रानीखेत | यहां सिर्फ घूमने नहीं समय बिताने आते हैं पर्यटक

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रानीखेत | यहां सिर्फ घूमने नहीं समय बिताने आते हैं पर्यटक

रानीखेेत (उत्तराखंंड पोस्ट) देवदार और बलूत के वृक्षों से घिरे रानीखेत पहुंचकर आपको जन्नत सा एहसास होगा। यकीन मानिए अगर आप एक बार रानीखेत आएंगे तो आपका दिल यहां आने को बार-बार करेगा। नैनीताल से सिर्फ 60 किलोमीटर की दूरी पर बसा यह छोटा-सा पहाड़ी शहर अपने शांत वातावरण, खुशबूदार आबोहवा और मनभावन दृश्यों के


रानीखेेत (उत्तराखंंड पोस्ट) देवदार और बलूत के वृक्षों से घिरे रानीखेत पहुंचकर आपको जन्नत सा एहसास होगा। यकीन मानिए अगर आप एक बार रानीखेत आएंगे तो आपका दिल यहां आने को बार-बार करेगा।

नैनीताल से सिर्फ 60 किलोमीटर की दूरी पर बसा यह छोटा-सा पहाड़ी शहर अपने शांत वातावरण, खुशबूदार आबोहवा और मनभावन दृश्यों के लिए प्रसिद्ध है। इसीलिए यहां आने वाले ज्यादातर पर्यटक सिर्फ घूमने नहीं, बल्कि कुछ समय रहने के लिए आते हैं।

यहां पर शांति चप्पे-चप्पे में समाई है। रानीखेत पहुंचने पर कुछ ही देर में यह शांति आपकी सांसों से होकर मन-मस्तिष्क में समाती जाती है और ऐसा लगता है मानो यही तो वह जगह है, जहां आने के लिए मन बरसों से भटक रहा था। इसीलिए जब रानीखेत में आइए तो कुछ देखने से ज्यादा बहुत कुछ महसूस करने की इच्छा को मन में रखिए। यकीनन आप निराश नहीं होंगे।

क्यों पड़ा नाम रानीखेत ? | ऐसा कहा जाता है कि कुमाऊं अंचल के महाराजा सुधरदेव की रानी पद्मिनी को यह जगह इतनी भाई थी कि उन्होंने यहां पर अक्सर आना शुरू कर दिया था। शायद इसीलिए समुद्र तल से 1869 मीटर की ऊंचाई पर बसी इस जगह का नाम रानीखेत पड़ा। ब्रिटिश फौजी अफसरों को भी यहां की आबोहवा खासी रास आई और उन्होंने कुमाऊं रेजिमेंट सेंटर का मुख्यालय ही यहां स्थापित कर डाला। आज भी यहां हर ओर सेना के दफ्तर और जवान ही नजर आते हैं।

कहां घूमें ? | रानीखेत में देखने, घूमने और मन में समाने लायक बहुत कुछ है। लेकिन ये सारी जगहें आप थोड़ी देर में घूम सकते हैं। यह बात दीगर है कि एक बार इन जगहों से लौटने के बाद इन्हें फिर से देखने का मन करता है।

कुछ प्रमुख जगह-

गोल्फ कोर्स: उपट कालिका के नाम से जाना जाने वाला यहां का गोल्फ कोर्स रानीखेत का सबसे बड़ा आकर्षण है। चीड़ और देवदार के घने वृक्षों से घिरे इस लंबे-चौड़े शांत मैदान की चुप्पी तभी टूटती है, जब सैलानियों से भरी बसें यहां आकर रुकती हैं। यहां पास ही एक प्राचीन काली-दुर्गा का मंदिर भी है।

चौबटिया गार्डन: काफी लंबा-चौड़ा यह पार्क असल में फलों से जुड़ी रिसर्च का एक सरकारी केंद्र है। सेब, अखरोट, खुबानी जैसे ढेरों फलों के पेड़ हैं यहां। आप चाहें तो खुद घूम लीजिए या फिर यहां मौजूद गाइड की सेवाएं लेकर सौ से तीन सौ रुपए में आधे से दो घंटे तक की जंगल-वॉक भी कर सकते हैं, जिसमें वह आपको यहां के पेड़-पौधों, अनोखी वनस्पतियों और पक्षियों आदि के बारे में भी जानकारी देगा।

झूला देवी मंदिर व राम मंदिर: रानीखेत का प्रमुख आकर्षण है यह ‘घंटियों वाला मंदिर’। मां दुर्गा के इस छोटे-से शांत मंदिर में श्रद्घालु मन्नत पूरी होने पर छोटी-बड़ी घंटियां चढ़ाते हैं। यहां बंधी हजारों घंटियां देख कर कोई भी अभिभूत हो सकता है। इस मंदिर से कुछ ही कदम ऊपर एक राम मंदिर भी है।

केआरसी म्यूजियम व शॉल फैक्ट्री: कुमाऊं रेजिमेंट सेंटर की गौरवगाथा बयान करते केआरसी म्यूजियम को और केआरसी कम्युनिटी सेंटर में स्थित शॉल फैक्ट्री में महिलाओं को हथकरघे पर शालें बुनते हुए देखना एक यादगार अनुभव हो सकता है।

भालू डैम: चौबटिया से तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह जगह मछली पकड़ने के लिए प्रसिद्ध है।

बिनसर महादेव: रानीखेत से कार्बेट के रास्ते पर कोई 18 किलोमीटर दूर देवदार के घने जंगल में स्थित इस भव्य मंदिर को देखे बिना यहां की यात्रा का आनंद पूरा नहीं हो सकता।

हेड़ा खान मंदिर: रानीखेत से करीब चार किलोमीटर दूर चिलियानौला में संत हेड़ा खान का यह शांत आश्रम पर्यटकों को इसलिए भी लुभाता है, क्योंकि यहां से विशाल हिमालय रेंज साफ देखी जा सकती है। नंदा देवी पर्वत तो यहां से ठीक सामने नजर आता है।

कैसे पहुंचे रानीखेत ? | रानीखेत काठगोदाम रलेवे स्टेशेन से करीब 81 किमी. की दूरी पर है। दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे से रानीखेत के लिए बस चलती है। रानीखेत के लिए नैनीताल, अल्मोड़ा, काठगोदाम और कौसानी से भी नियमित बसें हैं। दिल्ली से रानीखेत की दूरी करीब 350 किमी है।

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