पढ़ें हरीश रावत का ब्लॉग | “हम जगने की बजाए सो जाना चाहते हैं”

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पढ़ें हरीश रावत का ब्लॉग | “हम जगने की बजाए सो जाना चाहते हैं”

देहरादून [उत्तराखंड पोस्ट ब्यूरो] कुछ निर्णय छोटे होते हैं मगर उनका महत्व दूरगामी होता है। ऐसे निर्णय राज्य विकास की आवश्यकता विशेषतः क्षेत्रीय विशेषताओं को ध्यान में रखकर लिये जाते हैं। ऐसे विषयों को विशेष ध्यान की आवश्यकता होती है। उत्तराखण्ड में पलायन, जल संकट, सीमान्त क्षेत्र उपेक्षा, क्षेत्रीय विकास में असंतुलन प्रति व्यक्ति औसत


देहरादून [उत्तराखंड पोस्ट ब्यूरो] कुछ निर्णय छोटे होते हैं मगर उनका महत्व दूरगामी होता है। ऐसे निर्णय राज्य विकास की आवश्यकता विशेषतः क्षेत्रीय विशेषताओं को ध्यान में रखकर लिये जाते हैं। ऐसे विषयों को विशेष ध्यान की आवश्यकता होती है। उत्तराखण्ड में पलायन, जल संकट, सीमान्त क्षेत्र उपेक्षा, क्षेत्रीय विकास में असंतुलन प्रति व्यक्ति औसत आय में असंतुलन, पहाड़ों में चकबन्दी, गरीबी, बेरोजगारी असंतुलित शहरीकरण आदि बड़े सवाल हैं। इनके हल खोजने के साथ-2 इनसे जुड़े हुए छोटे पहलुओं पर ध्यान देना आवश्यक है।

ऐसा ही प्रश्न पर्याप्त चकबन्दी है। चकबन्दी का राज्य में उपलब्ध वर्तमान ढ़ांचा 17 वर्षों से हरिद्वार में उलझा पड़ा है और वहां चकबन्दी की बुरी स्थिति है। क्या वर्तमान चकबन्दी ढ़ाचे के साथ पर्वतीय क्षेत्रों की चकबन्दी को बढ़ाया जा सकता है?, जो ध्यान और सोच पर्वतीय क्षेत्रों की आवश्यकता है उसे स्पष्टतः चिन्हित किये बिना अगले 10 साल तक भी पर्वतीय चकबन्दी के विषय को कानून बनाये जाने के बावजूद हम आगे नहीं बढ़ा पायेंगे।

उत्तराखण्ड के सर्वागींण नियोजित विकास के रास्ते में जल की उपलब्धता एक बड़ी चुनौती है।गंगा यमुना, शारदा व उसकी सहयोगी नदियों वाले उत्तराखण्ड में जलसमस्या को इन नदियों से परे देखना पड़ेगा। जलवायु परिवर्तन के परिणाम स्वरूप अब बरसात में रिम-झिम वर्षा व शरद ऋतु की बर्फबारी कम होती जा रही है। नये जल श्रोत नहीं फूट रहे हैं, पुराने सूख रहे हैं। परिणाम स्वरूप सिंचाई व पेयजल के लिये वर्ष भर पानी की उपलब्धता घटती जा रही है। छोटी नदियां बल्कि मझोली नदियां भी धीरे-2 वर्षानी हो रही हैं। इस चुनौती का उत्तर वर्षा के जल का संग्रह है। यदि हम एक मिशन के तहत 30 प्रतिशत वर्षा जल को संग्रहित कर लें तो हमारे ग्रामीण विकास का परिदृष्य बदलना प्रारम्भ हो जायेगा। पिछली सरकार ने वन विभाग से छोटे-2 खालों के साथ-2 जंगलों के ढालों में बड़ी संख्या में टेंचेज बनवाये। सिंचाई विभाग को छोटे जलाशय बनाने का काम सौंपा। ग्रामीण विकास को ग्रामीण क्षेत्रों में खाल-चाल बनाने का दायित्व सौंपा और पेयजल विभाग को जल बोनस निर्धारित करने व बांटने का दायित्व दिया गया। मेरा मानना है 30 प्रतिशत जल संग्रह के लक्ष्य को पाने के लिए एक डैडिकेटेड मशीनरी की आवश्यकता है। यह कार्य अलग विभाग या निदेशालय ही कर सकता है।

हर बार पंचायत के चुनाव के साथ गांव का तालाब जिसे गांव का फेफड़ा कहा जाता है सिकुड़ता जा रहा है। कुछ तालाब मर गये हैं। भारत सरकार के जल संसाधन मंत्री के तौर पर मैंने तालाब सर्वधन की एक बड़ी योजना बनायी जिसका फायदा राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, आन्ध्र (पुराना), महाराष्ट्र ने बड़े पैमाने पर उठाया। उत्तराखण्ड में भी भारत सरकार ने हरिद्वार के सौ के करीब तालाबों व नैनीताल के कुछ तालों को सुधारने के लिये प्रोजेक्ट स्वीकृत किया। जिन राज्यों के पास एक निर्धारित मशीनरी थी उन्होंने उपरोक्त योजना का भरपूर लाभ उठाया। मगर उत्तराखण्ड उलझा रह गया। मुझे खेद है कि राज्य के तालाबों व जलाशयों के मरने व सिकुड़ने का सिलसिला जारी है और हम जगने के बजाय सो जाना चाहते हैं। उत्तराखण्ड से इस दिशा में जो भी प्रयास अभी तक किये गये हैं उनका पटाक्षेप हो रहा है।

कूड़ा प्रबन्धन शहरों की समस्या तो है ही बड़े गांव भी इस समस्या से बुरी तरीके से ग्रस्त हो गये हैं। मैदानी क्षेत्रों में गांवों में पानी की निकासी का प्रबन्ध ना होने से और गाॅव का तालाब जहां सारा पानी जाता था उसके सिकुड़ने या खत्म होने से गांवों में जल भराव एक बड़ी समस्या बन गया है। शहरीय ओद्योगिक क्षेत्रों के निकट के गांवों के हालात और बुरे हैं, क्योंकि इन गांवों में गतिमान जनसंख्या बहुत बढ़ गई है। शौचालयों व गांवों की आन्तरिक सड़कों व गलियों की स्थिति बहुत चिन्ताजनक है। ज्यों-2 शहरीकरण बढ़ेगा कूड़ा-कचरे का प्रबन्धन चुनौती बनता जायेगा। गांवों में पानी की निकासी व शहरों के कूड़ा प्रबन्धन के लिये उत्तराखण्ड को पुरानी व्यवस्थाओं से अलग हटकर सोचने का काम करने की आवश्यकता है। राज्य को अपने सभी नागरिकों को घर देने हेतु शहरीय व ग्रामीण क्षेत्रों में पचपन हजार घरों की आवश्यकता है। ग्रामीण क्षेत्रों व नये शहरीकृत क्षेत्रों में यह कार्य उत्तराखण्ड आवास एवं विकास ओथोरिटी कर सकती है परन्तु पुराने-संकरे नगरीय क्षेत्रों में नये मकान बनाने के लिये एक समर्पित विभाग आवश्यक है इसलिये तत्कालिक सरकार ने राजीव गांधी शहरी आवास विभाग बनाया और उसे केन्द्र सरकार की शहरी आवास योजना से जोड़ा था। कूड़ा प्रबन्धन एवं ग्रामीण रूड़ों व ड्रेनेज सेस्टम को गठित करने हेतु राज्य सरकार द्वारा कूड़ा प्रबन्धन व ग्रामीण रोड़क व ट्रेनेज निर्माण हेतु पृथक विभाग बनाये गये थे।

क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करना व सीमान्त गांवों से बढ़ते हुये पलायन को रोकना बड़ी चुनौती है। केन्द्र सरकार की दो योजनाओं सीमान्त क्षेत्र विकास और पिछड़ा क्षेत्र विकास से राज्य को जोड़ने का कोई निर्धारित माध्यम उत्तराखण्ड में नहीं है। हमें यदि राज्य के विभिन्न जिलों व जिलों के अन्दर कुछ क्षेत्रों के मध्य विकास के असंतुलन को समाप्त करना है तो सिमान्त व पिछड़े क्षेत्रों की समस्याओं के चिन्हीकरण व निदान के लिये स्पष्ट व सशक्त माध्यम खड़ा करना आवश्यक है। यह कार्य ग्रामीण विकास व पंचायती राज के ढ़ाचे के अंतर्गत सम्भव नहीं है क्योंकि इन विभागों के पास कुछ और बड़े कार्य हैं। अतः सीमांत तथा पिछड़ा क्षेत्र विकास विभागों का महत्व हमें न चाहते हुये स्वीकार करना चाहिये।

उत्तराखण्ड में गरीबी के विरूद्ध भेड़ व बकरीपालन एक बड़ा हथियार है। सन 2014 से पहले राज्य में स्थापित बकरी व भेड़ पालन केन्द्र प्राय समाप्त हो गये थे। तत्कालीक सरकार ने बकरी, भेड़ पालन हेतु अहिल्या बाई होल्कर मिशन प्रारम्भ किया। इसके तहत भेड़, बकरी पालकों को कई प्रोत्साहन दिये गये तथा भेड़-बकरी की क्रोस नस्ल तैय्यार करने की योजना पर काम प्रारम्भ किया। वर्ष 2016 में एक नई योजना के तहत पैंतीस हजार विधवा बहनों व गरीबों को 3 बकरी व एक बकरा देने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। पहली खेप में पाॅच सौ बहनों को चयनित कर लाभांवित किया गया। चारा विकास व बकरी-भेड़ पालन के महत्व को ध्यान में रखते हुये पशुपालन के बड़े विभाग से जोड़ना इस समय उचित नहीं है, यदि ऐसा किया गया तो निर्धारित छूट जायेंगे। उत्तराखण्ड को अपने तरीके से मैक्रो प्लानिंग की आवश्यकता है। हमें कुछ लाईन से हटकर निर्णय लेने चाहिये। एक बड़ी छतरी के बजाय छोटी-2 छतरियों के तहत इन योजनाओं को संचालित किया जाना चाहिये। हमें खबरदार रहना चाहिये कि कहीं हमारी राजनैतिक सोच कुछ अच्छी पहलों को समय से पहले मार न दें। राज्य सरकार द्वारा पूर्व सृजित विभागों को बड़े विभागों में समायोजित करना कुछ ऐसा ही कदम है। यॅू आने वाला समय प्रत्येक निर्णय का मूल्यांकन करेगा परन्तु कहीं ऐसा न हो विकास के आगे बढ़ते समय में हम पीछे न छूट जायं।

(हरीश रावत के फेसबुक पेज से)

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