कोरोना काल में आया ‘काफल’ का मौसम, स्वाद मिस कर रहे हैं लोग, सुनिए ये मार्मिक कहानी
अल्मोड़ा (उत्तराखंड पोस्ट) देवभूमि उत्तराखंड आने वाले शख्स ने अगर यहां के फलों का स्वाद नहीं लिया, तो समझिए उसने कुछ मिस कर दिया। ऐसा ही एक फल है काफल। कहते हैं कि काफल को अपने ऊपर बेहद नाज भी है और वह खुद को देवताओं के खाने योग्य समझता है। कुमाऊंनी भाषा के एक

अल्मोड़ा (उत्तराखंड पोस्ट) देवभूमि उत्तराखंड आने वाले शख्स ने अगर यहां के फलों का स्वाद नहीं लिया, तो समझिए उसने कुछ मिस कर दिया। ऐसा ही एक फल है काफल।
कहते हैं कि काफल को अपने ऊपर बेहद नाज भी है और वह खुद को देवताओं के खाने योग्य समझता है। कुमाऊंनी भाषा के एक लोक गीत में तो काफल अपना दर्द बयान करते हुए कहते हैं, ‘खाणा लायक इंद्र का, हम छियां भूलोक आई पणां’. इसका अर्थ है कि हम स्वर्ग लोक में इंद्र देवता के खाने योग्य थे और अब भू लोक में आ गए।’
उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के पर्वतीय क्षेत्रों के जंगलों में काफल के पेड़ लद गए हैं और लोग यहां पर काफल का जमकर आनंद भी ले रहे हैं। हालांकि कोरोना लॉकडाउन के चलते इस बार बड़ी संख्या में काफल लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है और लोग इसका स्वाद खूब मिस कर रहे हैं।
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