उत्तराखंड में आपको मिलेगा गुलदार सफारी का भी मजा

उत्तराखंड सरकार ने प्रदेश में गुलदारों की बढ़ती संख्या को देखते हुए, गुलदारों के पुनर्वास हेतु प्रदेश में विभिन्न स्थानों पर गुलदार सफारी की स्थापना करने का फैसला लिया है। साथ ही कार्बेट टाइगर रिजर्व में स्पेशल टाइगर फोर्स की स्थापना करने का भी फैसला किया है। शनिवार को उत्तराखंड वन्यजीव बोर्ड की बैठक में
 

उत्तराखंड सरकार ने प्रदेश में गुलदारों की बढ़ती संख्या को देखते हुए, गुलदारों के पुनर्वास हेतु प्रदेश में विभिन्न स्थानों पर गुलदार सफारी की स्थापना करने का फैसला लिया है। साथ ही कार्बेट टाइगर रिजर्व में स्पेशल टाइगर फोर्स की स्थापना करने का भी फैसला किया है। शनिवार को उत्तराखंड वन्यजीव बोर्ड की बैठक में ये फैसले लिए गए। इसके साथ ही ही उत्तराखंड में पर्वतारोहण के लिए अनुमति की अवधि को 1 अप्रैल से 30 नवम्बर तक करने और संरक्षित एवं आरक्षित क्षेत्रों में ईकोटूरिज्म को बढ़ावा देने के लिये स्थानीय युवकों को नेचर गाइड के प्रशिक्षण देने पर भी सहमति बनी। बैठक में राजाजी टाइगर रिजर्व पर्यटन से प्राप्त होने वाली आय का 100 प्रतिशत भाग राजाजी टाइगर रिजर्व कंजर्वेशन फाउण्डेशन के फण्ड में जमा कराया जाने का भी फैसला लिया गय। मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि सुअरों को मारने की अनुमति मिल गयी है। यदि ग्रामीण स्वयं इस कार्य को करते हैं तो इसके लिये कारतूस राज्य सरकार उपलब्ध करवाएगी। साथ ही कहा कि  जानवर जंगलों में ही रहें इसके लिये वनों को समृद्ध किए जाने पर काम हो रहा है। सरकार फलदार वृक्षों के लगाने और संरक्षण के लिए बोनस भी देगी। नदियों में महाशीर मछली के संरक्षण के लिये नदियों में बीज डलवाया जा रहा है। कोसी एवं रामगंगा को महाशीर के लिये संरक्षित किये जाने पर भी विचार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जंगली जानवरों के संरक्षण के लिये टीम तैयार की जाएगी, खासकर स्नो लैपर्ड एवं कस्तूरी मृग को संरक्षण की जरूरत है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि वन्यजीवों के लिये रेस्क्यू सेंटर बनाए जाने की आवश्यकता को देखते हुए स्थाई वेटेरीनरी डॉक्टर्स की भर्ती होने तक रिटायर्ड वेटेरीनरी डॉक्टर्स की मदद ली जाएगी। प्रदेश की सुप्रसिद्ध फूलों की घाटी, नन्दादेवी व गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान में जलवायु अनुश्रवण संयंत्रों को स्थापित किया जा रहा है। बैठाक में बताया गया कि राज्य में 68 बुग्याल ऐसे हैं जो औली से भी बड़े हैं, उनको सिस्टामैटिक तरीके से विकसित किये जाने की जरूरत है। वन्यजीवों विशेषकर हाथियों के स्वतंत्र विचरण हेतु मैपिंग करवाने के साथ-साथ आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करके गलियारों का निर्माण करवाने की जरूरत है।