नवरात्रि | दूसरे दिन होती है मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा
आदि शक्ति मां दुर्गा का द्वितीय रूप है श्री बह्मचारिणी। मां दुर्गा अपने इस रूप में पूर्ण रूप से शांत हैं साथ ही निमग्न होकर तप में लीन हैं। कठोर तप के कारण मां के मुख पर तेज विराजमान है जो तीनों लोकों को प्रकाशमान कर रहा है। अब ख़बरें एक क्लिक पर इस लिंक पर क्लिक कर Download करें Mobile App – उत्तराखंड पोस्ट
ब्रह्म का अर्थ है, तपस्या, तप का आचरण करने वाली भगवती, जिस कारण इन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया। इनके दाहिने हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमण्डल है। कुंडलिनी जागरण के साधक इस दिन स्वाधिष्ठान चक्र को जाग्रत करने की साधना करते हैं।
माता ब्रह्मचारिणी हिमालय और मैना की पुत्री हैं। इन्होंने देवर्षि नारद जी के कहने पर भगवान शंकर की कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने इन्हें मनोवांछित वरदान दिया। इस वरदान के फलस्वरूप ही देवी भगवान भोले नाथ की वामिनी अर्थात पत्नी बनी। ब्रह्मचारिणी देवी की कथा का सार ये है कि जीवन के कठिन से कठिन समय में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए।नवरात्र में भगवती नौ दिनों तक अपने भक्तों पर कृपा करने के लिए पृथ्वी पर रहती हैं। इसीलिए नवरात्रि के नौ दिन मां की उपासना के लिए सर्वोत्तम समय होता है। मां ब्रह्मचारिणी की आराधना से साधक को सुख और आरोग्य की प्राप्ति होता है। साधक के घर में शांति व प्रसन्नता बनी रहती हैं। मां ब्रह्मचारिणी वो शक्ति है जो सम्पूर्ण जगत को संचालित कर रही है। मां सर्वव्यापी है…अपने भक्तों पर कल्याण करने वाली हैं। असंभव को संभव बनाने वाली हैं। मां के भक्तों पर हमेशा सुख, समृधि और शांति बनी रहती है। साधक को इस सम्पूर्ण चराचर में कोई भय नहीं होता।