“उठो, जागो और तब तक नहीं रुको, जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो”

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“उठो, जागो और तब तक नहीं रुको, जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो”

देहरादून [उत्तराखंड पोस्ट ब्यूरो] सिर्फ 39 वर्ष 5 महीने और 24 दिन का छोटा सा जीवन लेकिन कद इतना बड़ा की विश्व में करोड़ों लोग स्वामी विवेकानंद को न सिर्फ अपना आदर्श मानते हैं बल्कि उनके दिखाए मार्ग पर चलते हैं। मनुष्य अपनी आयु पूरी करे तो भी उसे लगता है कि ये जीवन छोटा है। अपने जीवनकाल में


“उठो, जागो और तब तक नहीं रुको, जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो”

देहरादून [उत्तराखंड पोस्ट ब्यूरोसिर्फ 39 वर्ष 5 महीने और 24 दिन का छोटा सा जीवन लेकिन कद इतना बड़ा की विश्व में करोड़ों लोग स्वामी विवेकानंद को न सिर्फ अपना आदर्श मानते हैं बल्कि उनके दिखाए मार्ग पर चलते हैं।

मनुष्य अपनी आयु पूरी करे तो भी उसे लगता है कि ये जीवन छोटा है। अपने जीवनकाल में मनुष्य सिर्फ अपनी व अपने परिवार की परेशानियों में ही उलझा रहता है कि समाज से उसे कुछ लेना देना नहीं होता है, लेकिन स्वामी विवेकानंद ने इस सब से परे न सिर्फ भारतवासियों के मन में भारत की गौरवशाली परंपरा और संस्कृति के प्रति आत्मविश्वास और आत्मसम्मान का संचार किया बल्कि समूचे विश्व में भारतीय आध्यात्म का परचम भी लहराया।

“उठो, जागो और तब तक नहीं रुको, जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो”

भले ही आजादी से 45 साल पहले सन 1902 में ही स्वामी विवेकानंद का निधन हो गया लेकिन आजादी की लड़ाई में स्वामी विवेकानंद के योगदान को कोई कैसे भूल सकता है। वे विवेकानंद ही थे, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में भारत वासियों में एक नई ऊर्जा का संचार किया। समाज को स्वाभिमान, साहस और कर्म की प्रेरणा देने वाले स्वामी विवेकानंद के मंत्र से ही मूर्छित समाज में नई ऊर्जा का संचार हुआ।

उठो जागो और तब तक मत रुको, जब तक लक्ष्य को प्राप्त न कर लो कहने वाले स्वामी जी ने 25 वर्ष की आयु में संन्यास लेने के बाद सिर्फ 14 वर्षों में ही बिना किसी साधन औऱ सुविधा के सिर्फ एक महान संकल्प के बल पर भारत का मान बढ़ाया। विवेकानंद का जीवन बताता है कि कैसे बिना किसी साधन और सुविधा के सिर्फ एक संकल्प के बल पर युवा समाज की देश की सोच बदल सकते हैं।

“उठो, जागो और तब तक नहीं रुको, जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो”

आज भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा युवा हैं। 70 फीसदी भारतीय 35 साल से कम के हैं। युवाओं के दम पर ही विश्व में भारत के सर्वशक्तिमान बनने की बातें की जाती हैं लेकिन ये बातें तब तक साकार रूप नहीं लेंगी जब तक भारत की युवा आबादी नई सोच और सकारात्मक ऊर्जा से भरी नहीं होगी।

आज जरूरत है युवाओं को…युवाओं की ऊर्जा को सकारात्मक सोच और दिशा देने की। आज जरूरत है युवाओं को एक ऐसे नेतृत्व की जो स्वामी विवेकानंद की तरह ऊर्जावान हो और सबसे बड़ी बात कि सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर हो। स्वामी जी की 150वीं जयंती पर कोटि कोटि नमन।

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