रहस्यमयी मंदिर : सालों से जहां देवता हैं कैदखाने में बंद

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रहस्यमयी मंदिर : सालों से जहां देवता हैं कैदखाने में बंद

देवभूमि उत्तराखंड कई मायनों में दूसरी जगहों से अलग है। यहां की संस्कृति, रीति-रिवाज, मान्यताएं इसे ना सिर्फ अद्भुत बनाती हैं बल्कि यहां आने वाले हर शख्स को मंत्र-मुग्ध भी कर देती हैं। देवभूमि में कई ऐसे मंदिर हैं जिनके बारे में सुनकर एक बार तो आपको यकीन ही नहीं होगा। ऐसे ही एक मंदिर


देवभूमि उत्तराखंड कई मायनों में दूसरी जगहों से अलग है। यहां की संस्कृति, रीति-रिवाज, मान्यताएं इसे ना सिर्फ अद्भुत बनाती हैं बल्कि यहां आने वाले हर शख्स को मंत्र-मुग्ध भी कर देती हैं। देवभूमि में कई ऐसे मंदिर हैं जिनके बारे में सुनकर एक बार तो आपको यकीन ही नहीं होगा। ऐसे ही एक मंदिर के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं।

लाटू देवता का मंदिर |  उत्तराखंड के चमोली जिले के देवाल ब्लॉक में वांण नामक स्थान पर स्थित है लाटू देवता का मंदिर। शायद आपको यकीन ना हो पर इस मंदिर में विराजमान देवता यहां वर्षों से कैद हैं।

साल में एक बार ही होता है दर्शन |  मंदिर का द्वार वर्ष में एक ही दिन खुलता हैं। वैशाख मास की पूर्णिमा के दिन पुजारी इस मंदिर के कपाट अपने आंख-मुंह पर पट्टी बांधकर खोलते हैं। भक्त देवता के दर्शन दूर से ही करते हैं। जब मंदिर के कपाट खुलते हैं, तब विष्णु सहस्रनाम और भगवती चंडिका पाठ का आयोजन होता है और मेला भी लगता है।

क्या है मान्यता | लोगों का मानना है कि इस मंदिर के अंदर साक्षात नागराज अपने अद्भुत मणि के साथ वास करते हैं, जिसे देखना आम लोगों के वश की बात नहीं है। पुजारी भी साक्षात विकराल नागराज को देखकर न डर जाएं इसलिए वे अपने आंख पर पट्टी बांधते हैं।

लोगों का यह भी मानना है कि मणि की तेज रोशनी इन्सान को अंधा बना देती है यही वजह है कि मंदिर में प्रवेश के समय पुजारी की आंख पर पट्टी बंधी होती है। मान्यता के अनुसार न तो पुजारी के मुंह की गंध देवता तक और न ही नागराज की विषैली गंध पुजारी के नाक तक पहुंचनी चाहिए। इसलिए वे नाक-मुंह पर पट्टी लगाते हैं।

माता पार्वती के भाई हैं लाटू देवता | कहते हैं कि लाटू देवता रिश्ते में भगवान शिव के साले और माता पार्वती के भाई हैं लेकिन एक गलती के कारण देवी पार्वती ने इन्हें कैद में डाल दिया और तब से यह कैद में रहते हैं।

लाटू देवता की कहानी | उत्तराखंड की अनुश्रुतियों के अनुसार, लाटू देवता उत्तराखंड की आराध्या नंदा देवी के धर्म भाई हैं। दरअसल वांण गांव प्रत्येक 12 वर्षों पर होने वाली उत्तराखंड की सबसे लंबी पैदल यात्रा श्रीनंदा देवी की राज जात यात्रा का बारहवां पड़ाव है। यहां लाटू देवता वांण से लेकर हेमकुंड तक अपनी बहन नंदा देवी की अगवानी करते हैं।

लाटू देवता के विषय में ऐसी कथा है कि देवी पार्वती के साथ जब भगवान शिव का विवाह हुआ तो पार्वती जिसे नंदा देवी नाम से भी जाना जाता है। इन्हें विदा करने के लिए सभी भाई कैलाश की ओर चल पड़े। इसमें चचेरे भाई लाटू भी शामिल थे।

मार्ग में लाटू को इतनी प्यास लगी कि पानी के लिए इधर-उधर भटकने लगे। इस बीच लाटू देवता को एक घर दिखा और पानी की तलाश में घर के अंदर पहुंच गए। घर का मालिक बुजुर्ग था। बुजुर्ग ने लाटू देवता से कहा कि कोने में मटका है पानी पी लो।

संयोग से वहां दो मटके रखे थे। लाटू देवता ने एक मटके को उठाया और पूरा का पूरा मटका खाली कर दिया। प्यास के कारण लाटू समझ नहीं पाए कि जिसे वह पानी समझकर पी गए वह पानी नहीं मदिरा था।

कुछ देर में मदिरा ने असर दिखाना शुरु कर दिया और लाटू देवता नशे में उत्पात मचाने लगे। इसे देखकर देवी पार्वती क्रोधित हो गई और लाटू को कैद में डाल दिया। पार्वती ने आदेश दिया कि इन्हें हमेशा कैद में ही रखा जाए।

माना जाता है कि कैदखाने में लाटू देवता एक विशाल सांप के रुप में विरामान रहते हैं। इन्हें देखकर पुजारी डर न जाएं इसलिए यह आंखों पर पट्टी बांधकर मंदिर का द्वार खोलते हैं।

भक्तों की अपार आस्था है लाटू देवता पर | वांण क्षेत्र में लाटू देवता के प्रति लोगों में बड़ी श्रद्धा है। लोग नंदा देवी को खुश करने के लिए लाटू देवता की पूजा करते हैं। जहां देवी नंदा पूजित होंगी वहां आपको लाटू देवता की मूर्ति भी मिल जाएगी। अपनी मनोकामना लेकर लोग लाटू के मंदिर आते हैं। कहते हैं यहां मांगी मनोकामना जरुर पूरी होती है।

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