लोकसभा चुनाव | बेटे और जिगरी दोस्त के बीच फंस गए हरीश रावत, अब क्या करेंगे ?

बेटे की चुनावी कमान संभालने वाले हरीश रावत की डिमांड बाकी की चारों लोकसभा अल्मोड़ा, नैनीताल, टिहरी औऱ पौड़ी – गढ़वाल लोकसभा में भी लेकिन हरीश रावत पहली बार चुनावी कुरुक्षेत्र में उतरे अपने बेटे के कारण प्रचार के लिए हरिद्वार लोकसभा सीट से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं।
 
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हरिद्वार/ अल्मोड़ा (उत्तराखंड पोस्ट) उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत इस बार हरिद्वार लोकसभा सीट से अपने बेटे को टिकट दिलाने में सफल रहे और अब हरदा की कोशिश है कि अपने बेटे को सांसद बना दें। इसके लिए हरीश रावत जी-तोड़ मेहनत भी कर रहे हैं औऱ सबह से लेकर देर रात तक बेटे के चुनाव प्रचार की कमान पूर्व सीएम ने संभाल रखी है।

बेटे की चुनावी कमान संभालने वाले हरीश रावत की डिमांड बाकी की चारों लोकसभा अल्मोड़ा, नैनीताल, टिहरी औऱ पौड़ी – गढ़वाल लोकसभा में भी लेकिन हरीश रावत पहली बार चुनावी कुरुक्षेत्र में उतरे अपने बेटे के कारण प्रचार के लिए हरिद्वार लोकसभा सीट से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं।

<a href=https://youtube.com/embed/G-Qy_UJvMYg?autoplay=1&mute=1><img src=https://img.youtube.com/vi/G-Qy_UJvMYg/hqdefault.jpg alt=""><span><div class="youtube_play"></div></span></a>" style="border: 0px; overflow: hidden"" style="border: 0px; overflow: hidden;" width="640">

हरीश रावत की सबसे ज्यादा डिमांड उनके गृह क्षेत्र की लोकसभा सीट अल्मोड़ा में है, जहां उनके सबसे जिगरी दोस्तों में से एक प्रदीप टम्टा चुनावी समर में हैं। हरदा पर जिम्मेदारी अपने वर्षों पुराने दोस्त प्रदीप टम्टा की वैतरणी पार लगाने की भी है। टम्टा भी हरीश रावत की राह देख रहे हैं औऱ चाहते हैं कि हरदा अल्मोड़ा के लिए समय निकालें तो उनके पक्ष में भी माहौल बने।

ऐसे में हरीश रावत के सामने एक तरफ बेटा वीरेंद्र रावत है, तो दूसरी तरफ वर्षों की पुरानी दोस्ती। एक समय था जब अल्मोड़ा सीट पर हरीश रावत का वर्चस्व था। 1980 में इस सीट पर उन्होंने पहली बार लोकसभा चुनाव जीत कर संसद में कदम रखा। उस समय अल्मोड़ा सीट अनारक्षित थी। इसके बाद यहां से तीन बार चुनाव जीत कर सांसद चुने गए। 1980 व 1984 के चुनाव में भाजपा के कद्दावर नेता मुरली मनोहर जोशी को भी पराजित किया।

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उत्तराखंड की अल्‍मोड़ा सीट के अंतर्गत बागेश्‍वर, चंपावत, पिथौरागढ़ और अल्‍मोड़ा चार जिले आते हैं। इसके साथ ही इस लोकसभा सीट में विधानसभा की 14 सीटें भी शामिल हैं। इसमें सोमेश्वर, अल्मोड़ा, रानीखेत, द्वाराहाट, सल्ट सीट और जागेश्वर शामिल हैं. वहीं पिथौरागढ़ जिले की बात करें तो इसमें धारचूला, डीडीहाट, पिथौरागढ़ के अलावा गंगोलीहाट विधानसभा सीट भी इसी लोकसभा सीट में आती है।

2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के उम्‍मीदवार अजय टम्‍टा ने कांग्रेस के प्रत्‍याशी प्रदीप टम्‍टा को हराकर जीत हासिल की थी। इस चुनाव में अजय टम्‍टा को 4 लाख 44 हजार 651 वोट हासिल हुए थे जबकि कांग्रेस के उम्‍मीदवार प्रदीप टम्‍टा को 2 लाख 11 हजार 665 वोट हासिल हुए थे। अल्मोड़ा पिथौरागढ़ लोकसभा सीट के निर्वाचन क्षेत्र की बात करें तो यहां पर कुल 13 लाख 37 हजार 808 मतदाता हैं जबकि 2019 में केवल 6 लाख 94 हजार 472 मतदाताओं ने ही अपने मताधिकार का इस्‍तेमाल किया।

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अल्मोड़ा पिथौरागढ़ लोकसभा सीट पर पहली बार साल 1957 में लोकसभा चुनाव हुए थे, उसके बाद से 1971 तक जितने भी लोकसभा चुनाव हुए उसमें कांग्रेस ने ही जीत हासिल की है। यहां पर सबसे पहली बार स्वतंत्रता सेनानी बद्री दत्त पांडे चुनाव जीते। उन्‍होंने सोबन सिंह जीना को हराकर इस सीट पर कब्‍जा किया था। इस लोकसभा सीट के बारे में कहा जाता है कि यहां पर सबसे कम वोट प्रतिशत के साथ मतदान होते हैं।1977 के चुनाव में जनता पार्टी के डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने कांग्रेस के दबदबे को तोड़ते हुए इस सीट पर जीत हासिल की। 1980 से 1989 तक हरीश रावत ने इस सीट पर कांग्रेस का परचम लहराया। 1996 से 1999 के बीच भाजपा के बच्ची सिंह रावत ने लगातार तीन बार इस सीट पर जीत हासिल की।

बहरहाल अबब देखना होगा कि हरीश रावत कैसे औऱ कब अपने बेटे के चुनाव प्रचार के साथ- साथ अपने जिगरी दोस्त प्रदीप टम्टा के लिए समय निकाल पाते हैं, फिलहाल तो हरीश रावत हरिद्वार लोकसभा सीट पर ही पूरी ताकत झोंक कर बैठे हैं।

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आपको बता दें कि उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव पांचों लोकसभा सीटों पर पहले चरण में ही 19 अप्रैल को होना है, ऐसे में चुनाव प्रचार के लिए अब वक्त भी काफी कम बचा है।

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