ISRO चीफ की पूरी कहानी | बचपन में जूते पहनने को नहीं थे, ऐसे बने ISRO के रॉकेट मैन

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ISRO चीफ की पूरी कहानी | बचपन में जूते पहनने को नहीं थे, ऐसे बने ISRO के रॉकेट मैन

नई दिल्ली (उत्तराखंड पोस्ट) देश के महत्वाकांक्षी मून मिशन चंद्रयान-2 पर दुनियाभर की निगाहें टिकी थीं। शुक्रवार देर रात चांद से महज 2 किलोमीटर की दूरी पर लैंडर विक्रम का संपर्क इसरो से टूट गया। हालांकि चंद्रयान-2 ऑर्बिटर अब भी चंद्रमा की कक्षा का चक्कर लगा रहा है। इस मिशन के सूत्रधार माने जाने वाले


नई दिल्ली (उत्तराखंड पोस्ट) देश के महत्वाकांक्षी मून मिशन चंद्रयान-2 पर दुनियाभर की निगाहें टिकी थीं। शुक्रवार देर रात चांद से महज 2 किलोमीटर की दूरी पर लैंडर विक्रम का संपर्क इसरो से टूट गया। हालांकि चंद्रयान-2 ऑर्बिटर अब भी चंद्रमा की कक्षा का चक्कर लगा रहा है।

इस मिशन के सूत्रधार माने जाने वाले इसरो चीफ के सिवन उस वक्त भावुक हो गए, जब पीएम मोदी अपना भाषण खत्म करके बाहर निकल रहे थे। पीएम मोदी ने इसरो चीफ सिवन को गले लगाया और उनका हौसला बढ़ाया। मोदी ने 26 सेकेंड तक इसरो चीफ को गले लगाकर उनकी हौसलाअफजाई की।

कौन हैं इसरो चीफ के सिवन | तमिलनाडु के कन्‍याकुमारी जिले के सरक्‍कलविलई गांव के एक साधारण से किसान के बेटे कैलासावडिवू सिवन आज भारत की स्‍पेस एजेंसी इंडियन स्‍पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) के चेयरमैन हैं। उन्‍हीं की अगुआई में हाल ही में इसरो ने चांद पर अपना महत्‍वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-2 लॉन्‍च किया।

सिवन की शुरुआती शिक्षा एक सरकारी स्‍कूल में हुई जहां तमिल में पढ़ाई होती थी। नागरकोइल के एसटी हिंदू कॉलेज से ग्रैजुएशन करने के बाद सिवन ने 1980 में मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्‍नॉलजी (एमआईटी) से एयरोनॉटिकल इंजिनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद आईआईएसी से 1982 में इंजिनियरिंग की अपनी मास्‍टर्स डिग्री हासिल की। 2006 में उन्‍होंने आईआईटी बॉम्‍बे से एयरोस्‍पेस इंजिनियरिंग में पीएचडी की।

ISRO चीफ की पूरी कहानी | बचपन में जूते पहनने को नहीं थे, ऐसे बने ISRO के रॉकेट मैन
परिवार में पहले ग्रैजुएट | सिवन अपने परिवार में ग्रैजुएट होने वाले पहले शख्‍स थे। उनके भाई और दो बहनें गरीबी की वजह से पढ़ाई पूरी नहीं कर सके। हमारे सहयोगी टाइम्‍स ऑफ इंडिया को सिवन ने बताया, ‘जब मैं कॉलेज था तो अपने पिता की खेती में मदद करता था। इसी वजह से उन्‍हें मुझे ऐसे कॉलेज में ऐडमिशन दिलाया जो हमारे घर के पास था। जब मैंने बीएससी (मैथ्‍स) को 100 प्रतिशत नंबरों से पास किया तब जाकर उन्‍होंने अपना विचार बदला।’

न जूते थे, न सैंडल | सिवन बताते हैं कि बचपन में उनके पास न जूते थे न सैंडल, वह नंगे पैर ही रहते थे। अपनी पोशाक के बारे में सिवन ने कहा, ‘मैंने कॉलेज तक धोती पहनी है। मैंने पहली बार पैंट तब पहना जब मैंने एमआईटी में दाखिला लिया।’

ऐसे बने इसरो के रॉकेट मैन | सिवन ने 1982 में इसरो जॉइन किया। इसरो का चेयरमैन बनने से पहले जनवरी 2018 तक वह विक्रम साराभाई स्‍पेस सेंटर (वीएसएससी) के डायरेक्‍टर थे। क्रायोजेनिक्‍स इंजन, पीएसएलवी, जीएसएलवी और आरएलवी प्रोग्राम में उनके योगदान की वजह से उन्‍हें इसरो का ‘रॉकेट मैन’ भी कहा जाता है।

फेवरिट मूवी है ‘आराधना’ | सिवन को तमिल के क्‍लासिकल गाने सुनना पसंद हैं। उनकी फेवरिट फिल्‍म अपने समय के सुपर स्‍टार राजेश खन्‍ना की आराधना (1969) थी। खाली वक्‍त में वह बागवानी करते हैं। वह कहते हैं, ‘जब मैं वीएसएससी का डायरेक्‍टर था तब मैंने तिरुवनंतपुरम में अपने गार्डन में गुलाब की ढेरों किस्‍में उगाईं थीं। अब बेंगलुरु में मुझे समय ही नहीं मिलता।”

PM मोदी से गले मिलकर रोने लगे ISRO चीफ, देखिए भावुक करने वाला विडियो

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