चर्चा में है हरीश रावत को ये सपना, धामी को धाकड़ तो त्रिवेंद्र को मक्कड़ क्यों कहा ?

 
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देहरादून (उत्तराखंड पोस्ट) पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत पहाड़ी उत्पादों के प्रचार का कोई मौका नहीं छोड़ते और कोशिश में रहते हैं कि पहाड़ी फल, सब्जी और अन्य उत्पाद का बाजार बढ़े। अब पाहड़ों में पेड़ों में काफल नजर आने लगे हैं तो पूर्व सीएम ने अनोखे अंदाज में काफल सहित अन्य पहाड़ी उत्पादों के प्रमोशन करने का फैसला लिया है।

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हरदा इस बारे में अपने फेसबुक पेज पर लिखते हैं-  कल रात काफल सा शरीर मेरे सामने वृक्षवत रूप में आया उसके साथ उसके छोटे भाई हिसालू (हिंसर), किंगोड़ा (किल्मोड़ा), घिंघारू भी थे। काफल बोला तुम चौनालिया इंटर कॉलेज में काफल पाको चैता की धुन पर बड़ा नाच रहे थे! तुम्हारे उत्तराखंडी भाई-बंधु भी काफल पाको चैता-काफल पाको चैता की धुन पर मटकते रहते हैं। मगर जहां काफल पक रहा है वहां आकर भी क्या मेरा स्वाद चखा?

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मेरा छोटा भाई हिसालू (हिंसर) और किंगोडा (किल्मोड़ा) हजारों कांटों के साथ तुम्हारे लिए अपने फलों की रक्षा करता है, तुम्हें तब भी उसकी याद नहीं आती है! काफल ने मुझसे कहा जब ज्यादा शराब पीने से तुम्हें लीवर सिरोसिस हो जाता है, तब भी तुम्हे किंगोड़े की और मेरी याद नहीं आती है, मुझसे कहा कि बेकार है तुम्हारी प्रसिद्धी, कुछ करो तो मैं जानूं!

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हरीश रावत आखिरी में लिखते हैं- मैंने आंख खुलते ही फैसला लिया है कि इस साल मोहनरी में काफल मेला होगा। उम्मीद करता हूं श्री धामी धाकड़, श्री त्रिवेंद्र सिंह मक्कड़ आदि सभी पूर्व वर्तमान बड़े-बड़े नाम चारी लोग भी अपने-अपने गांव जाकर काफल का स्वाद चखें और रात केरुवा (asparagus) की सब्जी के साथ रोटी खाएं, यकीन मानिए काफल 500 रुपए से ऊपर बिकने लग जायेगा। हमारा उत्तराखंड और हरा-भरा हो जायेगा।