उत्तराखंड | धामी कैबिनेट ने लिया था फैसला, लेकिन आंदोलनकारियों के आरक्षण मामले में फंसा विधायी का पेच 

बीते दिनों धामी कैबिनेट ने राज्य आंदोलनकारियों और उनके आश्रितों को सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण देने का फैसला लिया था। लेकिन फिलहाल इसकी राह में विधायी का पेच फंस गया है। कैबिनेट की मंजूरी के बाद क्षैतिज आरक्षण से संबंधित संशोधित विधेयक को गैरसैंण विधानसभा सत्र के दौरान सदन पटल पर नहीं लाया जा सका। विधायी मामलों के जानकारों का मानना है कि विधेयक को सदन की मंजूरी के बाद ही राजभवन भेजा जा सकता है।
 

<a href=https://youtube.com/embed/nw5b4Q_pyYs?autoplay=1&mute=1><img src=https://img.youtube.com/vi/nw5b4Q_pyYs/hqdefault.jpg alt=""><span><div class="youtube_play"></div></span></a>" style="border: 0px; overflow: hidden"" style="border: 0px; overflow: hidden;" width="640">

देहरादून (उत्तराखंड पोस्ट) बीते दिनों धामी कैबिनेट ने राज्य आंदोलनकारियों और उनके आश्रितों को सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण देने का फैसला लिया था। लेकिन फिलहाल इसकी राह में विधायी का पेच फंस गया है। कैबिनेट की मंजूरी के बाद क्षैतिज आरक्षण से संबंधित संशोधित विधेयक को गैरसैंण विधानसभा सत्र के दौरान सदन पटल पर नहीं लाया जा सका। विधायी मामलों के जानकारों का मानना है कि विधेयक को सदन की मंजूरी के बाद ही राजभवन भेजा जा सकता है।

राज्य आंदोलनकारी सम्मान परिषद के पूर्व अध्यक्ष रविंद्र जुगरान ने प्रदेश सरकार से विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने का अनुरोध किया है। बता दें कि मुख्यमंत्री के अनुरोध पर आंदोलनकारियों के क्षैतिज आरक्षण का विधेयक राजभवन से लौटा था। राज्यपाल ने विधेयक लौटाने की वजह संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लघंन माना था। प्रदेश सरकार ने खामियां दूर करके विधेयक को दोबारा राजभवन भेजने की तैयारी की, लेकिन इससे पहले कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल की अध्यक्षता में मंत्रिमंडलीय उपसमिति बनाई। उपसमिति ने आंदोलनकारियों को आरक्षण देने की सिफारिश की। गैरसैंण विधानसभा सत्र के दौरान कैबिनेट ने उपसमिति की सिफारिश पर मुहर लगाई।

जानकारों के मुताबिक, प्रदेश मंत्रिमंडल की बैठक में राज्य आंदोलनकारियों के क्षैतिज आरक्षण के फैसले के बाद सरकार को राजभवन से लौटे विधेयक में जरूरी संशोधन कर उसे विधानसभा के पटल पर रखना था। सदन में पारित कर विधेयक को राजभवन भेजना चाहिए था, लेकिन आधिकारिक सूत्रों का मानना है कि संशोधित विधेयक पटल पर नहीं आ पाया। आनन-फानन में सत्र निपटाने के चक्कर में विधेयक लटक गया। सचिव कार्मिक शैलेश बगौली ने इस प्रस्ताव पर न्याय विभाग का परामर्श मांगा है।

सूत्रों के मुताबिक, न्याय विभाग से परामर्श प्राप्त नहीं हुआ है। माना जा रहा है कि चूंकि उच्च न्यायालय ने विधेयक के प्रावधानों को पहले ही संविधान के अनुच्छेद 14 व 16 का उल्लंघन माना है, इसलिए न्याय विभाग से विधेयक के पक्ष में परामर्श मिलने की उम्मीद कम है।

<a href=https://youtube.com/embed/deLGBB4tRfY?autoplay=1&mute=1><img src=https://img.youtube.com/vi/deLGBB4tRfY/hqdefault.jpg alt=""><span><div class="youtube_play"></div></span></a>" style="border: 0px; overflow: hidden"" style="border: 0px; overflow: hidden;" width="640">