोदी सरकार पर इसको लेकर कड़ा प्रहार किया है। हरीश रावत लिखते हैं कि नोटबंदी की


देहरादून [उत्तराखंड पोस्ट ब्यूरो] पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले की आलोचना करते हुए इसे एक धड़ाम होता हुआ सपना करार दिया है। पूर्व सीएम ने अपनी फेसबुक पोस्ट के जरिए एक बार फिर मोदी सरकार पर इसको लेकर कड़ा प्रहार किया है।

हरीश रावत लिखते हैं कि नोटबंदी की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री जी ने एक सुहाना खाका देश के सामने रखा था, स्वभावतः लोगों ने बड़ी उम्मीदें बांधी, जनधन खाता धारकों को लगा अब हमारे खातों में बहार आयेगी, लोग फिर से अपने खातों में पन्द्रह लाख रूपये आने का सपना देखने लगे। लोग अपना पैंसा निकालने के लिये लाईन में घंटों तक खड़े होने का कष्ट भूल गये, उन्हें लगा कि वह कष्ट देश की खुशहाली के लिये उठा रहे हैं, जब्त कालाधन, देश की खुशहाली, विकास व रोजगार को बढ़ाने के लिये खर्च होगा। मजदूर काम छूटने का गम भूल गया, किसान अपने खेत में उगी सब्जी बिकने का दर्द भूल गया। उन्हें लगा हमारा नुकसान तत्कालिक है और देश के लिये हमें यह नुकसान उठाना चाहिये।

रावत आगे लिखते हैं कि आज यदि आप एक निष्पक्ष विवेचना करें, तो ये सभी सपने धड़ाम से धरती पर आ गिरे हैं। आम लोगों के सपनों के साथ-2 देश की अर्थव्यवस्था भी धड़ाम हो गई है। कहां लक्ष्य था 8 प्रतिशत की वार्षिक विकास दर को पार करने का और आज हम खड़े हैं 5.7 प्रतिशत की विकास दर के साथ। यदि इस विकास दर को पिछले वर्ष की इसी समय की विकास दर की तुलना में देखा जाये तो यह गिरावट 2.2 प्रतिशत की है। नोटबंटी के बाद पूर्व प्रधानमंत्री डाॅ0 मनमोहन सिंह जी ने आशंका व्यक्त की थी कि देश की वार्षिक विकास दर में 2 प्रतिशत तक की गिरावट आयेगी। तब सत्ता के लोगों ने उनका उपहास उड़ाया और आज वास्तविकता उनकी चेतावनी से ज्यादा चिंताजनक है। यदि स्थिति को संभालने के तत्काल तर्क सम्मत उपाय नहीं किये गये, तो हमारी वार्षिक विकास दर घटकर 5 प्रतिशत के आस पास आने की आशंका है। अमेरिका के एक विश्वविद्यालय के सर्वेक्षण ने हमारी विकास दर को इस समय भी 5 प्रतिशत माना है। नोटबंदी का सर्वाधिक दुष्प्रभाव रोजगार के अवसरों पर पड़ा है। जब हम 7 प्रतिशत से ऊपर की विकास दर में थे उस समय भी इसे जॉब लैस ग्रोथ कहा गया था। आज पिछले 3 वर्षों में बेरोजगारी की वृद्धि दर सर्वोच्च स्तर पर है। संगठित क्षेत्र में नौकरियां लगभग सूख गई है। आई0टी0 सैक्टर में कुछ बड़ी कम्पनियों में घोषित व अघोषित छटनी के कारण 50 हजार आई0टी0 विशेषज्ञों ने काम खोया है। भारत सरकार के लेबर ब्यूरो के अनुसार संगठित क्षेत्र में वर्ष 2014 की तुलना में नौकरियों में भारी गिरावट आई है वर्ष 2014 में चार लाख इक्किस हजार नई नौकरियाॅ लगी और वर्ष 2015 में डेढ़ लाख तथा वर्ष 2016 में एक लाख पैंतीस हजार अवसर पैदा हुये यदि इस स्थिति की तुलना वर्ष 2009-10-11 से करें तो यह गिरावट बहुत बड़ी है। असंगठित क्षेत्र में रोजगार के अवसर निरंतर सूख रहे हैं।

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हरीश रावत आगे लिखते हैं कि इसका प्रमाण असंगठित क्षेत्र को श्रमिक उपलब्ध करवाने वाले प्रमुख राज्यों उत्तर_प्रदेश, बिहार, उड़ीसा आदि में मनरेगा श्रमिकों की संख्या व इस मद में कुल व्यय में हुई भारी बढ़ोत्तरी है।

रोजगार सृजन में संगठित क्षेत्र के बजाय असंगठित क्षेत्र का हिस्सा बहुत बड़ा है। नोटबंदी ने असंगठित क्षेत्र को सबसे अधिक कुप्रभावित किया है। असंगठित क्षेत्र का देश की जी0डी0पी0 में लगभग 45 प्रतिशत का योगदान है और रोजगार सृजन क्षेत्र में योगदान 90 प्रतिशत है। नोटबंदी व बढ़ती मंहगाई से लोगों की बचत में आई कमी को प्रमान स्वरूप बाजार से खरीददार गायब हो रहे हैं, जो बची-खुची लघु ईकाईयां या असंगठित क्षेत्र के उत्पादन केन्द्र हैं, उन पर जी0एस0टी0 की मार कोढ़ में खाज का काम कर रही है। जी0एस0टी0 लागू करने में जल्दबाजी व दरों की अधिकता के साथ प्रक्रियात्मक जटिलतायें बचे-खुचे छोटे व्यवसायों को हतोउत्साहित कर रही हैं। केन्द्र सरकार के संगठन सी0एस0ओ0 के अनुसार मैन्यू फेक्चरिंग सैक्टर में निरतंर आ रही गिरावट में 70 प्रतिशत योगदान छोटी मैन्यू फैक्चरिंग ईकाईयों का है जो पिछले एक साल में या तो बंद हो गई है या उन्होंने उत्पादन घटा दिया है, असंगठित क्षेत्र का देश के सकल निर्यात में बड़ा योगदान है, पिछले दो वर्षों में इस क्षेत्र में भी गिरावट दर्ज हुई है, निर्यातक ईकाईयां रोजगार देने में बड़ा योगदान देती है। इनका योगदान घटना अर्थव्यवस्था के लिये बड़ा झटका है।

कृषि क्षेत्र पिछले 3 वर्षों से अर्थव्यवस्था को बड़ा सहारा दे रहा है। इस वर्ष भी अच्छा मानसून शुभ संकेत हैं, मगर कृषि व्यवस्था में बिना बड़े व्यापक सुधार के इस क्षेत्र का जी0डी0पी0 में बहुत बड़ा योगदान नहीं होने जा रहा है, बल्कि अच्छी फसल के बावजूद किसानों में हताशा है। इस हताशा का बड़ा उदाहरण किसानों की कर्ज ग्राहयता के फलस्वरूप आत्म हत्याओं की घटनाओं में लगातार वृद्धि है। कृषि क्षेत्र की हताशा को तोड़ना बड़ी चुनौती है।

यदि स्थिति शीघ्र नहीं सभलती है तो देश के सम्मुख आर्थिक मंदी व सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती हुई बेरोजगारी का खतरा खड़ा हो गया है। अब इस तर्क को दोहराने की आवश्यकता नहीं है कि जिसे कालाधन बताया जा रहा था, उसका 95 प्रतिशत हिस्सा सफेद धन के रूप में बैंकों में वापस आ चुका है। यदि बैंकों में वापस आये इस समस्त धन का 5 प्रतिशत हिस्सा जांच पड़ताल के बाद काला निकलता भी है तो इससे कोई बड़ा अंतर पैदा नहीं होने जा रहा है। मुखौटा कम्पनियों को बंद करना एक प्रशासनिक कदम हो सकता है परन्तु यह काले धन की वसूली में मद्दगार होगा ऐसा नहीं है। टेरर फन्डिग रूक गई है, अब ऐसा दावा स्वयं सरकार नहीं कर रही है। इस तथ्य को अब नकारा नहीं जा सकता है कि नोटबंदी के साथ प्रधानमंत्री जी ने जो स्वप्निल चित्र खींचा था वह बिखर गया है।

देश के सम्मुख इस स्थिति से बाहर आने का उपाय क्या है। वर्ष 2008 में जब विश्व व्यापी मंदी का दौर आया था तो तत्कालिक सरकार ने पब्लिक इन्वेस्टमेंट को बढ़ाया था। देश के आम नागरिक चाहे व सरकारी कर्मचारी हो या मजदूर व किसान उसके पास धन की उपलब्धता को बढ़ाया गया था। मनरेगा, किसानों की राष्ट्रव्यापी कर्ज माफी व पे कमीशन से हुई कर्मचारियों की आय वृद्धि ने लोगों की खरीदने की क्षमता बढ़ाई थी। सरकार ने सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में लगभग 1 दर्जन नये कार्यक्रमों के माध्यम से गरीब व निम्न आय वर्ग की खर्च क्षमता में वृद्धि की। आज लोगों के खरीदने की क्षमता सिकुड़ रही है, रियल स्टेट सहित, रोजगार देने वाले प्रत्येक क्षेत्र में निवेश घटा है। यदि पब्लिक इनवेस्टमेंट थोड़ा बढ़ा है, तो यह बढ़ोत्तरी प्राईवेट इन्वेस्टमेंट में निरंतर आ रही गिरावट की तुलना में बहुत न्यून है। ग्रॉस केपिटल फोरमेशन के क्षेत्र में आ रही निरन्तर गिरावट को सभालने का कोई उपाय नहीं हो रहा है। बड़े उद्यमियों से लेकर छोटे-2 उद्यमियों में विश्वास का वातावरण पैदा करने की आवश्यकता है। सरकार व उद्यमी, मिल कर जब तक पब्लिक, प्राईवेट, हाउसोल्ड तथा सोसियल सैक्टर में निवेश नहीं बढ़ायेंगे व अर्थव्यवस्था के सम्मुख आ रही चुनौतियों के मुकाबले के लिये सांझी रणनीति नहीं बनायेंगे तो हमें और बुरी खबरें सुनने को मिल सकती हैं।

वित्त मंत्री जी ने इस दौरान तीन कदम उठाये हैं-

  1. जी0एस0टी0 में कुछ बदलाव लाये गये हैं।
  2. उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए 2.11 लाख करोड़ रूपये के केपिटलाईजेशन प्लान (Capitalisation Plan) घोषित किया है।
  3. 6.90 लाख करोड़ रूपया उन्होंने रोड प्रोजेक्ट के लिए देने की बात कही है।

रावत आगे कहते हैं कि कों की वर्तमान स्थिति को देखकर ऐसा नहीं लगता है कि रि-कैपिटलाईजेशन (Re-Capitalisation) का कोई बड़ा लाभ लघु एवं मध्यम उद्योगों को मिल पायेगा। यह एक अच्छा कदम है, मगर प्रभावी कदम नहीं है। सड़क परियोजनाओं के क्रियान्वित होने तक काफी कुछ हो चुका होगा। इससे रोजगार शून्यता की स्थिति में बड़ा अन्तर पैदा नहीं होने जा रहा है। जी0एस0टी0 में यदि सरकार और बदलाव लाती है, जिसमें स्वैप व अधिकत्तम सीमा दोनों को घटाना तथा प्रक्रिया की जटिलता को समाप्त करती है, तो कुछ आशा बन सकती है।

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