आपका ब्लॉग | वन्दे मातरम का विरोध संविधान व संसद का अपमान !

भाजपा प्रदेश् मीडिया प्रभारी डॉ देवेन्द्र भसीन जो इतिहास के प्राध्यापक भी हैं ने कहा कि वन्देमातरम का विरोध वस्तुतः राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन, संविधान व संसद का अपमान है। अब ख़बरें एक क्लिक पर इस लिंक पर क्लिक कर Download करें Mobile App – उत्तराखंड पोस्ट इस राष्ट्र गीत का विरोध करने वालो में अधिकांश वे लोग हैं जो
 

भाजपा प्रदेश् मीडिया प्रभारी डॉ देवेन्द्र भसीन जो इतिहास के प्राध्यापक भी हैं ने कहा कि वन्देमातरम का विरोध वस्तुतः राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन, संविधान व संसद का अपमान है। अब ख़बरें एक क्लिक पर इस लिंक पर क्लिक कर Download करें Mobile App – उत्तराखंड पोस्ट

इस राष्ट्र गीत का विरोध करने वालो में अधिकांश वे लोग हैं जो यह नहीं जानते कि सविधान सम्मत वन्देमातरम का सम्बन्ध किसी धर्म से नहीं है अपितु यह राष्ट्रीय आजादी की लड़ाई का प्रतीक है और इस 125 से अधिक पुराने इस गीत को स्वीकार व समर्थन करने वालो में गांधी, टैगोर नेहरू व् मौलाना आजाद  भी शामिल हैं। कांग्रेस ने इसे 1937 में ही राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकार कर लिया था।

उन्होंने ऐतिहासिक संदर्भो का उल्लेख करते हुए कहा कि वंदेमातरम् की रचना श्री बंकिम चंद्र चटोपाध्याय ने 1870 के दशक में की थी और उन्होंने इस गीत को 1882 में अपने अमर उपन्यास “आनंद मठ” में शामिल किया।

उस समय देश की स्वतंत्रता के लिए आन्दोलन शुरू हो चुका था। अंग्रेज अपनी महारानी के सम्मान में अंग्रेजी का गीत ” गॉड सेव द क्वीन” का गायन करते थे।जो राष्ट्रभक्त भारतीयों को पसंद नहीं था। इसके चलते वंदेमातरम् राष्ट्रीय आंदोलन का अटूट अंग बन गया । कांग्रेस के1896 के अधिवेशन में सर्वप्रथम रविंद्र नाथ टैगोर ने वन्देमातरम गाया

1905 में यह गीत हर जुलूस  में मार्चिंग सॉन्ग बन गया। परेशान अंग्रेज सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ। अपितु हजारों लोगों ने इसे गाते हुए गिरफ्तारियां दी।

इसी मध्य 1907 में जर्मनी में हुये अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भारतीय स्वतंत्रता सेनानी मैडम भीकाजी कामा जो पारसी महिला थी ने स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रस्तावित राष्ट्र ध्वज को सम्मेलन में फहराया।यह ध्वज तिरंगा था जिसमे बीच की पट्टी में वंन्दे मातरम् लिखा था। पहली पट्टी में कमल  पुष्प थे और नीचे की तीसरी पट्टी में अर्ध चंद्र और सूर्य थे। यहाँ उल्लेखनीय है कि उस समय  राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना भी नहीं हुई थी । भाजपा व् उससे पूर्व जनसंघ तो देश की आजादी के बाद अस्तित्व में आये।

डॉ भसीन ने आगे बताया कि कांग्रेस ने 1937 ने अपने सम्मेलन में व्न्दे मातरम् को भारत के राष्ट्र गीत के रूप में स्वीकार किया। पूरे गीत पर कुछ विरोधी स्वर उभरने के कारण इसके प्रथम दो पैरा लिए गए। इसे राष्ट्रीय गीत स्वीकार कराने में रविन्द्र नाथ टैगोर, मौलाना आजाद, प्. नेहरू व् आचार्य नरेंद्र देव की मुख्य भूमिका थी। इसके अलावा महात्मा गांधी ने 1946 में कहा था कि वे जय हिन्द नारे को अभिवादन के रूप में मानते हैं किन्तु   वन्दे मातरम् के स्थान पर जय हिन्द को नहीं लिया जाना चाहिए।

डॉ भसीन ने आगे  कहा कि देश की आजादी के बाद संविधान सभा में चर्चा के समापन पर अध्यक्षता कर रहे डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने जब यह घोषणा की कि बंदेमातरम् के प्रथम दो पैरा स्वीकार किये जाते है तो करतल ध्वनि से इसका स्वागत किया गया। यह गीत संविधान सभा में भी सत्र शुरू होने से पूर्व गाया गया।

डॉ भसीन ने कहा कि इस समय वन्देमातरम के गायन को लेकर जो लोग विवाद कर रहे है उन्हें यह भी पता होना चाहिये कि संसद में सदन प्रारम्भ होने पर भी वंदे मातरम् गाया जाता है और समापन पर जन गण मन का गान होता है। वन्देमातरम की पहली  इसकी रचना के तुरंत बाद जदुनाथ भट्टाचार्य ने बनाई थी। वर्तमान में लता मंगेशकर व् ऐ आर रहमान द्वारा गाये गए वन्देमातरम गीत बहुत लोक प्रिय हैं।

उनका कहना है कि वन्देमातरम का विरोध कर रहे लोग अपनी छोटी राजनीति के चक्कर में अन्य लोगो को गुमराह कर रहे हैं साथ ही वे स्वतंत्रता सेनानियों, संविधान व् संसद का भी अपमान कर रहे है।