चारधाम यात्रा | अनोखी और दिलचस्प है केदारनाथ धाम की कहानी, क्या आप जानते हैं ?

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चारधाम यात्रा | अनोखी और दिलचस्प है केदारनाथ धाम की कहानी, क्या आप जानते हैं ?

Kedarnath

पौराणिक मान्यकाओं के अनुसार केदारनाथ धाम की कहानी बेहद अनोखी और दिलचस्प है। मान्यता है कि पांडवों ने केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्रचीन मंदिर का निर्माण करवाया था।


 

केदारनाथ धाम (उत्तराखंड पोस्ट) उत्तराखंड में बर्फ से ढकी पर्वत ऋंखलाओं के बीच मौजूद केदारनाथ धाम मंदिर भारत में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। हिमालय में स्थित होने से सभी ज्योतिर्लिंगों में सर्वोपरि है। मंदाकनी नदी के तट पर स्थित केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड में चारधाम औऱ पंच केदार का भी एक हिस्सा है।

केदारनाथ को लोग ज्योतिर्लिंग के रुप में जानते हैं और भगवान शिव को पूजते हैं लेकिन क्या आप केदारनाथ धाम की कहानी जानते हैं ?

पौराणिक मान्यकाओं के अनुसार केदारनाथ धाम की कहानी बेहद अनोखी और दिलचस्प है। मान्यता है कि पांडवों ने केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्रचीन मंदिर का निर्माण करवाया था।

केदारनाथ मंदिर के विषय में प्रचलित कथा के अनुसार, पांडवों की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव नें उन्हें हत्या के पाप से मुक्त कर दिया था। मान्यता है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव अपने भाईयों की हत्या से मुक्ति के लिए भगवान शिव का आशीर्वाद पाना चाहते थे। परंतु, भगवान उनसे कर्म से खुश नहीं थे, इसलिए वे केदारनाथ चले गए। पांडव भी उनके दर्शन के लिए केदारनाथ पहुंच गए

पांडवों को वहां पहुंचने पर भगवान शिव में भैंसे का रूप धारण कर लिया, जिसके बाद वे अन्य पशुओं के बीच में चले गए ताकि पांडल भगवान शिव के उस रूप को ना पहचान पाए। कहते हैं कि भीम ने विशालकाय शरीर धारण कर दो पहाड़ों पर अपने पैर फैला दिए।

जिसके बाद उस पहाड़ के नीचे से सभी पशु तो निकल गए, लेकिन वहां मौजूद एक भैंस ने ऐसा नहीं किया, जिसके बाद भीम पूरी शक्ति से भैंस की ओर झपटे, लेकिन वह जमीन में समाने लगा। तभी भीम ने उसकी की पीठ का पिछला हिस्सा पकड़ लिया।

कहा जाता है कि भगवान शिव ने भैंसे का रूप बनाया था। मान्यता है कि भगवान शिव पांडवों की ईच्छाशक्ति से प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन देकर हत्या के पाप से मुक्त होने का आशीर्वाद दिया। धार्मिक मान्यता है कि उसी समय से केदारानाथ में भैंस की पीठ को शिव का रूप मानकर पूजा होने लगी।

श्री बदरीनाथ जी की यात्रा से पूर्व भगवान श्री केदारनाथ जी के पुण्य दर्शनों का महात्म्य है । सत्ययुग में इसी स्थान पर केदार नाम के एक राजा ने घोर तपस्या की थी, इस कारण से भी इस क्षेत्र को केदार क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। केदार का शाब्दिक अर्थ दलदल होता है तथा भगवान शिव दल-दल भूमि के अधिपति भी हैं इसलिए भी दल- दल (केदार) के (नाथ) पति से केदारनाथ नाम पड़ा। महाभारत में इस भूमि में मन्दाकिनी, अलकनन्दा एवं सरस्वती बहने का उल्लेख भी मिलता है जो आज तक इस क्षेत्र में बह रही है।

केदारनाथ में अनेक मुक्ति प्रदान करने वाले तीर्थ स्थान हैं। केदारनाथ मंदिर के चारों तरफ बहने वाली दुग्ध गंगा, मन्दाकिनी आदि देव नदियों के जल में स्नान करने से आयु बढती है । केदारनाथ के पश्चिम उत्तर दिशा में लगभग 8 किमी0 की दूरी पर वासुकी ताल है। यहां पर ब्रह्मकमल बहुत मात्रा में होते हैं इसके साथ ही इस क्षेत्र में गुग्गुल, जटामांशी अतीस, ममीरा, हत्थाजड़ी आदि जड़ी बूटियां प्राकृतिक रूप से उगती हैं।

मंदिर की पूर्व दिशा में जहां पर एक गुफा है कहा जाता है कि पाण्डवों ने अन्तिम यज्ञ इसी स्थान पर किया था। श्री केदारनाथ जी के कपाट बैसाख मास में अक्षय तृतीय के पश्चात खुलते हैं तथा भैयादूज के दिन बन्द हो जाते हैं। शेष छः माह के लिए भगवान शिव की पूजा ऊखीमठ में होती है।

ऊखीमठ में भगवान ओंकारेश्वर जी का विशाल एवं भव्य मन्दिर है यहां पर श्री पंचकेदारों में भगवान श्री मद्महेश्वर जी की शीतकालीन छः माह की पूजा भी यहीं पर होती है। केदारखण्ड तथा स्कन्दपुराण में केदार यात्रा का महत्व इस तरह वर्णित किया गया है कि श्री बदरीनाथ जी की यात्रा से पहले श्री केदारनाथ जी की यात्रा करनी चाहिये। वर्तमान में भी इन तीर्थ स्थानों की यात्रा एवं भगवान के पुण्य दर्शन करने मात्र से सारी मनोकामनायें पूर्ण हो जाती हैं ।

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