जानें क्यों उत्तराखंड में मंत्रियों को शिक्षा विभाग से डर लगता है !

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जानें क्यों उत्तराखंड में मंत्रियों को शिक्षा विभाग से डर लगता है !

उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालते ही अपनी टीम भी तैयार कर ली है। मुख्यमंत्री के साथ ही सात कैबिनेट और दो राज्य मंत्रियों ने भी शपथ ली है लेकिन दो दिन बाद भी विभागों के बंटवारे पर सस्पेंस बरकरार है। ऐसे में अब खबर है कि टीएसआर कैबिनेट के नवरत्नो


जानें क्यों उत्तराखंड में मंत्रियों को शिक्षा विभाग से डर लगता है !

उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालते ही अपनी टीम भी तैयार कर ली है। मुख्यमंत्री के साथ ही सात कैबिनेट और दो राज्य मंत्रियों ने भी शपथ ली है लेकिन  दो दिन बाद भी विभागों के बंटवारे पर सस्पेंस बरकरार है। ऐसे में अब खबर है कि टीएसआर कैबिनेट के नवरत्नो में से कोई भी मंत्री शिक्षा जैसे अहम मंत्रालय की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता। अब ख़बरें एक क्लिक पर इस लिंक पर क्लिक कर Download करें Mobile App – उत्तराखंड पोस्ट

दरअसल ऐसा इसलिए क्योंकी उत्तराखंड में 2017 के विधानसभा चुनाव में भी 2002 के पहले चुनाव से चला आ रहा मिथक नही टूटा। सूत्रों की माने तो सभी को अपने 2022 के चुनावो की चिंता सता रही है।

जी हां आप यकीन मानिए। सूबे में बनी प्रचंड बहुमत की भाजपा सरकार के नवरत्नो में से कोई भी शिक्षा मंत्रालय की कमान संभालने को तैयार नही है। उसकी वजह है शिक्षा मंत्रालय से जुड़ा वो मिथक जो अबतक जिंदा है।

जानें क्यों उत्तराखंड में मंत्रियों को शिक्षा विभाग से डर लगता है !

दरअसल सूबे में पहली अंतरिम सरकार के दौर में सूबे के पहले शिक्षामंत्री तीरथ सिंह रावत 2002 का पहला आम चुनाव नहीं चीत पाए। 2002 में सूबे के शिक्षामंत्री बने नरेंद्र भंडारी 2007 के दूसरे आम चुनाव मे हार गए।

2007 मे राज्य में भाजपा की सरकार बनी भाजपा सरकार में दो सीएम बने। दोनो मुख्यमंत्रियों बीसी खंडूड़ी और डा रमेश पोखरियाल निंशक के पांच साल के राज में शिक्षा मंत्रालय की कमान संभालने वाले शिक्षा राज्यमंत्री खजानदास को टिकट नहीं मिला जबकि अंतिम समय में शिक्षा मंत्री बने मातबर कंडारी 2012 के चुनाव में अपने साढू से ही हार गए।

2012 में राज्य में कांग्रेस सरकार बनी और मंत्री प्रसाद नैथानी को शिक्षा मंत्रालय मिला। लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में मंत्री प्रसाद नैथानी की मंत्री होने के बावजूद ऐसी गत बनी की वे देवप्रयाग की चुनावी जंग में तीसरे नंबर पर रहे। यानि शिक्षामंत्रालय का मिथक यहां भी जिंदा रहा।

शयद यही वजह है कि कोई भी शिक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी को संभालने को तैयार नहीं है, ऐसे मे ये देखना दिलचस्प होगा कि त्रिवेंद्र सिंह रावत आखिर किसको शिक्षा महकमे की जिम्मेदारी सौंपती है।

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