अपने पिता और पति से ज्याद डेनिस का नाम लेते हैं बीजेपी वाले: हरदा

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अपने पिता और पति से ज्याद डेनिस का नाम लेते हैं बीजेपी वाले: हरदा

Harish Rawat

हरदा ने कहा कि भाजपा के पास मुझ पर प्रहार करने के लिए एक ही अस्त्र है, डेनिस। जितनी बार भाजपा के लोग अपने ईष्ट देवता का, अपने पतिदेव का या अपने पिता का नाम नहीं लेते, उससे ज्यादा बार डेनिस का नाम लेते हैं। क्योंकि उनको लगता है कि लोगों को डेनिस का स्वाद पसंद नहीं आया था।


 

देहरादून (उत्तराखंड पोस्ट) उत्तराखंड में मौसम चुनावी है ऐसे में राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। अब पूर्व सीएम हरीश रावत ने बीजेपी पर तीखा प्रहार किया है।

हरदा ने कहा कि भाजपा के पास मुझ पर प्रहार करने के लिए एक ही अस्त्र है, डेनिस। जितनी बार भाजपा के लोग अपने ईष्ट देवता का, अपने पतिदेव का या अपने पिता का नाम नहीं लेते, उससे ज्यादा बार डेनिस का नाम लेते हैं। क्योंकि उनको लगता है कि लोगों को डेनिस का स्वाद पसंद नहीं आया था। लेकिन मैं एक बात सारे उत्तराखंड से कहना चाहता हूं कि आप अपने फलों जो B, C और D ग्रेड के फल हैं, अपने बब्बूगोशा, आलू आदि की मार्केटिंग कैसे करेंगे!

पूर्व सीएम आगे कहते हैं कि उत्पादक को उसका मूल्य मिले, इसको कैसे सुनिश्चित करेंगे! इसलिये मैंने निर्णय लिया कि हम शराब के बड़े विक्रेताओं को न देकर मंडी को दें जो सरकारी संस्था थी। कुमाऊं और गढ़वाल मंडल विकास निगम को फायदे में लाने के लिये हमने उनको भी जोड़ा और निर्णय लिया कि उस उत्पाद को उत्तराखंड में हम 20 प्रतिशत का मार्केटिंग राईट देंगे जो शराब निर्माता 20 प्रतिशत उत्तराखंडी फल और सब्जियों का उपयोग अपने आसवन में करेगा।

हरीश रावत आगे कहते हैं- मुझे जैसे ही मालूम हुआ कि सूर्यवंशी और चंद्रवंशी, दोनों को स्वाद पसंद नहीं आ रहा है तो मैंने उस फैसले को बदल दिया। मगर एक बात याद रखिएगा और मंडी को इसलिये काम दिया ताकि कुछ पूंजी बने और उससे उत्तराखंड में जगह-जगह फ्रूट वाइन बनाने के आसवनियां स्थापित की जा सके और हम उस दिशा में बड़े भी जो रुद्रपुर में चौलाई प्रोसेसिंग प्लांट है, जिससे चौलाई विक्रेताओं के चौलाई का दाम बहुत ऊंचा चला गया और झोगंरा व कौंड़ी के दाम भी ऊपर चले गये क्योंकि यहीं प्रोसेस होने लग गया, उस प्लांट के लिए भी पैसा यहीं से निकला था।

हरदा आगे कहते हैं-  मुख्यमंत्री के तौर पर आपको और बहुत सारे बहुआयामी निर्णय लेने पड़ते हैं, उनमें से एक निर्णय उद्यान उत्पादन को आबकारी नीति के साथ जोड़ने का भी था, हमने बहुत सारे सैकड़ों फैसले लिये। यदि एक फैसला लोगों को पसंद नहीं आया तो इसका अर्थ यह नहीं है कि हमारी सोच या हमारा फैसला गलत था। मैं आज भी कह रहा हूं कि बिना बागवानी के विकास के आप उत्तराखंड के पलायन को नहीं रोक सकते हैं। मडुवे के साथ आपको बब्बूगोशा और सी ग्रेड के फलों का भी समावेश करना पड़ेगा।

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