बिस्कुट खाने में सबसे आगे हैं उत्तराखंड के लोग, देशभर में है दूसरा नंबर

बिस्कुट खाने में अपने उत्तराखंड के लोग देश में यूपी के साथ संयुक्त रुप से दूसरे नंबर पर हैं। यूपी और उत्तराखंड में सालाना करीब एक लाख 85 हजार टन बिस्कुट की खपत है। अब ख़बरें एक क्लिक पर इस लिंक पर क्लिक कर Download करें Mobile App –https://play.google.com/store/apps/details?id=app.uttarakhandpost देश भर की अगर बात करें
 
बिस्कुट खाने में सबसे आगे हैं उत्तराखंड के लोग, देशभर में है दूसरा नंबर

बिस्कुट खाने में अपने उत्तराखंड के लोग देश में यूपी के साथ संयुक्त रुप से दूसरे नंबर पर हैं। यूपी और उत्तराखंड में सालाना करीब एक लाख 85 हजार टन बिस्कुट की खपत है।  अब ख़बरें एक क्लिक पर इस लिंक पर क्लिक कर Download करें Mobile App –https://play.google.com/store/apps/details?id=app.uttarakhandpost

देश भर की अगर बात करें तो देशभर में लोग प्रत्येक वर्ष 36 लाख टन बिस्कुट टन खाते हैं। इनमें सबसे अधिक बिस्कुट के शौकीन लोग महाराष्ट्र में हैं। महाराष्ट्रवासी एक साल में एक लाख नब्बे टन बिस्कुट खा जाते हैं जबकि सबसे कम बिस्कुट खाने वालों में पंजाब और हरियाणा के लोग हैं।

वहीं तमिलनाडु एक लाख ग्यारह हजार, पश्चिम बंगाल एक लाख दो हजार, कर्नाटक 93 हजार, मध्य प्रदेश और छतीसगढ़ अस्सी हजार, बिहार और झारखंड में बासठ हजार पांच सौ, राजस्थान बासठ हजार पांच सौ, गुजरात 72 हजार आंध्र प्रदेश के लोग बावन हजार पांच सौ टन बिस्कुट खाते हैं।

बिस्कुट खाने में सबसे आगे हैं उत्तराखंड के लोग, देशभर में है दूसरा नंबर

बिस्कुट मैन्यूफैक्चर्स वेलफेयर एसोसिएशन के अनुसार, देश में बीते साल 36 लाख टन बिस्कुट की खपत हुई, इसमें हर साल आठ से दस प्रतिशत की वृद्धि देखी जा रही है। एक अनुमान के अनुसार देश में सालाना 37,500 करोड़ रुपए के बिस्कुट की बिक्री हो रही है। अब ख़बरें एक क्लिक पर इस लिंक पर क्लिक कर Download करें Mobile App –https://play.google.com/store/apps/details?id=app.uttarakhandpost

एसोसिएशन के अध्यक्ष हरेश दोषी ने कहा कि लोग अब केवल स्वाद के लिए नहीं बल्कि नाश्ते, स्वास्थ्य कारणों और दाल-रोटी के स्थान पर भी बिस्कुट खा रहे हैं, जिससे इनकी मांग लगातार बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि आजादी के पहले केवल ग्लूकोज बिस्कुट थे, लेकिन अब बाजार में कई किस्म के बिस्कुट उपलब्ध हैं।

उनका कहना है सरकार ने यदि 100 रुपए तक की कीमत वाले बिस्कुट को जीएसटी के दायरे में शामिल किया तो सरकार को मिलने वाले कर राजस्व में तो कोई बढ़ोतरी नहीं होगी, लेकिन यह निम्न वर्ग की पहुंच से दूर हो जाएगा।

एसोसिएशन के अध्यक्ष के अनुसार, दक्षिणी राज्यों में सौ रुपए तक की कीमत के बिस्कुट जिनमें सामान्यत: ग्लूकोज बिस्कुट आते हैं उनकी सबसे अधिक खपत है। इसका मुख्य कारण वहां के लोग बिस्कुट को खाने के रूप में भी सेवन करते है। कई लोग तो दिनभर काम के दौरान बिस्कुट के सहारे ही अपना पेट भर लेते हैं। उन्होंने कहा कि बिस्कुट की मांग बढ़ने का दूसरा कारण लोगों की पसंद में बदलाव है। जो पहले केवल ग्लुकोज बिस्कुट लेते थे वे अब क्रीम वाले बिस्कुट खाने लगे हैं। गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाला वर्ग ऊपरी श्रेणी में आ रहा है। कमाबेश यह स्थिति हर श्रेणी की है। बाजार में बिस्कुटों की कई किस्म मौजूद होने के कारण मांग लगातार बढ़ रही है, आगे भी यहीं स्थिति रहेगी। अब ख़बरें एक क्लिक पर इस लिंक पर क्लिक कर Download करें Mobile App –https://play.google.com/store/apps/details?id=app.uttarakhandpost

एसोसिएशन के अनुसार, देश में खपत होने वाले 36 लाख टन बिस्कुट में से 25 लाख 50 हजार टन बिस्कुट संगठित क्षेत्र में और बाकी 10 लाख 50 हजार टन असंगठित क्षेत्र में आता है।

एसोसिएशन के महामंत्री राजेश जैन ने सौ रुपए कीमत तक के बिस्कुट को जीएसटी से बाहर रखने की मांग करते हुए कहा कि देश में 715 बिस्कुट उत्पादक इकाइयां हैं। इनमें से 240 इकाइयां केवल 100 रुपए तक की कीमत तक के बिस्कुट बनाती हैं। ये इकाइयां मात्र तीन से चार प्रतिशत के मुनाफे पर काम कर रही हैं। इन्हें जीएसटी के दायरे में रखने से इन इकाइयों का उत्पादन प्रभावित होगा

एसोसिएशन के मनोज शारदा के अनुसार, सरकार को बिस्कुट की बिक्री से केन्द्र एवं राज्य सरकार को सालाना 3,400 करोड़ रुपए का राजस्व मिलता है। बिस्कुट के कर ढांचे में बदलाव किया गया तो भी सरकार को मिलने वाले राजस्व में कोई अंतर नहीं आएगा। लेकिन 100 रुपए तक कीमत के बिस्कुट को जीएसटी दायरे में लाया गया तो महंगा होने की वजह से यह गरीब लोगों की पहुंच से बिस्कुट दूर हो जाएगा।