मुख्य सूचना आयुक्त ने तलब की NRHM दवा घोटाले की रिपोर्ट

नेशनल रूरल हेल्थ मिशन के 600 करोड़ रुपये के दवा घोटाले पर केंद्रीय सूचना आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त राधाकृष्ण माथुर ने इस आदेश के 30 दिन के भीतर मुख्य सचिव व सचिव स्वास्थ्य से कार्रवाई (एक्शन टेकन) पर रिपोर्ट तलब की है। CM ने दी थी हरी झंडी | गौरतलब है कि राज्य सूचना
 

नेशनल रूरल हेल्थ मिशन के 600 करोड़ रुपये के दवा घोटाले पर केंद्रीय सूचना आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त राधाकृष्ण माथुर ने इस आदेश के 30 दिन के भीतर मुख्य सचिव व सचिव स्वास्थ्य से कार्रवाई (एक्शन टेकन) पर रिपोर्ट तलब की है।

CM ने दी थी हरी झंडी | गौरतलब है कि राज्य सूचना आयोग के तत्कालीन सूचना आयुक्त अनिल कुमार के 31 दिसंबर 2013 के आदेश में मुख्य सचिव से सीबीआइ जांच की सिफारिश की गई थी। इसके बाद 11 अप्रैल 2014 को मुख्यमंत्री ने सीबीआइ जांच की हरी झंडी दी थी और इसी साल 29 अप्रैल को शासन ने इसका नोटिफिकेशन भी कर दिया था। हालांकि इसके बाद प्रकरण में एफआइआर दर्ज न कर फाइल को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। जबकि सीबीआइ ने सितंबर 2014 में सरकार को रिमाइंडर भी भेजा था।

पीएमओ में की थी शिकायत |  इस मामले को पूर्व में राज्य सूचना आयोग तक ले जाने वाले आरटीआइ कार्यकर्ता सुभाष घाट, हरिद्वार निवासी रमेश चंद्र शर्मा ने कुछ दिन पहले पीएमओ (प्रधानमंत्री कार्यालय) से शिकायत की थी। अपनी शिकायत पर की गई कार्यवाही की जानकारी उन्होंने पीएमओ से आरटीआइ में मांगी थी। पीएमओ ने जवाब दिया कि शिकायत राज्य के मुख्य सचिव को भेज दी गई है। जवाब से संतुष्ट न होने पर रमेश चंद्र शर्मा ने केंद्र सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया। 21 जुलाई 2016 को मामले की सुनवाई करते हुए केंद्रीय मुख्य सूचना आयुक्त ने सीबीआइ जांच डंप किए जाने पर मुख्य सचिव व स्वास्थ्य सचिव से जवाब मांगा।

क्या था मामला | यह मामला वर्ष 2008 में एनआरएचएम में 14.70 करोड़ की राशि से नि:शुल्क वितरण के लिए खरीदी गई दवाइयों से प्रकाश में आया था। इसके तहत निदेशक स्टोर ने 27 दिसंबर 2008 को 2500 किट-ए, 2050 किट-बी व 10 हजार आशा किट खरीदने का ऑर्डर ङ्क्षहदुस्तान एंटी बायोटेक कंपनी को दिया। ये वे दवाएं थी, जिनकी जिलों को आवश्यकता नहीं थी, फिर भी इनकी खरीद की गई। इसी कारण ये दवाएं लंबे समय तक रुड़की के ड्रग वेयरहाउस में डंप रहीं। बाद में जब ये एक्सपायर हो गईं, तो इन्हें नाले में बहा दिया गया। इनकी कीमत करीब 21 लाख 62 हजार 756 रुपये थी। इसी तरह वर्ष 2010 तक करीब 1.21 करोड़ रुपये की दवाएं अधिकारियों की लापरवाही से एक्सपायर हो गईं।