उत्तराखंड | जानिए अपने लोक नृत्य को : छोलिया मतलब छल !

देहरादून [उत्तराखंड पोस्ट ब्यूरो] छोलिया, कुमाऊं का प्रसिद्ध परम्परागत लोक नृत्य है जिसका इतिहास सैकड़ों-हजारों वर्ष पुराना है। पुराने वक्त से ही छोलिया नृत्य उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान रहा है। एक साथ श्रृंगार और वीर रस दोनों के दर्शन कराने वाले इस नृत्य के बारे में अलग-अलग मत हैं। कुछ इसे युद्ध में जीत के बाद किया
 

देहरादून [उत्तराखंड पोस्ट ब्यूरोछोलिया, कुमाऊं का प्रसिद्ध परम्परागत लोक नृत्य है जिसका इतिहास सैकड़ों-हजारों वर्ष पुराना है। पुराने वक्त से ही छोलिया नृत्य उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान रहा है। एक साथ श्रृंगार और वीर रस दोनों के दर्शन कराने वाले इस नृत्य के बारे में अलग-अलग मत हैं। कुछ इसे युद्ध में जीत के बाद किया जाने वाला नृत्य मानते हैं तो कुछ इसे तलवार की नोक पर शादी करने वाले राजाओं के शासन की उत्पत्ति मानते हैं। (उत्तराखंड पोस्ट के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैंआप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भीकर सकते हैं)

कई वाद्य यंत्रों का होता है प्रयोग | इस नृत्य में ढोल-दमाऊं की भूमिका अहम होती है। इसके अलावा मसकबीन, नगाड़े, झंकोरा, कैंसाल और रणसिंगा आदि वाद्य यंत्रों का भी उपयोग इसमें बखूबी होता है। 90 के दशक तक छोलिया नृत्य लगभग हर कुमाउनी शादी में दिखाई दे जाता था लेकिन आज इसकी जगह बैंड-बाजे ने ले ली है। (उत्तराखंड पोस्ट के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैंआप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भीकर सकते हैं)

रंगीन पोशाक बनाती है खास | इन नृतकों की वेशभूषा में चूड़ीदार पैजामा (पायजामा), एक लंबा सा घेरदार छोला (कुर्ता) और उसके ऊपर पहनी जाती थी बेल्ट, सिर में पगड़ी, पैरों में घुंघरू की पट्टियां, कानों में बालियां और चेहर पर चंदन और सिन्दूर होता है। बारात के घर से निकलने पर कुछ पुरूष नृतक रंग-बिरंगी पोशाकों में तलवार और ढाल के साथ बारात के आगे-आगे नृत्य करते हुए चलते हैं। ये नृत्य दुल्हन के घर पहुंचने तक जारी रहता है। साथ में गाजा-बाजा भी होते है। बारात के साथ तुरी या रणसिंगा (ये कुमांऊनी संगीत यंत्र हैं जो रणभेरी या बैगपाईपर जैसे ही होते हैं) भी होता है, और हां, साथ में लाल रंग का झंडा भी चलता है। (उत्तराखंड पोस्ट के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैंआप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भीकर सकते हैं)

छोलिया मतलब छल ! | नृत्य के दौरान नृतकों की भाव-भंगिमा में ‘छल’ का प्रदर्शन होता है। वह अपने हाव-भाव से एक दूसरे को छेड़ने, चिढ़ाने और उकसाने के साथ ही डर और खुशी के भाव भी प्रस्तुत करते हैं। आस पास मौजूद लोग इस बीच कुछ रुपए या सिक्के उछालते हैं जिसे छोल्यार अपनी तलवार की नोक से ही उठाते हैं। छोल्यार द्वारा एक-दूसरे को उलझाकर, बड़ी ही चालाकी से पैसे खुद उठाने का प्रयास काफी रोचक होता है। (उत्तराखंड पोस्ट के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैंआप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भीकर सकते हैं)

लगभग 22 लोगों की इस छोलिया नृतकों की टीम में 8 नृतक और बाकि 14 लोग गाजे-बाजे वाले होते हैं। नृतकों का उछलना, पलटना, पीछा करना और हवा में तलवार उठाकर ललकारते हुए आगे बढ़ना इस नृत्य की विशेषताएं हैं
आज के दौर में भी कुछ विवाह में आपको ये नृत्य देखने को मिल जाएगा। वर पक्ष की ओर से इन्हें आमन्त्रित किया जाता है। नृत्य करते हुए ये बरात का मार्ग प्रदर्शित करते हुए वधु के घर के प्रांगण तक ले जाते हैं। (उत्तराखंड पोस्ट के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैंआप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भीकर सकते हैं)