मंकीपॉक्स | पड़ोसी देश पाकिस्तान तक पहुंचा वायरस, भारत को कितना खतरा; जानिए लक्षण और बचाव

अफ्रीका से चला खतरनाक एमपॉक्स (मंकीपॉक्स) वायरस पड़ोसी देश पाकिस्तान तक पहुंच चुका है। फिलहाल पाकिस्तान में मंकीपॉक्स के तीन मामले सामने आए हैं। तीनों मामले इंटरनेशनल फ्लाइट से उतरने वाले लोगों में मिले हैं। ये नहीं पता चल पाया कि तीनों में कौन सा वैरिएंट है।

 
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नई दिल्ली (उत्तराखंड पोस्ट) 15 अगस्त को WHO यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एमपॉक्स को इंटरनेशनल पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित किया है। अब तक दुनिया भर में इसके 20,000 केस मिल चुके हैं और 537 लोगों की मौत हो चुकी है।

अफ्रीका से चला खतरनाक एमपॉक्स (मंकीपॉक्स) वायरस पड़ोसी देश पाकिस्तान तक पहुंच चुका है। फिलहाल पाकिस्तान में मंकीपॉक्स के तीन मामले सामने आए हैं। तीनों मामले इंटरनेशनल फ्लाइट से उतरने वाले लोगों में मिले हैं। ये नहीं पता चल पाया कि तीनों में कौन सा वैरिएंट है।

क्या भारत में लोगों को इससे डरने की जरुरत है औऱ आखिर क्या है ये एमपॉक्स (मंकीपॉक्स) वायरस आइए जानते हैं-

पिछले कुछ दिनों में ये बीमारी तेजी से फैली है। WHO को आशंका है कि यह दुनिया के दूसरे देशों में फैल सकती है। इसकी शुरुआत अफ्रीकी देश कांगो से हुई थी। इसके बाद ये तेजी से पड़ोसी देशों में फैली। कोरोना की तरह यह विमान यात्रा एवं अन्य ट्रैवलर साधनों से दूसरे देशों में फैल रही है। अफ्रीका के दस देश इसकी गंभीर चपेट में हैं। 15 अगस्त को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया कि अब तक केवल अफ्रीका में ही इसके 20 हजार से ज्यादा मामले आ चुके हैं।

भारत में भी सऊदी अरब और अफ्रीका से आवाजाही चल रही है। इसलिए भारत में एमपॉक्स फैलने का खतरा है। 2022 में भी भारत एमपॉक्स की चपेट में आ चुका है। एमपॉक्स के फैलने की रफ्तार धीमी है। ये कोरोना जितना संक्रामक नहीं है। इसमें मृत्यु दर भी कोरोना के मुकाबले बहुत कम है।

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पहली बार मंकीपॉक्स 1958 में खोजा गया था। तब डेनमार्क में रिसर्च के लिए रखे दो बंदरों में चेचक जैसी बीमारी के लक्षण सामने आए थे। इंसानों में इसका पहला मामला 1970 में कॉन्गों में 9 साल के बच्चे में पाया गया। आम तौर पर ये बीमारी रोडेंट्स यानी चूहे, गिलहरी और नर बंदरों से फैलती है।

यह बीमारी इंसानों से इंसानों में भी फैल सकती है। इसके लक्षण चेचक के समान होते हैं। इसमें शरीर में फफोले या छाले पड़ जाते हैं। ये छोटे दानेदार या बड़े भी होते हैं। इन फफोलों या छालों में मवाद भर जाता है। ये धीरे-धीरे सूखकर ठीक होते हैं। इस दौरान बुखार, जकड़न और असहनीय दर्द होता है।

2022 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तय किया कि मंकीपॉक्स नाम बंदरों के लिए एक कलंक जैसा है। ये वायरस बंदरों के अलावा दूसरे जानवरों से भी आता है। इसलिए इसका नाम बदलकर एमपॉक्स कर दिया गया। अब पूरी दुनिया में इसे एमपॉक्स कहा जाता है।

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मंकीपॉक्स का 'क्लेड Ib' नामक एक नया वैरिएंट तेजी से फैल रहा है। यह मूलत: अफ्रीका के कांगो में पाया गया है। क्लेड Ib मुख्य रूप से घरेलू संपर्कों से फैल रहा है। अक्सर बच्चों को संक्रमित करता है। क्लेड IIb वो है जो पिछले साल 2022 में फैला था। ये वाला वैरिएंट यौन संपर्कों से ज्यादा फैलता है।

जब भी कोई किसी पेशेंट के संपर्क में आता है तो वायरस एक सेहतमंद व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करता है। उसके 3 से 7 दिन के भीतर ये वायरस असर करने लगता है। एमपॉक्स से पीड़ित लोग संक्रामक होते हैं। जब तक सभी घाव ठीक नहीं हो जाते और त्वचा की नई परत नहीं बन जाती, तब तक वे दूसरों को इसे फैला सकते हैं। एमपॉक्स के लिए स्पेसिफिक कोई वैक्सीन नहीं है। हल्के मामले में एमपॉक्स के लिए कोई टीका या दवा उपलब्ध नहीं है। लोग अपनी प्रतिरोधक क्षमता से ही ठीक हो जाते हैं।

यूनाइटेड स्टेट्स फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने JYNNEOS जिसे इम्वाम्यून या इम्वानेक्स भी कहा जाता है, इसे मंकीपॉक्स के इलाज के लिए मंजूरी दी है। यदि मंकीपॉक्स के एक्सपोजर के 4 दिनों के भीतर इसे मरीज को दिया जाता है, तो यह टीका संक्रमण की संभावना को कम कर सकता है। अगले 14 दिनों में बीमारी की गंभीरता को कम कर सकता है। कई देशों में इसे ही मंकीपॉक्स की वैक्सीन मान लिया गया है।

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किसी को एमपॉक्स हुआ तो पेशेंट को आइसोलेट कर देना चाहिए। उसकी उपयोग की गई चीजों को उपयोग नहीं करना चाहिए। संक्रमण सामने आते ही वैक्सीन लगवानी चाहिए। जब तक त्वचा की नई परत न आए दूसरे लोगों से दूर रहना चाहिए। इसके लिए कोई तय इलाज नहीं है। इस कारण डॉक्टर लक्षण के आधार पर इलाज करते हैं, जैसे बुखार होने पर उसकी दवा। दर्द होने पर दर्द निवारक दवा। मरीज को अच्छी डाइट देना चाहिए ताकि उसकी प्रतिरोधक क्षमता बढ़े और वह जल्दी ठीक हो जाए।