पढ़ें- कांग्रेस क्यों कर रही है राज्यपाल को हटाने की मांग ?

उत्तराखंड में राज्य आंदोलनकारियों को दस प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण के मामले में कांग्रेस के मुख्य प्रचार समन्वयक व राज्य सरकार में दायित्वधारी धीरेंद्र प्रताप ने राज्यपाल डॉ. पाल पर निशाना साधा है। प्रताप ने राज्यपाल को उत्तराखंड विरोधी करार दिया है। प्रताप ने आंदोलकारियों को आरक्षण संबंधी विधेयक लगभग एक वर्ष से राजभवन में लंबित
 

उत्तराखंड में राज्य आंदोलनकारियों को दस प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण के मामले में कांग्रेस के मुख्य प्रचार समन्वयक व राज्य सरकार में दायित्वधारी धीरेंद्र प्रताप ने राज्यपाल डॉ. पाल पर निशाना साधा है। प्रताप ने राज्यपाल को उत्तराखंड विरोधी करार दिया है।

प्रताप ने आंदोलकारियों को आरक्षण संबंधी विधेयक लगभग एक वर्ष से राजभवन में लंबित होने पर कड़ी नाराजगी जताई। इतना ही नहीं धीरेंद्र प्रताप ने राज्यपाल को कार्यकाल पूरा होने से पहले ही उत्तराखंड से हटाए जाने की भी मांग की।

राज्य आंदोलकारी सम्मान परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष धीरेंद्र प्रताप ने कहा कि राज्य आंदोलनकारियों को दस फीसद आरक्षण संबंधी विधेयक दो नवंबर 2015 को गैरसैंण में विधानसभा में पारित किया गया था। राज्यपाल डॉ. पाल ने इस विधेयक को अब तक न तो मंजूरी दी और न वापस लौटाया। उन्होंने कहा कि राज्यपाल के इस रुख से वह बेहद क्षुब्ध हैं। लिहाजा, यदि राज्यपाल कार्यकाल पूर्ण होने से पहले ही देवभूमि से रुखसत हो जाएं, तो उन्हें बेहद खुशी होगी।

उन्होंने देश में राज्यपाल की चयन प्रक्रिया पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि केंद्र सरकार द्वारा किसी व्यक्ति को राज्यपाल नियुक्त करने के दौरान यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि उक्त व्यक्ति राज्य के इतिहास व सरोकारों को जानता है या नहीं।

राज्यपाल डॉ. पाल एक ईमानदार पुलिस अधिकारी भी रहे हैं, जिसके लिए वह उनका सम्मान करते हैं। अलबत्ता, राज्यपाल पद पर रहते हुए वह राज्य आंदोलनकारियों को आरक्षण संबंधी विधेयक पर जिस तरह का रुख अपनाए हुए हैं, वह आंदोलनकारियों का अपमान व उपेक्षा है।

आंदोलनकारी कुछ दिन पूर्व राष्ट्रपति से राज्यपाल को हटाने की मांग करने वाले थे। तब उन्होंने आंदोलनकारियों को रोका, मगर उक्त विधेयक पर राजभवन के रुख को देखकर वह भी मजबूर होकर राज्यपाल डॉ. पाल को उत्तराखंड से हटाने की इच्छा रखते हैं।

राज्य आंदोलनकारियों को दस प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण संबंधी विधेयक दो नवंबर 2015 को गैरसैंण में विधानसभा सत्र के दौरान पारित किया गया था। इसके बाद से उक्त बिल राजभवन में लंबित है।
राज्यपाल ने इस विधेयक को अब तक न तो मंजूरी दी और न उसे वापस लौटाया। दरअसल, इस मामले में हाईकोर्ट में भी एक याचिका विचाराधीन है। माना जा रहा है कि उक्त बिल के संबंध में राजभवन भी हाईकोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहा है।