जानिए कौन हैं रामलला विराजमान, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने माना विवादित जमीन का असल मालिक

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जानिए कौन हैं रामलला विराजमान, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने माना विवादित जमीन का असल मालिक

नई दिल्ली (उत्तराखंड पोस्ट) राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर शनिवार को सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आ चुका है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई में पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन रामलला को सौंप दी है जबकि मुस्लिम पक्ष (सुन्नी वफ्फ बोर्ड) को अलग स्थान पर 5 एकड़ जगह


जानिए कौन हैं रामलला विराजमान, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने माना विवादित जमीन का असल मालिक

नई दिल्ली (उत्तराखंड पोस्ट) राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर शनिवार को सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आ चुका है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई में पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन रामलला को सौंप दी है जबकि मुस्लिम पक्ष (सुन्नी वफ्फ बोर्ड) को अलग स्थान पर 5 एकड़ जगह देने के लिए कहा गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही सरकार को एक नया ट्रस्ट बनाने का भी आदेश दिया है जिसे वह जमीन मंदिर निर्माण के लिए दी जाएगी।

कौन हैं रामलला ? | सुप्रीम कोर्ट ने रामलला को ही उस विवादित जमीन का मालिक माना है। आपको बता दें कि ये रामलला ना तो कोई संस्था है और ना ही कोई ट्रस्ट, यहां बात स्वयं भगवान राम के बाल स्वरुप की हो रही है यानी सुप्रीम कोर्ट ने रामलला को लीगल इन्टिटी मानते हुए जमीन का मालिकाना हक उनको दिया है।

जानिए कौन हैं रामलला विराजमान, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने माना विवादित जमीन का असल मालिक

गौरतलब है कि 22/23 दिसंबर 1949 की रात मस्जिद के भीतरी हिस्से में रामलला की मूर्तियां रखी गईं थी। 23 दिसंबर 1949 की सुबह बाबरी मस्जिद के मुख्य गुंबद के ठीक नीचे वाले कमरे में वही मूर्तियां प्रकट हुई थीं, जो कई दशकों या सदियों से राम चबूतरे पर विराजमान थीं और जिनके लिए वहीं की सीता रसोई या कौशल्या रसोई में भोग बनता था। राम चबूतरा और सीता रसोई निर्मोही अखाड़ा के नियंत्रण में थे और उसी अखाड़े के साधु-संन्यासी वहां पूजा-पाठ आदि विधान करते थे।

23 दिसंबर को पुलिस ने मस्जिद में मूर्तियां रखने का मुकदमा दर्ज किया था, जिसके आधार पर 29 दिसंबर 1949 को मस्जिद कुर्क कर उस पर ताला लगा दिया गया था। कोर्ट ने तत्कालीन नगरपालिका अध्यक्ष प्रिय दत्त राम को इमारत का रिसीवर नियुक्त किया था और उन्हें ही मूर्तियों की पूजा आदि की जिम्मेदारी दे दी थी।

पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने अपनी किताब ‘अयोध्याः 6 दिसंबर 1992’ में उस एफआईआर का ब्यौरा दिया है, जो 23 दिसंबर 1949 की सुबह लिखी गई थी। एसएचओ रामदेव दुबे ने भारतीय दंड संहिता की धारा 147/448/295 के तहत एफआईआर दर्ज की थी।

उसमें घटना का जिक्र करते हुए लिखा गया था कि रात में 50-60 लोग ताला तोड़कर और दीवार फांदकर मस्जिद में घुस गए और वहां उन्होंने श्री रामचंद्रजी की मूर्ति की स्थापना की। उन्होंने दीवार पर अंदर और बाहर गेरू और पीले रंग से ‘सीताराम’ आदि भी लिखा। उस समय ड्यूटी पर तैनात कांस्टेबल ने उन्हें ऐसा करने से मना किया लेकिन उन्होंने उसकी बात नहीं सुनी। वहां तैनात पीएसी को भी बुलाया गया, लेकिन उस समय तक वे मंदिर में प्रवेश कर चुके थे।

30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अयोध्या के विवादित स्थल को राम जन्मभूमि करार दिया था। हाई कोर्ट ने 2.77 एकड़ जमीन का बंटवारा कर दिया गया था। कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्माही अखाड़ा और रामलला के बीच जमीन बराबर बांटने का आदेश दिया था।

1989 के आम चुनाव से पहले विश्व हिंदू परिषद के एक नेता और रिटायर्ड जज देवकी नंदन अग्रवाल ने 1 जुलाई को भगवान राम के मित्र के रूप में पांचवां दावा फैजाबाद की अदालत में दायर किया था। इस दावे में स्वीकार किया गया था कि 23 दिसंबर 1949 को राम चबूतरे की मूर्तियां मस्जिद के अंदर रखी गई थीं। इसके साथ ही यह स्पष्ट दावा किया गया कि जन्म स्थान और भगवान राम दोनों पूज्य हैं और वही इस संपत्ति के मालिक भी हैं।

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