समझिए थराली उपचुनाव का गणित, किसका पलड़ा है भारी ?

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समझिए थराली उपचुनाव का गणित, किसका पलड़ा है भारी ?

देहरादून (उत्तराखंड पोस्ट ब्यूरो) उत्तराखंड की थराली विधानसभा के लिए 28 मई को वोट डाले जाएंगे। 2019 के आम चुनाव से पहले इस एक विधानसभा सीट के उपचुनाव को राज्य की सत्ताधारी पार्टी भाजपा और विपक्षी पार्टी कांग्रेस दोनों ने अपनी नाक का सवाल बनाया हुआ है। दोनों ही पार्टियां हर हाल में इस सीट को जीतना


समझिए थराली उपचुनाव का गणित, किसका पलड़ा है भारी ?

देहरादून (उत्तराखंड पोस्ट ब्यूरो) उत्तराखंड की थराली विधानसभा के लिए 28 मई को वोट डाले जाएंगे। 2019 के आम चुनाव से पहले इस एक विधानसभा सीट के उपचुनाव को राज्य की सत्ताधारी पार्टी भाजपा और विपक्षी पार्टी कांग्रेस दोनों ने अपनी नाक का सवाल बनाया हुआ है।

दोनों ही पार्टियां हर हाल में इस सीट को जीतना चाहती हैं, ऐसे में भाजपा और कांग्रेस दोनों ने यहां पर अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। भाजपा की ओर से जहां खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जिम्मा संभाला हुआ है, वहीं कांग्रेस प्रत्याशी के लिए पीसीसी चीफ के साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने पूरी ताकत लगाई हुई है।

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जहां विकास की जिम्मेदारी अपने उपर लेते हुए जनता से भाजपा प्रत्याशी को जिताने की अपील कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस राज्य सरकार के एक साल को नाकाम बताते हुए वोट मांग रही है।

गौरतलब है कि यह सीट भाजपा विधायक मगन लाल शाह के निधन के कारण खाली हुई थी। भाजपा ने जहां उनकी पत्नी मुन्नी देवी को मैदान में उतारा है तो कांग्रेस ने पिछले चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे अपने नेता प्रो. जीतराम को दोबारा मैदान में उतारा है।

समझिए थराली उपचुनाव का गणित, किसका पलड़ा है भारी ?

इस सीट पर हुए पिछले चुनाव की अगर बात करें तो 2012 में यहां से कांग्रेस के प्रो. जीतराम विधानसभा पहुंच चुके हैं। उन्होंने उस वक्त भाजपा के मगन लाल शाह को 673 मतों से हराया था। हालांकि 2017 के विधानसभा चुनाव में मगन लाल शाह ने बाजी मारी और प्रो. जीतराम को 4858 मतों से मात दी थी।

समझिए थराली उपचुनाव का गणित, किसका पलड़ा है भारी ?

कुल मिलाकर देखा जाए तो पिछले दो चुनाव में भले ही भाजपा और कांग्रेस एक-एक बार इस सीट को जीत चुकी हों, लेकिन हार-जीत का अंतर बताता है कि इस सीट पर भाजपा का पलड़ा भारी रहा है। अब कांग्रेस के पास एक बार फिर से इस सीट को जीतकर 2019 के लिए भाजपा पर मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल करने का मौका है तो भाजपा हर हाल में अपनी इस सीट को बचाकर त्रिवेंद्र सरकार के एक साल के कार्यकाल को सफल प्रचारित करने का मौका हाथ से नहीं देना चाहती है।

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