…जब पत्थर दिल ‘भगवान’ ने ले ली मासूम बच्ची की जान !

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…जब पत्थर दिल ‘भगवान’ ने ले ली मासूम बच्ची की जान !

हल्द्वानी में सांप के डंसने से 12 साल की मासूम की मौत मामले में बेस अस्पताल की पोल सीसीटीवी ने खोल दी। सुशीला तिवारी अस्पताल व बेस चिकित्सालय में एंटी स्नेक वेनम (एएसवी) न मिलने से अपनी जान गंवाने वाली 12 साल की बच्ची के मामले में प्रशासन की जांच में सीधे अंगुली बेस अस्पताल


हल्द्वानी में सांप के डंसने से 12 साल की मासूम की मौत मामले में बेस अस्पताल की पोल सीसीटीवी ने खोल दी। सुशीला तिवारी अस्पताल व बेस चिकित्सालय में एंटी स्नेक वेनम (एएसवी) न मिलने से अपनी जान गंवाने वाली 12 साल की बच्ची के मामले में प्रशासन की जांच में सीधे अंगुली बेस अस्पताल पर उठी है। बेस अस्पताल ने स्टॉक में एएसवी होने के बावजूद उपलब्ध न होने की बात कही, जिससे बच्ची की मौत हो गई थी।

12 वर्षीय शीतल की आठ जुलाई को एंटी स्नेक वेनम न मिलने से हुई मौत का मामला सामने आने के बाद प्रशासन भी हरकत में आया। आरटीआइ कार्यकर्ता गुरविंदर सिंह चड्ढा ने शिकायत डीएम दीपक रावत से की। इस पर डीएम ने सिटी मजिस्ट्रेट हरबीर सिंह को जांच के आदेश दिए। शुक्रवार को सिटी मजिस्ट्रेट ने पूरे मामले की पड़ताल करने एवं शीतल के पिता मैकूलाल मूल निवासी बदायूं और हाल निवासी खोलिया भवन रामपुर रोड से भी पूछताछ के बाद बेस अस्पताल में दो घंटे तक दस्तावेज खंगाले। आठ जुलाई को अस्पताल में वैक्सीन उपलब्ध होने की पुष्टि होने के बाद उन्होंने सीसीटीवी खंगाले।

दरअसल पहले अस्पताल के डॉक्टर पीड़ित के अस्पताल में ही न आने की बात कह रहे थे। इस पर सिटी मजिस्ट्रेट ने सीसीटीवी की डीबीआर खंगाली। इसमें तड़के 4:32 बजे पीड़ित को डॉक्टर से इलाज की गुहार लगाते देखा गया। सिटी मजिस्ट्रेट ने कहा कि प्रथम दृष्टया यह तय है कि बच्ची को इलाज के लिए बेस अस्पताल लाया गया था। एसटीएच में उस दिन वैक्सीन उपलब्ध नहीं थी। बेस अस्पताल की बड़ी लापरवाही सामने आ रही है। जिलाधिकारी को सीसीटीवी की रिकार्डिग सौंप दी गई है।

क्या है मामला ? | 8 जुलाई रात को 2 बजे सांप के काटने पर 12 साल की बच्ची शीतल के माता-पिता उसे सुशीला तिवारी अस्पताल में इस उम्मीद में लेकर गए कि उसकी जान बच जाएगी लेकिन चिकित्सकों ने बच्ची के पिता से एंटी वेनम दवा बाहर मेडिकल स्टोर से खरीद कर लाने को कहा, जिसकी कीमत 6500 बताई गयी। गरीब मां और पिता के पास दवा को इतने पैसे नहीं थे, वो मेडिकल स्टोर और डॉक्टर के पास काफी रोया, उनके पैर पकड़े की इंजेक्शन लगा दो सुबह पैसे का इंतजाम कर दूंगा लेकिन किसी का दिल नही पसीज। सुशीला तिवारी अस्पताल में तैनात महिला ने खुद अपनी एम्बुलेंस का प्रबंध कर बच्ची के इलाज के लिए उसके माता –पिता को बेस हॉस्पिटल भेजा लेकिन वहां पर एंटी वेनम होने के बाद भी बच्ची को नहीं लगाई गई। इसके बाद माता-पिता तीन किलोमीटर बच्ची को कंधे पर रखकर पैदल चलकर दोबारा से सुशीला तिवारी अस्पताल पहुंचे तो उन्होंने उन्हें फिर से बेस अस्पताल भेज दिया। इस दौरान रास्ते में बच्ची ने दम तोड़ दिया। लेकिन इसके बाद भी बेस अस्पताल से बच्ची को बिना देखे वापस भेज दिया गया। पिता के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वो अपनी मृत बच्ची को बदायूं अपने घर ले जा पाता, लिहाजा उसने अपनी मृत बच्ची को इस तरह मेटाडोर में रखकर बदायूं ले गया मानो कि वो सो रही हो। दरअसल पिता को डर था कि अगर सवारी मेटाडोर वाले को मालूम चल गया की बच्ची मर चुकी है तो वो ज्यादा पैसे मांगेगा।

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