हरीश रावत का बड़ा चुनावी वादा, सरकार बनी तो पेंशन योजनाओं की लगेगी झड़ी

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हरीश रावत का बड़ा चुनावी वादा, सरकार बनी तो पेंशन योजनाओं की लगेगी झड़ी

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हरदा ने कहा कि समाज कल्याण के क्षेत्र में 2014 से 2016 तक उत्तराखंड के नागरिकों को करीब-करीब सार्वभौम पेंशन का अधिकार मिला। समाज कल्याण की पेंशन ₹200 प्रति माह से प्रारंभ हुई, कांग्रेस के कार्यकाल में ही ₹400 हुई, फिर मेरे मुख्यमंत्री काल में वो बढ़ाकर ₹800 हुई, फिर मेरी ही मुख्यमंत्री काल में उसको बढ़ाकर के ₹1000 किया गया।


 

देहरादून (उत्तराखंड पोस्ट) पूर्व सीएम हरीश रावत ने एक बार फिर दोहराया है कि प्रदेश की सत्ता में आने के बाद उन सभी पेंशन स्कीम को शुरु किया जाएगा, जिन्हें बीजेपी सरकार ने बंद कर दिया है।

हरदा ने कहा कि समाज कल्याण के क्षेत्र में 2014 से 2016 तक उत्तराखंड के नागरिकों को करीब-करीब सार्वभौम पेंशन का अधिकार मिला। समाज कल्याण की पेंशन ₹200 प्रति माह से प्रारंभ हुई, कांग्रेस के कार्यकाल में ही ₹400 हुई, फिर मेरे मुख्यमंत्री काल में वो बढ़ाकर ₹800 हुई, फिर मेरी ही मुख्यमंत्री काल में उसको बढ़ाकर के ₹1000 किया गया।

हरीश रावत ने आगे कहा कि महत्वपूर्ण यह नहीं है कि उस कालखंड में यह सर्वाधिक, वृद्धावस्था, विकलांग, विधवा पेंशन राशि थी। इस कालखंड में 2014 से 2016 तक, चुनावी आचार संहिता लगने तक 1,15,000 से समाज कल्याण के पेंशन धारियों की संख्या बढ़कर के 7,25,000 से ऊपर पहुंची। आप अंदाज लगा सकते हैं कि कितनी तीव्र वृद्धि दर, पेंशन धारियों की संख्या में रही है।

हरीश रावत ने कहाकि विधवा, दिव्यजन और वृद्धावस्था पेंशन सभी राज्यों में दी जाती है। हमने इसका दायरा बढ़ाकर के इसमें किसान पेंशन, पुरोहित, मौलवी-ग्रंथि पेंशन, बौना व्यक्तियों को पेंशन, अशक्त महिला को तीलू रौतेली पेंशन, परित्यक्ता महिला व ऐसी महिला जिसकी शादी न हो पाई हो और 40 साल से ऊपर की उम्र हो गई हो उनको भी पेंशन के लिए पात्र बनाया गया।

पूर्व सीएम ने कहा कि उत्तराखंड में जगरिया-हुड़किया शब्द का बड़ा भारी महत्व है, इन लोगों को भी पेंशन योजना में सम्मिलित किया गया। शिल्पियों को शिल्पी पेंशन से नवाजा गया, स्थानीय लोक विधाओं के कलाकारों को, पत्रकारों को, सभी तरीके के सृजन के कार्य में लगे हुये लोगों जिनमें मंगलगीत गाने वाली बहनें भी सम्मिलित हैं, पेंशन योजना के अंतर्गत सम्मिलित किया गया।

हरीश रावत ने कहा कि उत्तराखंड पहला राज्य था जिसने एक परिवार में दो पेंशन भी महिलाओं के हित में मान्य की, जिसे त्रिवेंद्र सिंह सरकार ने बंद कर दिया। दिव्यांग बच्चे के पैदा होते ही माँ को पालन-पोषण के लिए भी जब तक बच्चा पेंशन का पात्र नहीं बन जाता है, पोषण पेंशन प्रदान की गई।

पूर्व सीएम ने आगे कहा कि हमारा प्रयास रहा कि सृजन व निर्माण के कार्य में लगे हुये प्रत्येक उत्तराखंडी को जिसकी उम्र 60 साल हो गई है उसको किसी न किसी रूप में पेंशन की पात्रता के दायरे में लाया जाय और उसी प्रयास का फल था कि यह संख्या 3 साल के अंदर 7,25, 000 से ऊपर पहुंची। आज इनमें से कई पेंशनें बंद कर दी गई हैं, बड़ी संख्या में इन योजनाओं के लाभार्थियों को जिनको भाजपा सरकार ने पेंशनों से वंचित कर दिया था, के मन में सवाल है कि क्या कांग्रेस सत्ता में आने के बाद इन पेंशनों को फिर से प्रारंभ करेगी! जिनमें शगुन अक्षर व मंगल गीत गाने वाली महिलाएं भी सम्मिलित हैं, जिनकी पेंशन तो स्वीकृत हुई लेकिन पेंशन की राशि नहीं दी गई क्योंकि उससे पहले आचार संहिता लग गई। हरदा ने आखिर में वादा करते हुए कहा कि कांग्रेस हमेशा जरूरतमंद व कमजोर के साथ रही है, हम आगे भी जरूरतमंद और कमजोर के साथ रहेंगे, वृद्धजनों के साथ रहेंगे।

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