केदारनाथ में फिर 2013 जैसी तबाही का खतरा ! हो रही है ये हलचल, जानिए

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केदारनाथ में फिर 2013 जैसी तबाही का खतरा ! हो रही है ये हलचल, जानिए

नई दिल्ली (उत्तराखंड पोस्ट) साल 2013 में केदारनाथ में आई प्राकृतिक आपदा के चलते पूरी केदारनाथ घाटी तहस-नहस हो गई थी। तब विशेषज्ञों ने इस तबाही का कारण मानसून का जल्दी आ जाना और ग्लेशियरों का पिघलना बताया था। आज तक की खबर के अनुसार इस तबाही के 6 साल बाद केदारनाथ की चोराबाड़ी झील


केदारनाथ में फिर 2013 जैसी तबाही का खतरा ! हो रही है ये हलचल, जानिए

नई दिल्ली (उत्तराखंड पोस्ट) साल 2013 में केदारनाथ में आई प्राकृतिक आपदा के चलते पूरी केदारनाथ घाटी तहस-नहस हो गई थी। तब विशेषज्ञों ने इस तबाही का कारण मानसून का जल्दी आ जाना और ग्लेशियरों का पिघलना बताया था।

आज तक की खबर के अनुसार इस तबाही के 6 साल बाद केदारनाथ की चोराबाड़ी झील में दोबारा पानी इकट्ठा हो रहा है। यह वही झील है जो 2013 में आए महाविनाश की मुख्य वजह बनी थी। अब इसमें फिर से पानी एकत्र होने लगा है। सेटेलाइट तस्वीरों के जरिए पता चला है कि 2013 की तबाही जैसा खतरा फिर से निकट आ रहा है।

जमी हुई चोराबाड़ी झील के कुछ नई तस्वीरें दिखाती हैं कि केदारनाथ धाम से दो किलोमीटर ऊपर कई जगह पानी एकत्र हो रहा है और पानी एकत्र होने वाली जगहों की संख्या बढ़ रही है।

Aajtak.in ने लिखा कि इंडिया टुडे की डाटा इंटेलीजेंस यूनिट (DIU) ने चोराबाड़ी झील की इन सेटेलाइट तस्वीरों में चार महत्वपूर्ण जल समूहों की पहचान की है।

यह तस्वीरें लैंडसैट 8 और सेंटीनेल-2B सेटेलाइट से 26 जून, 2019 को ली गई हैं। यह तस्वीरें दिखाती हैं कि पिछले एक महीने में जल समूहों की संख्या दो से बढ़कर चार हो गई है। आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि उत्तराखंड सरकार ने एहतियाती उपाय करने शुरू कर दिए हैं।

केदारनाथ में फिर 2013 जैसी तबाही का खतरा ! हो रही है ये हलचल, जानिए

अगर हम 11 जून की तस्वीरों को जूम—इन करके देखते हैं तो कुछ ही जल समूह बनते दिखाई देते हैं, लेकिन उस समय वे ज्यादा बड़े नहीं थे। 11 जून की तस्वीर में जो हिस्सा गुलाबी रंग से घिरा है, वह चोराबाड़ी ग्लेशियर है. पीले घेरे में जो नीले रंग के निशान दिख रहे हैं, वे ग्लेशियर से बनी झीलें हैं।

केदारनाथ में फिर 2013 जैसी तबाही का खतरा ! हो रही है ये हलचल, जानिए

विशेषज्ञ इन निशानों को देखते हुए गंभीरता बरत रहे हैं। केदारनाथ घाटी पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील और कमजोर हो रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि चोराबाड़ी जैसे इलाके में अगर जल समूह निर्मित हो रहे हैं तो प्रशासन को इसे लेकर लापरवाह नहीं होना चाहिए।

पर्यावरणविद और जेएनयू में प्रोफेसर एपी डिमरी का इस विषय पर व्यापक रिसर्च है। उन्होंने इंडिया टुडे को बताया, “केदारनाथ घाटी भूकंप और पारिस्थितिकी की दृष्टि से बहुत संवेदनशील और कमजोर है। 2013 में मानसून जल्दी आने और बर्फ पिघलने की वजह से विध्वंसक बाढ़ आ गई थी। अगर इस तरह जल समूह वहां पर फिर से पनप रहे हैं तो यह बहुत चिंता की बात है।”

मंदाकिनी रीवर बेसिन में 14 झीलें हैं, चोराबाड़ी उनमें से एक है। यह समुद्र से 3,960 मीटर की ऊंचाई पर है। चोराबाड़ी झील केदारनाथ से करीब दो किलोमीटर ऊपर है।

2013 में चोराबाड़ी झील में इसी तरह के जल समूह बन गए थे जिनके कारण चोराबाड़ी झील के किनारे के हिस्से ध्वस्त हो गए और केदारनाथ धाम में भयानक तबाही आ गई। विशेषज्ञों का कहना है कि जो जल समूह बन रहे हैं वे तो कोई महत्वपूर्ण खतरे का संकेत नहीं देते लेकिन अगर इस क्षेत्र में मूसलाधार बारिश हो गई तो फिर परिणाम विध्वंसक हो सकते हैं।

(साभार- aajtak.intoday.in)

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