उत्तराखंड के इस मंदिर में हुई थी शिव-पार्वती की शादी, अब बन रहा है वेडिंग डेस्टिनेशन

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उत्तराखंड के इस मंदिर में हुई थी शिव-पार्वती की शादी, अब बन रहा है वेडिंग डेस्टिनेशन

रुद्रप्रयाग (उत्तराखंड पोस्ट) उत्तराखंड पूरे विश्व में देवभूमी के नाम से मशहूर है। आज पूरे देश में महाशिवरात्रि मनाई जा रही है। इस मौके पर हम आपको देवभूमी के एक ऐसे स्थान के बारे में बताने जा रहे है जिसका भोलेनाथ से गहर संबंध है। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के सोनप्रयाग में एक मंदिर है


उत्तराखंड के इस मंदिर में हुई थी शिव-पार्वती की शादी, अब बन रहा है वेडिंग डेस्टिनेशन

रुद्रप्रयाग (उत्तराखंड पोस्ट) उत्तराखंड पूरे विश्व में देवभूमी के नाम से मशहूर है। आज पूरे देश में महाशिवरात्रि मनाई जा रही है। इस मौके पर हम आपको देवभूमी के एक ऐसे स्थान के बारे में बताने जा रहे है जिसका भोलेनाथ से गहर संबंध है।

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के सोनप्रयाग में एक मंदिर है जिसका नाम है त्रियुगी नारायण मंदिर। इस मंदिर के बारे पौराणिक मान्यताएं हैं कि इस मंदिर में भगवान विष्णु ने शिव-पार्वती विवाह कराया था। आपको जानकर बेहद खुशी होगी कि यह मंदिर अब वेडिंग डेस्टिनेशन बनता जा रहा है।

हर विवाह मुहूर्त पर यहां 3-4 शादियां होती हैं। देशभर से लोग यहां शादी के लिए पहुंच रहे हैं। इस साल से यहां नया ट्रेंड देखने को मिल रहा है। विदेश से भी लोग शादी के लिए यहां आ रहे हैं। 29 फरवरी को यहां एक विदेशी लड़के की शादी गाजियाबाद की लड़की से हो रही है। स्थानीय प्रशासन और समितियां इसे अब बड़े वेडिंग डेस्टिनेशन में बदलना चाह रही हैं।

उत्तराखंड के इस मंदिर में हुई थी शिव-पार्वती की शादी, अब बन रहा है वेडिंग डेस्टिनेशन

आपको बता दें कि त्रियुगी नारायण के इस मंदिर की खास बात ये है कि ये भगवान विष्णु और लक्ष्मी का मंदिर है, लेकिन इसकी मान्यता शिव-पार्वती विवाह को लेकर ज्यादा है। इसी विशेषता के कारण यहां लोग आते हैं। मंदिर में एक अखंड धूनी है, जिसे लेकर कहा जाता है कि ये वही अग्नि है जिसके फेरे शिव-पार्वती ने लिए थे। आज भी उनके फेरों की अग्नि धूनि के रूप में जागृत है। मान्यता है कि यहां शादी करने पर वैवाहिक जीवन सुखी रहता है। पति-पत्नी के बीच आजीवन प्रेम और समर्पण का भाव बना रहता है।

खास बात यह है कि इस मंदिर में 1100 रुपए की दक्षिणा देकर भी विवाह हो सकता है। इन पैसों से मंदिर के पुजारी विवाह से जुड़ी सामग्री उपलब्ध करवाते हैं, विवाह करवाते हैं और अन्य रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है। जो लोग अपनी शादी को भव्य बनाना चाहते हैं, वे यहां 11 हजार से 21 हजार रुपए तक भी दक्षिणा के रूप में मंदिर में दान देते हैं।

त्रियुगी नारायण मंदिर नाम होने का कारण –इस मंदिर में स्थित अखंड धूनी के बारे में मान्यता है कि ये तीन युगों से अखंड जल रही है। इसी वजह से इसे त्रियुगी मंदिर कहते हैं। ये मुख्य रूप से नारायण यानी भगवान विष्णु और लक्ष्मी का मंदिर है, लेकिन यहां शिव-पार्वती का विवाह हुआ था, इस कारण मंदिर में शिवजी और विष्णुजी के भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं।

यहां के प्राचीन कुंड की महत्ता- शिव पार्वती के विवाह में ब्रह्माजी ने पुरोहित की भूमिका निभाई थी। विवाह में शामिल होने पहले ब्रह्माजी ने एक कुंड में स्‍नान किया था, जिसे ब्रह्मकुंड कहा जाता है। यहां भगवान विष्णु ने पार्वती के भाई की भूमिका निभाई थी। एक कुंड विष्णुजी के नाम का भी है। एक अन्य कुंड का नाम रुद्र कुंड है। यहां विवाह में आए अन्य देवी-देवताओं ने स्नान किया था।

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