हल्द्वानी नगर निगम मेयर | समझिए जातिगत गणित, किसके हाथ में है जीत की चाबी ?

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हल्द्वानी नगर निगम मेयर | समझिए जातिगत गणित, किसके हाथ में है जीत की चाबी ?

हल्द्वानी (नैनीताल) (उत्तराखंड पोस्ट) उत्तराखंड में स्थानीय निकाय चुनाव में प्रदेश की सबसे हॉट सीटों में से एक हल्द्वानी नगर निगम सीट पर इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। दरअसल भाजपा ने निवर्तमान मेयर जोगेन्द्र रौतेला पर ही फिर से भरोसा जताया है तो कांग्रेस से नेता प्रतिपक्ष


हल्द्वानी (नैनीताल) (उत्तराखंड पोस्ट) उत्तराखंड में स्थानीय निकाय चुनाव में प्रदेश की सबसे हॉट सीटों में से एक हल्द्वानी नगर निगम सीट पर इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है।

दरअसल भाजपा ने निवर्तमान मेयर जोगेन्द्र रौतेला पर ही फिर से भरोसा जताया है तो कांग्रेस से नेता प्रतिपक्ष डॉ इंदिरा हृदयेश के पुत्र सुमित हृदयेश मैदान में हैं। भाजपा प्रत्याशी के सामने जहां अपना किला बचाए रखने की चुनौती है तो कांग्रेस से सीधे सीधे नेता प्रतिपक्ष की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है।

विधानसभा में हुआ था कांटे का मुकाबला | इस चुनाव की एक खास बात ये है कि इस सीट पर 2017 के विधानसभा चुनाव में वर्तमान में भाजपा उम्मीदवार जोगेन्द्र रौतेला और वर्तमान में कांग्रेस उम्मीदवार सुमित हृदयेश की मां और वर्तमान में नेता प्रतिपक्ष डॉ इंदिरा हृदयेश आमने-सामने थी। कांटे के इस मुकाबले में बाजी डॉ इंदिरा हृदयेश के हाथ लगी थी और जीत का अंतर महज 6,557 मतों का था। नीचे देखिए 2017 विधानसभा चुनाव के नतीजे-

जातीय गणित | आपको बता दें कि हल्द्वानी नगर निगम के करीब दो लाख 13 हजार हजार मतदाताओं में से तकरीबन 90 हजार राजपूत,  50 हजार अल्पसंख्यक,  40 हजार दलित और 30 हजार ब्राह्मण मतदाता हैं। 

अल्पसंख्यक और दलित मतदाताओं पर जोर | दोनों ही पार्टी प्रत्याशियों की कोशिश है कि वे अल्पसंख्यक औऱ दलित मतदाताओं में भी सेंध लगा सकें। हालांकि सपा प्रत्याशी शोएब अहमद की मौजूदगी इनकी कोशिशों पर पानी फेर सकती है। मतलब साफ है कि अगर शोएब अहमद अल्पसंख्यक मतदाताओं को एकजुट कर अपने पक्ष में साधने में सफल हो गए तो भाजपा और कांग्रेस उम्मीदवारों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। बीते विधानसभा चुनाव में भी सपा उम्मीदवार रहे शुएब अहमद ने 10, 337 मत प्राप्त किए थे और तीसरे नंबर पर रहे थे। दलित वोटों की बात करें तो आम तौर पर बसपा को वोटबैंक माने जाने वाले दलित मतदाताओं में से बसपा प्रत्याशी को महज 1314 वोट ही मिले थे, मतलब 40 हजार दलित मतदाता भी किसको वोट करेंगे ये बड़ी भूमिका अदा करेगा।

बहरहाल भाजपा और कांग्रेस उम्मीदवारों की कोशिशें कितनी कारगर साबित होती हैं ये तो मतदाताओँ को ही तय करना है लेकिन अपनी तरफ से कोई भी उम्मीदवार कोई कसर नहीं छोड़ रहा है।

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