पढ़ें- आपदा आने पर कैसे कम किया जा सकेगा जान-माल का नुकसान ?

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पढ़ें- आपदा आने पर कैसे कम किया जा सकेगा जान-माल का नुकसान ?

विश्व बैंक द्वारा पोषित उत्तराखण्ड सरकार के उत्तराखण्ड डिजास्टर रिकवरी प्रोजेक्ट के द्वारा प्राकृतिक आपदाओं के कारण होने वाले जोखिम को कम करने हेतु ‘‘उत्तराखण्ड में आपदा के खतरों का मूल्यांकन पर पहली कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में डीएचआई डेनमार्क के डॉ. ओले लारसन ने प्रोजेक्ट के बारे में अवधारणा एवं अर्थ ऑब्जर्वेटरी सिंगापुर


विश्व बैंक द्वारा पोषित उत्तराखण्ड सरकार के उत्तराखण्ड डिजास्टर रिकवरी प्रोजेक्ट के द्वारा प्राकृतिक आपदाओं के कारण होने वाले जोखिम को कम करने हेतु ‘‘उत्तराखण्ड में आपदा के खतरों का मूल्यांकन पर पहली कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में डीएचआई डेनमार्क के डॉ. ओले लारसन ने प्रोजेक्ट के बारे में अवधारणा एवं अर्थ ऑब्जर्वेटरी सिंगापुर के प्रो. पॉल तप्पोनेयर, एडूआरडू रिनोसू, ईआरएन, मेक्सिको, के डा. मंजूल हजारिका तथा डीएचआई सिंगापुर के जूलियन ओलिवर ने भूकम्प एवं जियोलॉजी ऑफ हिमालय विषय पर प्रस्तुतिकरण किया ।

कार्यशाला को सचिव शैलेश बगोली ने कहा कि यह कार्यशाला उत्तराखण्ड के लिए बहुत उपयोगी साबित हो सकती है। उत्तराखण्ड को आगे के लिए और अधिक तैयार होने की जरूरत है। पिथौरागढ़ और चमोली में अतिवृष्टि के कारण जो हालात बने उनको देखते हुए यह कार्यशाला हमारे लिए और अधिक महत्वपूर्ण है। आपदाओं को रोका नहीं जा सकता परन्तु इससे होने वाले नुकसान व जानमाल की हानि को कम किया जा सकता है। इस योजना की जानकारी देते हुए बताया गया कि यह योजना 18 महीनों में पूर्ण होगी। इसके अन्तर्गत बाढ़, भूस्खलन, भूकम्प सहित औद्योगिक खतरों व इससे होने वाले सामाजिक आर्थिक प्रभावों का अध्ययन किया जाएगा।

अपर सचिव आपदा सी.रविशंकर ने कहा कि इस योजना में यहां कि भौगोलिक परिस्थितियों का समावेश करते हुए संस्तुतियां शामिल की जाए जिससे संभावित आपदा में उसका लाभ प्रभावित लोगों को प्राप्त हो सकें।

कार्यशाला के दौरान योजना की कार्यप्रणाली और कार्ययोजना, भूकम्प के खतरों व हिमालय का भूविज्ञान, भवनों पर भूकम्पों का प्रभाव व आपदा के बाद खतरों का अध्ययन पर चर्चा हुयी। बताया गया कि पिछले कुछ दशकों व सदियों में आयी आपदाओं की आवृतियों के आँकड़े एकत्र करके व उनका अध्ययन करके एक पूर्वानुमान भी लगाया जा सकता है। भूकम्प के कारण अधिकतर नुकसान भवनों की संरचना में तकनीकि कमी के कारण होता है, जैसे कि अक्सर भवनों की पहली मंजिल को कार पार्किंग या व्यावसायिक प्रयोग हेतू बनाने के कारण सुरक्षा मापदण्डों का ख्याल नहीं रखा जाता, जबकि भूकम्प को सहने के लिए पहली मंजिल की संरचना मजबूत होनी चाहिए। उपसचिव आपदा सन्तोष बडोनी ने बताया कि विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न परिस्थितियोंवश अलग अलग प्रकार के जोखिम होने के कारण स्थानीय परिस्थितियों का अध्ययन आवश्यक है और स्थानीय आधार पर कौन कौन सी नीतियों को बदला जाना चाहिए इस पर भी अध्ययन कराने की आवश्यकता है। आपदा की स्थिति में जन-धन की कम से कम हानि हो इसके लिए संचार प्रणाली को मजबूत करने की आवश्यकता है, साथ ही पूर्व चेतावनी प्रणाली की स्थापना सहित रिस्पोंस टाईम को कम करके भी स्थिति को भयावह होने से बचाया जा सकता है। कार्यशाला में बहुत से प्रतिभागियों ने अपने अपने विचार रखे। देश-विदेश से आए विशेषज्ञों ने अपने अत्याधुनिक दृष्टिकोणों को एक दूसरे के समक्ष रखा।

 

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