विपक्ष के संशोधन की मांग के बाद प्रवर समिति को भेजा लोकायुक्त बिल

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विपक्ष के संशोधन की मांग के बाद प्रवर समिति को भेजा लोकायुक्त बिल

उत्तराखंड पोस्ट संवाददाता | उत्तराखंड विधान सभा में पेश लोकायुक्त बिल को प्रवर समिति को सौंपा दिया गया है। समिति एक माह में अपनी रिपोर्ट विधान सभा के पटल पर रखेगी। दरअसल विपक्ष सदन में पेश बिल में संशोधन की मांग कर रहा था जिसके बाद बिल को प्रवर समिति को सौंप दिया गया है। त्रिवेंद्र


उत्तराखंड पोस्ट संवाददाता | उत्तराखंड विधान सभा में पेश लोकायुक्त बिल को प्रवर समिति को सौंपा दिया गया है। समिति एक माह में अपनी रिपोर्ट विधान सभा के पटल पर रखेगी। दरअसल विपक्ष सदन में पेश बिल में संशोधन की मांग कर रहा था जिसके बाद बिल को प्रवर समिति को सौंप दिया गया है। त्रिवेंद्र रावत सरकार ने सोमवार को लोकायुक्त विधेयक विधानसभा में पेश किया था। अब ख़बरें एक क्लिक पर इस लिंक पर क्लिक कर Download करें Mobile App – उत्तराखंड पोस्ट

लोकायुक्त बिल से भ्रष्टाचारियों पर लगाम कसने में काफी मदद मिलेगी। इस विधेयक में चपरासी से लेकर मुख्यमंत्री तक सभी को लोकायुक्त के दायरे में लाया गया है।

कैसे होगी लोकायुक्त की नियुक्ति | लोकायुक्त में न्यूनतम पांच सदस्य होंगे। इनकी नियुक्ति राज्यपाल के द्वारा चयन समिति की संस्तुति पर की जाएगी। इसमें अध्यक्ष हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश व सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश स्तर का व्यक्ति होगा। जबकि लोकायुक्त के 50 प्रतिशत सदस्य वे व्यक्ति बन सकते हैं, जो सुप्रीम कोर्ट के जज, हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और जस्टिस रहे हों। प्रारंभिक जांच प्रभावित न हो लिहाजा लोकायुक्त के पास आरोपी अफसर और कार्मिकों को तबादला करने की संस्तुति का भी अधिकार रहेगा।

दायरे में कौन-कौन ? | मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक, राजकीय अधिकारी-कर्मचारी, हाईकोर्ट के न्यायाधीश को छोड़कर अधीनस्थ न्यायपालिका, पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व मंत्री और सेवानिवृत्त अधिकारी, सरकारी सहायता प्राप्त करने वाली संस्थाएं लोकायुक्त के दायरे में आएंगी। लोकायुक्त संस्था प्रारंभिक जांच में दोषी पाए जाने वाले लोक सेवक को तलाशी लेने, निलंबित करने, स्थानांतरण और संपत्ति कुर्क करने की सिफारिश तो कर सकता है, लेकिन खुद दंडित नहीं कर सकेगा।

खंडूरी के लोकायुक्त से कितना अलग ? | 2007 में खंडूड़ी सरकार ने भी लोकायुक्त विधेयक पेश किया था, लेकिन यह लागू नहीं हो पाया था। हालांकि खंडूड़ी सरकार के लोकायुक्त कानून को लागू किए जाने के राज्य सरकार के दावे के बावजूद नया विधेयक उससे काफी अलग है। पिछले कानून की तर्ज पर इसमें लोकायुक्त एक्ट बनने के बाद 180 दिन के भीतर लोकायुक्त की नियुक्ति किए जाने के प्रावधान को शामिल नहीं किया गया है। साथ ही नए विधेयक में अधीनस्थ न्यायालयों को लोकायुक्त के अधीन रखने का प्रावधान शामिल नहीं किया गया है। इसके स्थान पर लोकायुक्त की सिफारिश पर हाईकोर्ट के परामर्श से विशेष न्यायालयों का गठन किया जा सकेगा। लोकायुक्त संस्था प्रारंभिक जांच में दोषी पाए जाने वाले लोक सेवक को तलाशी लेने, निलंबित करने, स्थानांतरण और संपत्ति कुर्क करने की सिफारिश तो कर सकता है, लेकिन खुद दंडित नहीं कर सकेगा। खंडूड़ी के लोकायुक्त कानून के दायरे में अधीनस्थ न्यायपालिका को भी शामिल किया गया था। साथ में लोकायुक्त को निलंबित करने से लेकर दंडित करने के अधिकार दिए गए थे। अधीनस्थ न्यायपालिका को दायरे में लेने का प्रावधान पर तकनीकी अड़चन पैदा हो गई थी। इसके चलते पिछली कांग्रेस सरकार ने इस प्रावधान को हटा दिया था। नई भाजपा सरकार ने लोकायुक्त विधेयक में खास ख्याल रखा कि उक्त तकनीकी अड़चन न आने पाए। लिहाजा यह प्रावधान शामिल नहीं किया गया।

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