#RepublicDay | राजपथ पर #Uttarakhand की लोककला रम्माण की झलक

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#RepublicDay | राजपथ पर #Uttarakhand की लोककला रम्माण की झलक

गणतंत्र दिवस के अवसर पर राजपथ पर ’रम्माण’ पर आधारित उत्तराखण्ड की झांकी प्रदर्शित की गई। नाना प्रकार के मुखौटों से युक्त इस झांकी के अग्रभाग में नरसिंह देवता को प्रतिबिम्बित करता मुखौटा तथा उत्तराखण्ड के लोकवाद्य भंकोर बजाते हुए कलाकारों एंव झांकी के मध्य भाग में रम्माण नृत्य व पृष्ठ भाग में भूमियाल देवता


#RepublicDay | राजपथ पर #Uttarakhand की लोककला रम्माण की झलक

#RepublicDay | राजपथ पर #Uttarakhand की लोककला रम्माण की झलकगणतंत्र दिवस के अवसर पर राजपथ पर ’रम्माण’ पर आधारित उत्तराखण्ड की झांकी प्रदर्शित की गई। नाना प्रकार के मुखौटों से युक्त इस झांकी के अग्रभाग में नरसिंह देवता को प्रतिबिम्बित करता मुखौटा तथा उत्तराखण्ड के लोकवाद्य भंकोर बजाते हुए कलाकारों एंव झांकी के मध्य भाग में रम्माण नृत्य व पृष्ठ भाग में भूमियाल देवता का मंदिर व हिमालय को दर्शाया गया है। उत्तराखण्ड की झांकी की दर्शकों ने खूब सराहना की। सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग उत्तराखण्ड के सहायक निदेशक एवं टीम लीडर के.एस.चैहान के नेतृत्व में उत्तराखण्ड की झांकी को प्रदर्शित किया गया है।

गौरतलब है कि उत्तराखण्ड के चमोली जनपद के सलूड़-डुंग्रा गांव में प्रतिवर्ष अप्रैल माह में रम्माण उत्सव का आयोजन किया जाता है। इस उत्सव को 2009 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया गया। रम्माण का आधार रामायण की मूलकथा है और उत्तराखण्ड की प्रचीन मुखौटा परम्पराओं के साथ जुड़कर रामायण ने स्थानीय रूप ग्रहण किया। रामायण से रम्माण बनी। धीरे-धीरे यह नाम पूरे  पखवाड़े तक चलने वाले कार्यक्रम के लिए प्रयुक्त किया जाने लगा।

रम्माण में रामायण के कुछ चुनिंदा प्रसंगों को लोकशैली में प्रस्तुत किया जाता है। रात्रि को भूम्याल देवता के मंदिर प्रांगण में मुखौटे पहन कर नृत्य किया जाता है। ये मुखौटे विभिन्न पौराणिक, ऐतिहासिक तथा काल्पनिक चरित्रों के होते हैं। स्थानीय तौर पर इन मुखौटों को दो रूपों में जाना जाता है। ‘द्यो पत्तर’ तथा ‘ख्यलारी पत्तर’। ‘द्यो पत्तर’ देवता से संबंधित चरित्र और मुखौटे होते हैं और ‘ख्यालारी पत्तर’ मनोरंजक चरित्र और मुखौटे होते हैं। रम्माण विविध कार्यक्रमों, पूजा और अनुष्ठानों की एक श्रृंखला है। इसमें सामूहिक पूजा, देवयात्रा, लोकनाट्य, नृत्य, गायन, प्रहसन, स्वांग, मेला आदि विविध रंगी आयोजन होते हैं।

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