उत्तराखंड के मशहूर लोकगायक और गीतकार जीत सिंह नेगी का निधन
देहरादून (उत्तराखंड पोस्ट) उत्तराखंड में गढ़वाल के प्रसिद्ध लोकगायक, रचनाकर, रंगकर्मी जीत सिंह नेगी का रविवार को निधन हो गया। उनके निधन की खबर मिलते ही उत्तराखंड के लोक कलाकारों के साथ ही प्रदेशवासियों में शोक की लहर दौड़ पड़ी। 94 साल के जीत सिंह नेगी 1925 को पौड़ी जिले के अयाल गांव में जन्मे
देहरादून (उत्तराखंड पोस्ट) उत्तराखंड में गढ़वाल के प्रसिद्ध लोकगायक, रचनाकर, रंगकर्मी जीत सिंह नेगी का रविवार को निधन हो गया। उनके निधन की खबर मिलते ही उत्तराखंड के लोक कलाकारों के साथ ही प्रदेशवासियों में शोक की लहर दौड़ पड़ी।
94 साल के जीत सिंह नेगी 1925 को पौड़ी जिले के अयाल गांव में जन्मे और वर्तमान में देहरादून के नेहरू कॉलोनी (धर्मपुर) में रह रहे थे।जीत सिंह नेगी उत्तराखंड के पहले ऐसे पहले लोकगायक हैं, जिनके गीतों का ग्रामोफोन रिकॉर्ड 1949 में यंग इंडिया ग्रामोफोन कंपनी ने जारी किया था। इसमें छह गीत शामिल किए गए थे।
जीत सिंह नेगी न सिर्फ प्रसिद्ध लोकगायक हैं, बल्कि उत्कृष्ट संगीतकार, निर्देशक और रंगकर्मी भी रहे। दो हिंदी फिल्मों में उन्होंने बतौर सहायक निर्देशक भी काम किया है।‘शाबासी मेरो मोती ढांगा…’ ‘रामी बौराणी…’ ‘मलेथा की गूल…’ जैसे कई उनके नाटक भी लोकप्रिय हुए।
इतना ही नहीं, जीत सिंह नेगी पहले ऐसे गढ़वाली गायक भी हैं,1950 के दशक की शुरूआत में जिनके गाने का ऑल इंडिया रेडियो से सबसे पहले प्रसारण हुआ। इस सुमधुर खुदेड़ गीत के बोल थे, ‘तू होली उंचि डांड्यूं मा बीरा-घसियारी का भेष मां-खुद मा तेरी सड़क्यां-सड़क्यों रूणूं छौं परदेश मा…।’ (तू होगी बीरा उंचे पहाड़ों पर घसियारी के भेष में और मैं यहा परदेश की सड़कों पर तेरी याद में भटक रहा हूं-रो रहा हूं।)जीत सिंह नेगी के निर्देशन में 1954-55 में दिल्ली में आयोजित गढ़वाली नाटक ‘भारी भूल’ के मंचन में मनोहर कांत धस्माना मुख्य भूमिका में नजर आए थे।
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