गांधी जयंती विशेष | जानिए कैसा रहा गांधी से ‘महात्मा’ बनने तक का सफर

नई दिल्ली (उत्तराखंड पोस्ट ब्यूरो) पूरे देश में आज गाधी जयंदी मनाई जा रही है। हर जगह कार्यक्रम हो रहे है और बापू के याद किया जा रहा है। गाधींजी के बारे में पूरी दुनिया जानती है मगर आज उनकी 150वीं जयंती के मौके पर आइये हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि पोरबंदर के
 
नई दिल्ली (उत्तराखंड पोस्ट ब्यूरो) पूरे देश में आज गाधी जयंदी मनाई जा रही है। हर जगह कार्यक्रम हो रहे  है और बापू के याद किया जा रहा है। गाधींजी के बारे में पूरी दुनिया जानती है मगर आज उनकी 150वीं जयंती के मौके पर आइये हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि पोरबंदर के मोहनदास को उनके जीवन के किन महत्वपूर्ण पड़ावों और घटनाओं ने महात्मा बना दिया।
गाधी जी का जन्म गुजरात में 2 अक्तूबर 1869 को हुआ था। मोहनदास करमचंद गांधी ने सत्य और अहिंसा को अपना ऐसा मारक और अचूक हथियार बनाया जिसके आगे दुनिया के सबसे ताकतवर ब्रिटिश साम्राज्य को भी घुटने टेकने पड़े।

मोहन दास के जीवन पर पिता करमचंद गांधी से ज्यादा उनकी माता पुतली बाई के धार्मिक संस्कारों का प्रभाव पड़ा। बचपन में सत्य हरिश्चंद्र और श्रवण कुमार की कथाओं ने उनके जीवन पर इतना गहरा असर डाला कि उन्होंने इन्हीं आदर्शों को अपना मार्ग बना लिया। जिस पर चलते हुए बापू देश के राष्ट्रपिता बन गए। वर्ष 1883 में कस्तूरबा से उनका विवाह के दो साल बाद उनके पिता का देहांत हो गया।

राजकोट के अल्फ्रेड हाई स्कूल और भावनगर के शामलदास स्कूल में शुरुआती पढ़ाई पूरी कर मोहन दास 1888 में बैरिस्टरी की पढ़ाई के लिए यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन पहुंच गए। स्वदेश लौटकर बंबई में वकालत शुरू की, लेकिन खास सफलता नहीं मिलने पर 1893 में वकालत करने दक्षिण अफ्रीका चले गए। यहां गांधी को अंग्रेजों के भारतीयों के साथ जारी भेदभाव का अनुभव हुआ और उन्हें इसके खिलाफ संघर्ष को प्रेरित किया। दक्षिण अफ्रीका में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ उनकी कामयाबी ने गांधी को भारत में भी मशहूर कर दिया और वर्ष 1917 में उन्होंने चंपारण के नील किसानों पर अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। इसके बाद तो गांधी जी के जीवन का एकमात्र लक्ष्य ही ब्रितानी हुकूमत को देश के बाहर खदेड़ना बन गया। आखिर 15 अगस्त 1947 को देश को आजादी मिली और पूरे देश ने उन्हें अपना ‘राष्ट्रपिता’ माना।

गांधीजी के वो आंदोलन जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को हिला डाला :

  • असहयोग आंदोलन (1920) | दमनकारी रॉलेट एक्ट और जालियांवाला बाग संहार की पृष्ठभूमि में गांधी ने भारतीयों से ब्रिटिश हुकूमत के साथ किसी तरह का सहयोग नहीं करने के आह्वान के साथ यह आंदोलन शुरू किया। इस पर हजारों लोगों ने स्कूल-कॉलेज और नौकरियां छोड़ दीं।
  • सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930) | स्वशासन और आंदोलनकारियों की रिहाई की मांग व साइमन कमीशन के खिलाफ इस आंदोलन में गांधी ने सरकार के किसी भी आदेश को नहीं मानने का आह्वान किया। सरकारी संस्थानों और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया।
  • भारत छोड़ो आंदोलन (1942) | गांधी जी के नेतृत्व में यह सबसे बड़ा आंदोलन था। गांधी ने 8 अगस्त 1942 की रात अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के बंबई सत्र में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का नारा दिया। आंदोलन पूरे देश में भड़क उठा और कई जगहों पर सरकार का शासन समाप्त कर दिया गया।

गांधीजी द्वारा लिखी गई किताबें :

  •  ‘हिंद स्वराज्य’ गांधी की लिखी यह पुस्तक उनके सबसे करीब रही। इसे 1909 में लंदन से दक्षिण अफ्रीका लौटते हुए लिखा था।
  • ‘सत्य के प्रयोग’ गांधी जी ने गुजराती में लिखी अपनी आत्मकथा में जीवन के आरंभ से 1921 तक के हिस्से को समेटा है।
  •  ‘दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास’ पुस्तक में गांधी जी ने वहां किए अपने सत्याग्रह की बातें कही हैं।
  • ‘महात्मा गांधी : रोम्यां रोलां’ पुस्तक में नोबेल विजेता फ्रांसीसी साहित्यकार ने उनके जीवन और दर्शन को सत्य, अहिंसा, प्रेम, विश्वास और आत्मत्याग जैसी धारणाओं के संदर्भ में परखा है।

गांधीजी की यात्राएं :

  • भारत यात्रा : गांधी जी ने गोपालकृष्ण गोखले की सलाह पर स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल होने से पहले देश का आंखों देखा हाल जानने के मकसद से पूरे देश का भ्रमण किया।
  • चंपारण यात्रा : राजकुमार शुक्ल की गुहार पर गांधी जी अप्रैल 1917 में चंपारण पहुंचे और वहां के नील किसानों पर अंग्रेजों के अत्याचार को अपनी आंखों देखा और उसके खिलाफ निर्णायक लड़ाई का नेतृत्व किया।
  • दांडी यात्रा : ब्रिटिश सरकार ने नमक बनाने पर कानूनी रोक लगा दी। इसके खिलाफ गांधी जी ने साबरमती आश्रम से दांडी समुद्र तट करीब 400 किलोमीटर दूरी पैदल तय की और वहां नमक बनाकर कानून तोड़ा। यह यात्रा 12 मार्च 1930 से 6 अप्रैल 1930 तक चली।

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