“ये खेल है, जंग का मैदान नहीं, यहां हारना जीतना इतना आसान नहीं”

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“ये खेल है, जंग का मैदान नहीं, यहां हारना जीतना इतना आसान नहीं”

संदीप सिंह | सरहद की सरगर्मी आज मैदान पर उतरेगी, देखने वालों के लिए खेल जंग में तबदील हो जाएगा, जश्न की तैयारी दोनों तरफ हो रही हैं लेकिन कोई एक ही देश जश्न मना पाएगा और दूसरे देश के जू़नूनी लोग अपनी भड़ास कहीं टीवी पर तो कहीं खिलाड़ियों के घर पर उतारेगें। गैंद


संदीप सिंह | सरहद की सरगर्मी आज मैदान पर उतरेगी, देखने वालों के लिए खेल जंग में तबदील हो जाएगा, जश्न की तैयारी दोनों तरफ हो रही हैं लेकिन कोई एक ही देश जश्न मना पाएगा और दूसरे देश के जू़नूनी लोग अपनी भड़ास कहीं टीवी पर तो कहीं खिलाड़ियों के घर पर उतारेगें। गैंद वाले दर्शक हर एक गैंद को गोली की मांनिंद देखना चाहेगें, वहीं बल्लेवाले दर्शक हर गेंद को सरहद पार भेजने की उम्मीद लगायेंगे। लेकिन खेल तो अपनी ही शैली में खेला  जाएगा, खेला भी जाना चाहिए। जिंहोनें कभी पिच नहीं देखी जिंहोनेें कभी बल्ला नहीं पकड़ा, जिन्हें क्रिकेट का सी भी नहीं पता वो भी बड़ी आसानी से बाताएगा कि अरे इसको तो खेलना ही नहीं आता, इस गैंद को तो ऐसे मारना चाहिए। पानवाला, चायवाला ओर तो ओर कई चुरकुट भी विशषज्ञ बन जाएगें।

 

ग़ज़ब का खेल हैं ये,,,,, मुफलिसी, बेरोज़गारी, फ़ाक़ाकशी जिन मुल्कांे की  आधी से अधिक आबादी के मसायाल बन बैठी है, उन्हीं मुल्कों की वर्चुअल दूनिया से ये मसायाल ठीक वैसी ही ग़ायब हो गये हैं जैसे एंकर के पीछे से हरे और नीले पर्दे की दीवार,,,,,, टीवी स्क्रीन को मैदान बना दिया गया एंकर  बारी बारी से हर खिलाड़ी का विश्लेषण कर रहा है, बारीक़ से बारिक बातें ऐसे पकड़ी जा रही हैं जैसे इससे हर समस्या का समाधान होगा। बे्रक पर जाने से पहले जंग का बिगुल फूका जा रहा है।

सरकार ने अपनी मंशा पहले ही साफ कर दी कि आतंकवाद और खेल  साथ साथ नहीं खेला जा सकता, फिर भी मैच हो रहा है क्यो ?  ये सवाल ही अब गायब हो गया है। बहरहाल खेल तो मेंल कराता है बेमेल ही सही कश्मीर सरकार की तरह। सरकार ने भले ही मना कर दिया लेकिन बीसीसीआई ने साफ कर दिया कि भारत पाकिस्तान के बीच मैच होगा, ये सोचने पर  मजबूर कर रहा है कि ये फैसला पैसे कमाने के लिए लिया गया है या फिर इसेके  पीछे दोनों देशों के रिशते बेहतर बनाने की मंशा भी है।

क्या इस मेंच को भारत पाकिस्तान के रिश्तों की नई शुरूआत के तौर भी देखा जा सकता है……आखिर क्यों नहीं ? जहां दो हमसाया मुल्क के खिलाड़ी मैदान पर खेल की भावना से उतरेंगें। 70 के दशक में जब अमेरिका और चीन में सभी  रिश्ते ख़त्म होते दिख रहे थे उस वक़्त टेबल टैंिनस के मैच ने अमेरिका और चीन को करीब लाने का काम किया था। अप्रैल 1971 में टेबिल टेनिस के मैच ने अमेरिका और चीन की दूरियों को कम किया था। जिसे ंिपंगपांग डिप्लोमेसी के नाम दिया गया था। जिसके बात अमेरीका और चाइना के बीच बातचीत और व्यापार का सिलसिला शुरू हुआ था। लेकिन पाकिस्तान के साथ ऐसी कई डिप्लोमेसी सरहदों पर दम तौड़ चुकी हैं। वजह  साफ  है पाकिस्तान की मंशा, जब तक पाकिस्तान नेकनियत से पड़ोसी होने का फर्ज़ अदा नहीं करेगा तब तक सरहद पर गोेली, घाटी में आतंकी घटनाएं,  और खेल का मैदान जंग का मैदान बनता रहेगा। लेकिन हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि दहश्तगर्दी फैलाने वाले हमेशा लोगों के दिलों के अमन को पहले मारते हैं खैर मज़ा लीजिए मैच का।

संदीप सिंह -9990199953

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