बुझ गई 'पहाड़ पर लालटेन', 72 वर्ष की उम्र में मंगलेश डबराल का निधन 

हिंदी साहित्य जगत ने एक चमकता हुआ सितारा खो दिया। साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता, हिंदी भाषा के प्रख्यात लेखक और समकालीन हिन्दी कवियों में सबसे चर्चित मंगलेश डबराल अब हमारे बीच नहीं रहे।
 

देहरादून (उत्तराखंड पोस्ट) हिंदी साहित्य जगत ने एक चमकता हुआ सितारा खो दिया। साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता, हिंदी भाषा के प्रख्यात लेखक और समकालीन हिन्दी कवियों में सबसे चर्चित मंगलेश डबराल अब हमारे बीच नहीं रहे।

उन्होंने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में आखिरी सांस ली। मंगलेश अंतिम समय में कोरोना वायरस और निमोनिया की चपेट में आने के बाद अस्पताल में भर्ती हुए थे। उनकी उम्र 72 वर्ष थी। सांस लेने में हो रही परेशानी के चलते उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। बताया जा रहा है कि उनका निधन दिल का दौरा पड़ने से हुआ।

साहित्य अकादमी से पुरस्कृत कवि मंगलेश डबराल नवंबर के आखिरी हफ्ते से ही बीमार चल रहे थे। पहले उनका गाजियाबाद के एक अस्पताल में इलाज कराया जा रहा था। सांस लेने में परेशानी के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उनकी हालत नाजुक बनी हुई थी। बीच में उनकी हालत में कुछ सुधार देखा गया था लेकिन वह पूरी तरह से रिकवर नहीं कर सके।

इसके बाद उन्हें उनकी सहमति से एम्स में भर्ती कराया गया, जहां उनकी तबीयत स्थिर बनी रही। बीच में उनकी तबीयत में कुछ सुधार देखा गया था, लेकिन रविवार शाम से उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। यहां उनके शरीर के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। उनको बुधवार शाम को डायलिसिस के लिए ले जाया जा रहा था कि तभी उनको दिल के दो दौरे पड़े। उनको बचाने की आखिरी समय तक कोशिश की गई, लेकिन बचाया नहीं जा सका।

टिहरी में हुआ था जन्म

  • मंगलेश डबराल मूलरूप से उत्‍तराखंड के निवासी थे। उनका जन्‍म 14 मई 1949 को टिहरी गढ़वाल, के काफलपानी गांव में हुआ था। उनकी शिक्षा-दीक्षा देहरादून में ही हुई थी।
  • दिल्‍ली में कई जगह काम करने के बाद मंगलेश डबराल ने मध्‍यप्रदेश का रूख किया। भोपाल में वह मध्यप्रदेश कला परिषद्, भारत भवन से प्रकाशित होने वाले साहित्यिक त्रैमासिक पूर्वाग्रह में सहायक संपादक रहे। उन्‍होंने लखनऊ और इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाले अमृत प्रभात में भी कुछ दिन नौकरी की। वर्ष 1963 में उन्‍होंने जनसत्ता में साहित्य संपादक का पद संभाला। उसके बाद कुछ समय तक वह सहारा समय में संपादन कार्य में लगे रहे। आजकल वह नेशनल बुक ट्रस्‍ट से जुड़े हुए थे।

1967 के नक्सलबाड़ी आंदोलन ने कवियों की जिस पीढ़ी की रचना की उनमें मंगलेश डबराल अग्रिम पंक्ति में शुमार रहे। उन्होंने अमृत प्रभात, जनसत्ता, सहारा, प्रतिपक्ष और शुक्रवार में साहित्यिक पत्रकारिता भी की। उनके कविता संग्रहों में ‘पहाड़ पर लालटेन’, ‘घर का रास्ता’, ‘हम जो देखते हैं’, ‘मुझे दिखा एक मनुष्य’, ‘आवाज़ भी एक जगह है’, ‘नए युग में शत्रु’ और ‘कवि ने कहा’ शामिल हैं।

इसके अलावा उन्होंने ‘लेखक की रोटी’, ‘कवि का अकेलापन’ जैसे गद्य संग्रह और ‘एक बार आयोवा’ यात्रा वृतांत भी लिखा। विश्व साहित्य के कई बड़े नामों (बर्टोल्ट ब्रेष्ट, पाब्लो नेरूदा, अर्नेस्तो कार्देनल आदि) को उन्होंने हिंदी में अनूदित किया तो उनकी कविताओं का भी कई भाषाओं में अनुवाद हुआ। उन्हें साहित्य अकादमी, श्रीकांत वर्मा पुरस्कार, शमशेर वर्मा सम्मान, पहल सम्मान आदि सम्मान प्राप्त हुए।

मंगलेश डबराल कुछ ऐसे भी थे कि पहाड़ से उतरकर जिसका शरीर दिल्ली में आ गया हो लेकिन आत्मा पहाड़ के किसी छोटे नोकीले पत्थर पर अटक गई हो। मंगलेश के ख़ज़ाने में तीखी राजनीतिक और गुड़ जैसी मीठी मानवीय संवेदनाओं की भरपूर कविताएं हैं।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मंगलेश डबराल के निधन पर गहरा दुख जताया है। मुख्यमंत्री ने कहा - हिंदी भाषा के प्रख्यात लेखक और समकालीन हिन्दी कवियों में सबसे चर्चित मंगलेश डबराल के निधन का दुःखद समाचार प्राप्त हुआ। ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करे। आपकी रचनाओं के माध्यम से आप हम सभी के बीच सदैव जीवित रहेंगे। ॐ शांति!

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा- हम लोग मंगलेश डबराल जी के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करते रह गये, क्रूर काल के हाथों मंगलेश डबराल जी हमसे दूर चले गये। हिंदी साहित्य जगत ने एक चमकता हुआ सितारा खो दिया, साहित्य की प्रत्येक विधा में मंगलेश डबराल एक सुप्रसिद्ध नाम थे, लोग उनसे बहुत प्यार करते थे, एक ऐसे व्यक्ति थे जिनकी लेखनी से करुणा बरसती थी, मंगलेश जी आप लोगों को बहुत याद आएंगे। भगवान, आपकी आत्मा को शांति दें एवं परिजनों को इस महान दु:ख को सहने की शक्ति प्रदान करें व हम सब इस दु:ख की घड़ी में आपके परिवार के साथ खड़े है।